जो आत्माएं जाग्रत नहीं हैं

जो आत्माएं जाग्रत नहीं हैं, वह केवल खाने, सोने और कामवासना के लिए संसार में आई हैं।


जिस आत्मा ने अब तक अपने भीतर की शक्ति को नहीं पहचाना, वह केवल एक शरीर बनकर रह जाती है।

वह खाता है, सोता है, वासना में रहता है,

पर जागता नहीं।


मूलाधार में अटका जीवन केवल भोग का चक्र है,

जहाँ जीव "पशु" की भांति चलता है 

न बोध है, न दृष्टि है, न ऊर्ध्वगमन।


परंतु जब साधक तंत्र के पथ पर उतरता है 

जब वह अग्नि, मंत्र और तांत्रिक अनुशासन के साथ

अपनी कुंडलिनी को जाग्रत करता है 

तो वही आत्मा शिव की ओर अग्रसर होती है।


जो आत्मा जागे बिना चली जाती है,

वह केवल जन्म-मरण के चक्र में घूमती है 

जिसे  "भवचक्र में बँधा प्राणी" कहा जाता है

तुम केवल खाने-सोने के लिए नहीं,

स्वरूप-स्मरण और परमबोध के लिए जन्मे हो।

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