माँ मनसा : एक रहस्यमयी शक्ति और सफलत की राह

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नागों की देवी माँ मनसा के चमत्कारी रहस्य जानें और अपनी हर इच्छा पूरी करें।

विस्तार से जानें

माँ मनसा देवी का परिचय

माँ मनसा देवी, जिन्हें मनसा माँ या मनशा माँ के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवी हैं। उन्हें नागों की देवी के रूप में पूजा जाता है और वे भगवान शिव की मानस पुत्री मानी जाती हैं। उनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी, और वे विष के प्रभाव को दूर करने की शक्ति रखती हैं। माँ मनसा की पूजा मुख्य रूप से सर्प दंश से रक्षा, संतान प्राप्ति और धन-धान्य की वृद्धि के लिए की जाती है। वे सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी के रूप में पूजी जाती हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ मनसा का विवाह जरत्कारु मुनि से हुआ था और उनके पुत्र का नाम आस्तिक था। उन्होंने अपने पुत्र के माध्यम से राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को रुकवाया था, जिससे नाग जाति का विनाश होने से बचा। यह दर्शाता है कि माँ मनसा न केवल नागों की रक्षक हैं, बल्कि वे सृष्टि में संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनकी कृपा से भक्त भयमुक्त जीवन जीते हैं और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति पाते हैं।

उनकी पूजा का महत्व विशेष रूप से पूर्वी भारत, जैसे पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड में अधिक है, जहाँ उन्हें ग्राम देवी के रूप में भी पूजा जाता है। हालांकि, अब पूरे भारत में उनके भक्त फैले हुए हैं। मनसा देवी की पूजा से संबंधित अधिक जानकारी के लिए, आप उनकी पूजा विधि और लाभ के बारे में पढ़ सकते हैं।

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माँ मनसा देवी की पूजा के लाभ

माँ मनसा देवी की पूजा करने से भक्तों को अनगिनत लाभ प्राप्त होते हैं। उनकी कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और सभी बाधाएं दूर होती हैं। यहाँ कुछ प्रमुख लाभ दिए गए हैं:

  • सर्प दंश से रक्षा: माँ मनसा नागों की देवी हैं, इसलिए उनकी पूजा से सर्प दंश का भय समाप्त होता है और व्यक्ति को सांपों से होने वाले किसी भी खतरे से मुक्ति मिलती है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहाँ सर्प दंश एक आम समस्या है।
  • संतान सुख की प्राप्ति: जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्ति में समस्या आ रही होती है, वे माँ मनसा की पूजा करके संतान सुख प्राप्त कर सकते हैं। यह माना जाता है कि उनकी कृपा से निःसंतान दंपत्तियों को भी संतान का आशीर्वाद मिलता है।
  • धन-धान्य की वृद्धि: माँ मनसा की नियमित पूजा से घर में धन और समृद्धि आती है। व्यापार में वृद्धि होती है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
  • रोगों से मुक्ति: उनकी पूजा से कई प्रकार के रोगों और बीमारियों से मुक्ति मिलती है, विशेष रूप से त्वचा संबंधी रोगों और विषैले प्रभावों से।
  • मनोकामना पूर्ति: सच्चे मन से माँ मनसा की आराधना करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वे भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती हैं, चाहे वे करियर, स्वास्थ्य या व्यक्तिगत जीवन से संबंधित हों।
  • भय और नकारात्मकता का नाश: माँ मनसा की शक्ति से सभी प्रकार के भय, चिंताएं और नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं। भक्त आत्म-विश्वास और शांति का अनुभव करते हैं।

इन लाभों को प्राप्त करने के लिए, सही पूजा विधि का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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माँ मनसा देवी की पूजा कैसे करें

माँ मनसा देवी की पूजा विधि अत्यंत सरल है, लेकिन इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए। यहाँ एक सामान्य पूजा विधि दी गई है:

