गुरु चरणों में समर्पण
कुछ पंकिता गुरु के नाम |
जिसने भी लिखा क्या खुब लिखा
आप ही दीप, आप ही राह,
अंधेरों में बनें मेरे प्रभात की चाह।
शब्दों से ऊँचा, मौन से महान,
हे गुरु! आप ही मेरे जीवन की जान।
आपका स्पर्श, एक आशीर्वाद,
बदल दे पीड़ा, बन जाए संवाद।
आपकी दृष्टि में बसी है जो ज्योति,
वही बनी है मेरी आत्मा की रोशनी।
न चाँद की चाह, न सूरज की ओर,
मुझे तो चाहिए बस आपके चरणों का ठौर।
आप हैं धरा पर ब्रह्मा का स्वरूप,
आपसे ही संभव है मेरा आत्म-रूप।
आपकी वाणी में जो झंकार है,
वही मेरे भीतर का सत्कार है।
आपसे ही जाना मैंने ध्यान का सच,
आप ही हैं मेरे जीवन का हर रच।
हे गुरुदेव, मेरा प्रणाम सदा,
आप बिना अधूरी है मेरी हर सधा।
मेरे जीवन का हर श्वास, हर मन,
समर्पित है आपको – मेरे सतगुरु, मेरे जीवन।
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