  1. स्नान और शुद्धिकरण: पूजा शुरू करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को भी गंगाजल से शुद्ध करें।
  2. स्थापना: एक चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाएं। माँ मनसा देवी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। यदि मूर्ति उपलब्ध न हो, तो एक सुपारी पर कलावा बांधकर उसे देवी का स्वरूप मान सकते हैं।
  3. कलश स्थापना: एक मिट्टी या तांबे के कलश में जल भरकर उसमें आम के पत्ते और नारियल रखें। कलश को चावल के ऊपर स्थापित करें।
  4. दीप प्रज्वलन: घी का दीपक जलाएं। धूप और अगरबत्ती जलाकर सुगंध फैलाएं।
  5. पुष्प और नैवेद्य: माँ मनसा को लाल या पीले फूल, विशेषकर कनेर के फूल अर्पित करें। उन्हें फल, मिठाई, दूध और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल का मिश्रण) का भोग लगाएं। नागों को दूध बहुत प्रिय है, इसलिए दूध का भोग विशेष रूप से चढ़ाएं।
  6. मंत्र जाप: माँ मनसा के मंत्रों का जाप करें। आप यहाँ दिए गए मंत्रों का उपयोग कर सकते हैं। कम से कम 108 बार जाप करें।
  7. आरती: पूजा के अंत में माँ मनसा देवी की आरती करें।
  8. प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को परिवार के सदस्यों और अन्य भक्तों में वितरित करें।

यह पूजा विधि आपको माँ मनसा देवी की कृपा प्राप्त करने में मदद करेगी। पूजा के दौरान मन को शांत और एकाग्र रखें।

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माँ मनसा देवी से जुड़ी गलत धारणाएं

कई बार देवी-देवताओं से जुड़ी कुछ गलत धारणाएं या मिथक प्रचलित हो जाते हैं। माँ मनसा देवी के संबंध में भी कुछ ऐसी ही बातें हैं, जिन्हें स्पष्ट करना आवश्यक है:

  • केवल सर्प दंश से रक्षा: यह एक आम गलत धारणा है कि माँ मनसा की पूजा केवल सर्प दंश से रक्षा के लिए की जाती है। जबकि यह एक प्रमुख कारण है, उनकी पूजा संतान प्राप्ति, धन-समृद्धि, रोगों से मुक्ति और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी की जाती है। वे समग्र कल्याण की देवी हैं।
  • क्रोधित देवी: कुछ लोग मानते हैं कि माँ मनसा एक क्रोधित या उग्र देवी हैं। यह सत्य नहीं है। वे शांत और दयालु स्वभाव की देवी हैं, जो अपने भक्तों पर असीम कृपा करती हैं। उनका उग्र रूप केवल दुष्टों का नाश करने के लिए है, भक्तों के लिए नहीं।
  • केवल नाग पंचमी पर पूजा: यह भी एक गलत धारणा है कि उनकी पूजा केवल नाग पंचमी के दिन ही की जा सकती है। हालांकि नाग पंचमी उनकी पूजा के लिए एक विशेष दिन है, आप किसी भी दिन, विशेषकर मंगलवार और शुक्रवार को, उनकी पूजा कर सकते हैं।
  • केवल पूर्वी भारत की देवी: पहले उन्हें मुख्य रूप से पूर्वी भारत की देवी माना जाता था, लेकिन अब उनके भक्त पूरे भारत और विदेशों में भी हैं। उनके मंदिर विभिन्न स्थानों पर स्थापित हैं।
  • केवल महिलाएं पूजा करती हैं: यह गलतफहमी है कि केवल महिलाएं ही माँ मनसा की पूजा कर सकती हैं। पुरुष भी उनकी पूजा कर सकते हैं और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

इन गलत धारणाओं को दूर करके, हम माँ मनसा देवी की सही महिमा और उनके वास्तविक स्वरूप को समझ सकते हैं। उनकी पूजा से जुड़े वास्तविक लाभों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

क्या आपके मन में कोई प्रश्न है? हमसे संपर्क करें।

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माँ मनसा देवी के शक्तिशाली मंत्र

महत्वपूर्ण सूचना: किसी भी मंत्र का जाप या साधना करने से पहले, कृपया अपने गुरु या आध्यात्मिक मार्गदर्शक से अनुमति और उचित मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करें। उनकी सलाह के बिना किसी भी गहन साधना को शुरू न करें।

माँ मनसा देवी के मंत्रों का जाप करने से अद्भुत शक्ति और शांति प्राप्त होती है। यहाँ उनके कुछ प्रमुख मंत्र दिए गए हैं, जिन्हें आप अपनी सुविधा अनुसार जाप कर सकते हैं। मंत्रों को प्रकट करने के लिए उन पर क्लिक करें:

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मनसा देव्यै स्वाहा॥

यह मंत्र माँ मनसा देवी का ध्यान करने और उनसे एकाग्रता स्थापित करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसका जाप करने से मन शांत होता है और देवी से जुड़ाव महसूस होता है।

ॐ मनसा देव्यै नमः॥

यह सबसे सरल और प्रभावी मंत्रों में से एक है। इसका नियमित जाप करने से माँ मनसा की कृपा प्राप्त होती है और सभी प्रकार के भय दूर होते हैं। इसे प्रतिदिन 108 बार जपना चाहिए।

ॐ नागवासिन्यै विद्महे, विषहारिण्यै धीमहि, तन्नो मनसा प्रचोदयात्॥

यह माँ मनसा देवी का गायत्री मंत्र है। गायत्री मंत्र का जाप अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है और यह देवी की ऊर्जा को आकर्षित करता है। इसका जाप करने से ज्ञान, बुद्धि और शक्ति की प्राप्ति होती है।

मंत्रों का जाप करते समय शुद्धता और एकाग्रता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। आप अपनी सुविधा और समय के अनुसार इन मंत्रों में से किसी का भी जाप कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए, पूजा विधि देखें।

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माँ मनसा देवी के गुप्त और पवित्र पाठ

प्रथम रूप – "विषहर्यै" मन्त्र साधना
मन्त्र

बं श्रीं विषहर्यै नमः।

मन्त्र विनियोग

ॐ अस्य श्री विषहर्यै मन्त्रस्य नारद ऋषिः।

अनुष्टुप् छन्दः।

श्री मनसा देवी देवता।

बं बीजम्।

श्रीं शक्तिः।

विषहर्यै कीलकम्।

सर्पदोष निवारणार्थं, भय-नाशनार्थं, विष-निवारणार्थं जपे विनियोगः।

अंगन्यास (दाहिने अंगों पर मन्त्र से स्पर्श करें):
  1. ॐ बं अंगुष्ठाय नमः।
  2. ॐ श्रीं तर्जनी नमः।
  3. ॐ विष हर्यै मध्यमाय नमः।
  4. ॐ नमः अनामिकायै नमः।
  5. ॐ नमः कनिष्ठिकायै नमः।
  6. ॐ नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
करणन्यास (इंद्रियों को मन्त्र से शुद्ध करें):
  1. ॐ बं नेत्रत्रयाय नमः।
  2. ॐ श्रीं श्रोत्रयुग्माय नमः।
  3. ॐ विष जिव्हायै नमः।
  4. ॐ हर्यै नासिकाभ्याम् नमः।
  5. ॐ नमः ललाटाय नमः।
ध्यान (प्रथम रूप)

ॐ देवीं मम्बा महीनां शशधरवदनां चारुकान्तिं वदान्याम्।
हंसारूढामुदारां अरुणितवसनां सर्वदा सर्वदैवम्।
स्मेरास्यां मण्डिताङ्गीं कनकमणिगणैः मुक्तया च प्रवालैः।
वन्देहं साष्टनागामुरukuchayugalaं भोगिनीं कामरूपाम्।

जपविधि

सुबह या रात किसी एक समय में नियमित रूप से बैठें।

शुद्ध आसन (कुश/ऊन/रेशमी) पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।

108 बार बं श्रीं विषहर्यै नमः इस मंत्र का जाप रुद्राक्ष या चंद्रिका की माला से करें।

न्यूनतम 21 दिनों तक करें, विशेषतः नागपंचमी से प्रारंभ उत्तम है।

जप के बाद माँ को मिश्री, चावल, दूब और दूध अर्पण करें।


द्वितीय रूप – "मनसादेव्यै" मन्त्र साधना
मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मनसादेव्यै स्वाहा।

मन्त्र विनियोग

ॐ अस्य श्री मनसा देवी महामन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः।

गायत्री छन्दः।

श्री मनसा देवी देवता।

ह्रीं बीजम्।

श्रीं शक्तिः।

क्लीं कीलकम्।

ऐं युक्तम्।

सर्वसिद्धि प्राप्त्यर्थं, भयं निवारणार्थं, साधनसिद्ध्यर्थं जपे विनियोगः।

ध्यान (द्वितीय रूप)

ॐ श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषण भूषिताम्,
वह्निशुद्धां शुकासनां नागयज्ञोपवीतिनीम्।
महाज्ञानयुतां चैव प्रवरां ज्ञानिनां सत्यम्॥

जपविधि

रात्रि के समय शांत वातावरण में करें।

देवी को सफेद पुष्प, दूध-चावल, नागफणि पत्र आदि अर्पित करें।

माला – स्फटिक या रुद्राक्ष।

कम से कम 5 माला (540 बार) का जाप 21 दिन करें।

अंत में “माँ मनसा देवी” से मनोकामना कहें।


अन्य अनुशासन

ब्रह्मचर्य पालन करें।

लहसुन, प्याज, अंडा, मांस, शराब आदि से दूर रहें।

हर दिन सर्प देवता और माँ मनसा को प्रणाम करें।

मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से एक दीपक नागदेवता के नाम जलाएं।

पुष्पांजलि नियम (माँ मनसा देवी पूजन हेतु)
  1. सबसे पहले चंदन लेकर सभी के ललाट पर तिलक करें।
  2. फिर आचमन करें –
    बाएँ हाथ में जल लें, दाहिने हाथ की सभी उंगलियों से उस जल को मुँह पर छिड़कें और मंत्र बोलें –
    "नमः श्री विष्णु। नमः श्री विष्णु। नमः श्री विष्णु।"
    यह मंत्र तीन बार बोला जाए।
  3. इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर "अपवित्र पाठ" और "विष्णु स्मरण" करें:
    अपवित्र पाठ –

    "अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
    यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥"

    विष्णु स्मरण –

    "नमः माधव माधव वाचि माधव माधव हृदि।
    माधव स्मरन्ति साधवः सर्वकार्येषु श्री माधव श्री माधव श्री माधवाय नमः॥"

माँ मनसा देवी पुष्पांजलि मंत्र (तीन बार)

हर बार पुष्प, चंदन, दूर्वा, तुलसी पत्र, और बेलपत्र लेकर दोनों हाथ जोड़कर नीचे दिए गए मंत्रों के साथ माँ को अर्पित करें:

पहला पुष्पांजलि मंत्र

"आस्तिकस्य मनीन्द्रस्य माता सा च तपस्विनी।
आस्तिकमाता विख्याता जगत्सु सुप्रतिष्ठिता।
प्रिया मुनेर्जरत्त्कारो मुनीन्द्रस्य महात्मनः।
योगिनो विश्वपूज्यस्य जरत्त्कारोः प्रिया ततः॥
एष सगन्ध पुष्प बिल्वपत्राञ्जलिः मां मनसा देवै नमः।"

फूल अर्पण करें माँ के चरणों में या घट पर।

दूसरा पुष्पांजलि मंत्र

"ॐ नमो मनसायैः
जरत्त्कारुजगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी।
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा।
जरत्त्कारुप्रिया देवी ख्याता विषहरिति च।
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता॥
एष सगन्ध पुष्प बिल्वपत्राञ्जलिः मां मनसा देवै नमः।"

फूल अर्पण करें माँ को।

तीसरा पुष्पांजलि मंत्र

"नागानां प्राणरक्षित्रि यज्ञे जन्मेजयस्य च।
नागेश्वरिति विख्याता सा नागभगिनीति च॥
विषं संहरतुमीशा सा तेन विषहरिति च।
सिद्धं योगं हरात् प्राप्ता तेनापि सिद्धयोगिनी।
अज्ञान-ज्ञानदात्रीं च मृतसञ्जीवनीं पराम्।
महाज्ञानयुतां तां च प्रवदन्ति मनीषिणः॥
एष सगन्ध पुष्प बिल्वपत्राञ्जलिः मां मनसा देवै नमः।"

तीसरी पुष्पांजलि माँ को समर्पित करें।


अंतिम चरण:

तीन बार पुष्पांजलि अर्पण करने के बाद माँ मनसा देवी का प्रणाम मंत्र पढ़ें।

यदि संभव हो तो माँ मनसा देवी का स्तोत्र भी पढ़ें।

अंत में दक्षिणा देकर पूजा का विसर्जन करें।

फिर सबके सिर पर शांति जल छिड़कें।

जय माँ विषहरी मनसा देवी।

(ब्रह्मवैवर्त पुराण – प्रकृति खंड)

श्रीनारायण उवाचः —

श्रुतं मनसाख्यानं यत् श्रुतं धर्मभक्ततः।

कन्या सा च भगवती कश्यपस्य च मानसि।

तेनेयं मनसा देवी मनसा या च दीव्यति।

मनसा ध्यान्यते या वा परमात्मानमीश्वरम्॥

तेन सा मनसा देवी योगेन दीव्यति।

आत्मारामा च सा देवी वैष्णवी सिद्धयोगिनी॥

त्रियुगं च तपस्तप्तवा कृष्णस्य परमात्मनः।

जरत्कारुशरीरं च दृष्ट्वा यत् क्षीणमीश्वरः॥

गोपीपतिः नाम चक्रे जरत्कारुरिति प्रभुः।

वाञ्छितं च ददौ तस्मै कृपया च कृपानिधिः।

पूजां च कारयामास चकार तं पुनः पुनः।

स्वर्गे च नगलोके च पृथिव्यां ब्रह्मलोकतः॥

भूषणा जगत्सु गौरी च सुंदरी च मनोहरा।

जगत्गौरीति विख्याता तेन सा पूजिता सती॥

शिवशिष्या च सा देवी तेन शैवीति कीर्तिता।

विष्णुभक्ता च सा देवी शश्वद्वैष्णवी तेन नारद॥

नागानां प्राणरक्षित्रि यज्ञे जन्मेजयस्य च।

नागेश्वरिति विख्याता सा नागभगिनीति च॥

विषं संहरतुमीशा सा तेन विषहरिति च।

सिद्धं योगं हरात् प्राप्ता तेनापि सिद्धयोगिनी॥

अज्ञानज्ञानदात्रीं च मृतसंजीवनीं पराम्।

महाज्ञानयुतां तां च प्रवदन्ति मनीषिणः॥

आस्तिकस्य मनीन्द्रस्य माता सा च तपस्विनी।

आस्तिकमाता विख्याता जगत्सु सुप्रतिष्ठिता।

प्रिया मुनेर्जरत्कारो मुनीन्द्रस्य महात्मनः॥

योगिनो विश्वपूज्यस्य जरत्कारोः प्रिया ततः॥

(ॐ नमो मनसायैः)

जरत्कारुजगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी।

वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा।

जरत्त्कारुप्रिया देवी ख्याता विषहरिति च।

महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वजीता॥


फलश्रुति (पाठ के लाभ):

द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले च यः पठेत्।

तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च॥

नागभीते च शयने नागग्रस्ते च मंदिरे।

नागक्षते महादुर्गे नागवेष्टितविग्रहे॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु मुच्यते नात्र संशयः।

नित्यं पठेत्तं दृष्ट्वा नागवर्गः पलायते॥

दशलक्षजपेनैव स्तोत्रसिद्धिर्भवेन्यूनम्।

स्तोत्रसिद्धिर्भवेद्यस्य स विषं भोक्तुमीश्वरः॥

नागौघभूषणं कृत्वा भवेन नागवाहनः।

नागासनः नागतुल्यो महासिद्धो भवेन नरः॥

॥ इति ब्रह्मवैवर्तपुराणे प्रकृतिखण्डे मनसास्तोत्रम्॥


पाठ विधि सुझाव:

इसे रोजाना सुबह या शाम माँ मनसा के सामने पाठ करें।

विशेष रूप से नागपंचमी, मंगलवार, शनिवार को अवश्य पढ़ें

ॐ श्री मनसादेव्यै नमः — हर नाम से पहले यह जोड़ें।

  1. ॐ मनसा
  2. ॐ नागेश्वरी
  3. ॐ विषहरि
  4. ॐ सिद्धयोगिनी
  5. ॐ कालहरिणी
  6. ॐ फणीवल्ली
  7. ॐ सर्पराजेश्वरी
  8. ॐ संकटमोचिनी
  9. ॐ नागमाता
  10. ॐ जड़त्कारुप्रिया
  11. ॐ शक्तिस्वरूपा
  12. ॐ भूतनाशिनी
  13. ॐ अम्बिका
  14. ॐ शिवानुजा
  15. ॐ नागपूजिता
  16. ॐ कामरूपिणी
  17. ॐ उग्ररूपा
  18. ॐ भैरवी
  19. ॐ दुःखनाशिनी
  20. ॐ अनंतशक्ति
  21. ॐ नागवती
  22. ॐ कष्टहरा
  23. ॐ वज्रकायिनी
  24. ॐ महाकाली
  25. ॐ योगिनी
  26. ॐ नागसुन्दरी
  27. ॐ नागराजप्रिया
  28. ॐ मृत्युंजयी
  29. ॐ सिद्धलक्ष्मी
  30. ॐ भोगदा
  31. ॐ कल्याणी
  32. ॐ भक्तवत्सला
  33. ॐ अदृश्यरूपा
  34. ॐ तेजस्विनी
  35. ॐ सर्वज्ञा
  36. ॐ सिद्धेश्वरी
  37. ॐ वशवती
  38. ॐ महामाया
  39. ॐ नागपालिनी
  40. ॐ नागपूजनप्रिय
  41. ॐ नागगृहनिवासिनी
  42. ॐ नागरत्नविभूषिता
  43. ॐ पातालवासी
  44. ॐ वरप्रदा
  45. ॐ पुण्यरूपा
  46. ॐ रक्षकायै नमः
  47. ॐ सर्वविघ्नहन्त्री
  48. ॐ सौम्यरूपा
  49. ॐ नागजिह्वा
  50. ॐ आराधिता
  51. ॐ तपस्विनी
  52. ॐ त्रिलोचनप्रिया
  53. ॐ महादेवी
  54. ॐ धर्मसंस्था
  55. ॐ सत्यवती
  56. ॐ लोकमाता
  57. ॐ जीवदात्री
  58. ॐ महाज्ञाना
  59. ॐ सर्पदोषहन्त्री
  60. ॐ नवदुर्गा
  61. ॐ रुद्राणी
  62. ॐ ज्ञानदायिनी
  63. ॐ योगसिद्धिप्रदा
  64. ॐ ज्वरनाशिनी
  65. ॐ विषनिवारिणी
  66. ॐ नागप्रिया
  67. ॐ सप्तमातृका
  68. ॐ देवसेविता
  69. ॐ ऋषिपूजिता
  70. ॐ दानशक्त्यै नमः
  71. ॐ चतुर्भुजा
  72. ॐ शंखचक्रगदाधरा
  73. ॐ नागबालप्रिया
  74. ॐ करुणामयी
  75. ॐ शरणागतवत्सला
  76. ॐ गंधर्वपूजिता
  77. ॐ यक्षपूजिता
  78. ॐ दैत्यान्तकरी
  79. ॐ शुद्धरूपा
  80. ॐ नागतीर्थवासिनी
  81. ॐ पातालेश्वरी
  82. ॐ अनन्तरूपा
  83. ॐ चंद्रवदना
  84. ॐ ज्योतिर्मयी
  85. ॐ त्रिलोकीनाथवन्दिता
  86. ॐ नागपाशविनिर्मुक्ता
  87. ॐ मनोवांछितप्रदा
  88. ॐ दीपप्रिया
  89. ॐ भक्ति रूपा
  90. ॐ नागभोगसुता
  91. ॐ तारणि
  92. ॐ नागगन्धिनी
  93. ॐ पतिव्रता
  94. ॐ धर्मरक्षा कारिणी
  95. ॐ मंगलदायिनी
  96. ॐ भयहरिणी
  97. ॐ लोकसंस्था
  98. ॐ महाप्रभा
  99. ॐ दीपार्चिता
  100. ॐ पुष्पप्रिय
  101. ॐ कल्याणदायिनी
  102. ॐ विद्यानिधि
  103. ॐ नागदेवता पूजिता
  104. ॐ सर्वदोषनिवारिणी
  105. ॐ नागरत्नसुन्दरी
  106. ॐ पीड़ाहरिणी
  107. ॐ स्वर्गदायिनी
  108. ॐ सिद्धिदात्री

स्थान और तैयारी:
  • पूजा स्थान को साफ़ करें।
  • एक मनसा का चित्र / मूर्ति / फणी पौधा (स्वेत दूर्वा / श्नुही की डाली) रखें।
  • आसन पर लाल वस्त्र बिछाएँ।
  • दीपक जलाएँ।
  • कलश स्थापना करें।
संकल्प (Sankalp):

दाहिने हाथ में जल लेकर यह बोले:

मम समस्त पापक्षयपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थं मनसा देवी पूजनं करिष्ये।

पवित्रीकरण व आचमन:

"ॐ केशवाय नमः" कहते हुए जल ग्रहण करें और तीन बार आचमन करें।

फिर "ॐ अपवित्रः पवित्रो वा..." पाठ करें।

देवी आवाहन:

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऊं मनसादेव्यै नमः। आवाहयामि स्थापयामि पूजयामि।

षोडशोपचार पूजा (या पंचोपचार):

हर चरण के साथ “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मनसादेव्यै नमः” बोलें:

  • गंध (चंदन)
  • पुष्प (फूल)
  • धूप (अगरबत्ती)
  • दीप (घी का दीपक)
  • नैवेद्य (पका या कच्चा भोग – पांताभात, दूध, केले, मिठाई आदि)
विशेष अर्पण (Maa Manasa को प्रिय):
  • दूध
  • केले
  • पांताभात (पके हुए चावल का भात)
  • पुष्प: दूर्वा, बेलीपत्र
  • शंख या नाग आकृति वाला भोग पात्र (सांकेतिक रूप से नाग पुत्रों के लिए)
मंत्र जाप:
बीज मंत्र:

"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मनसादेव्यै नमः।"
या
"ॐ वं श्रीं विषहर्यै नमः।"

कम से कम 108 बार जप करें (1 माला)

मनसा स्तुति / प्रार्थना:

जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥

या

"मनसा स्तोत्र" पाठ करें

आरती करें (दीप घुमा कर):

देवी को कपूर या दीप से आरती करें और नीचे बोलें:

जय जय माँ मनसा, जय विषहरी गो,
वंदना करी माँगो माँ मनसा के चरणे।

प्रार्थना एवं क्षमा याचना:

यद् यद् कर्म मया देवि पूजनं विहितं मया।
तत्सर्वं सम्यगस्तु त्वत्प्रसादेन मातरः॥

विसर्जन मंत्र:

ॐ मनसादेव्यै नमः। गच्छ गच्छ स्वस्थानं।
पुनरागमनाय च। इति समर्पयामि।

अन्य नियम व जानकारी:
  • मनसा पूजा में धूप वर्जित मानी जाती है (कुछ परंपराओं में)। केवल दीपक व फूलों से पूजन करें।
  • नागपंचमी, भाद्र शुक्ल मंगलवार और शनिवार विशेष पूजनीय माने जाते हैं।
  • मनसा देवी को फणी/श्नुही/दूर्वा डाली प्रतीक रूप में घर लाकर पूजा की जाती है।

देवी साधना या मंत्र जाप से पहले जब हम प्राणायाम करते हैं, तो हमारा चित्त शांत, शरीर स्थिर और ऊर्जा शुद्ध हो जाती है — जिससे मंत्र सिद्धि व साक्षात्कार की राह प्रशस्त होती है।

यह विधि साधारण भक्त और तांत्रिक उपासकों दोनों के लिए उपयुक्त है।

आसन और स्थान:
  • शांत, स्वच्छ जगह में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  • पीठ सीधी, रीढ़ सरल, नेत्र बंद।
  • आसान आसन: सिद्धासन / पद्मासन / सुखासन
  • हाथ ज्ञानमुद्रा में रखें।
प्रारंभिक शुद्धि प्राणायाम (Nadi Shodhan):

नाड़ी शोधन प्राणायाम - 3 चक्र करें:

  1. बाएँ नथुने से श्वास लें (4 सेकंड) – ॐ मनसा
  2. दोनों नथुने बंद कर रोकें (4 सेकंड) – ॐ विषहर्यै
  3. दाएँ नथुने से धीरे छोड़ें (4 सेकंड) – ॐ नमः
  4. फिर दाएँ से श्वास लें (4 सेकंड) – ॐ मनसा
  5. रोकें (4 सेकंड) – ॐ विषहर्यै
  6. बाएँ से छोड़ें (4 सेकंड) – ॐ नमः

इसे 3 बार दोहराएँ।

बीज मंत्र के साथ साधक प्राणायाम (Mantra-Purak Rechak):

बीज मंत्र – "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मनसादेव्यै नमः"
(हर श्वास चक्र में 1 बार यह मंत्र मानसिक रूप से जपें)

  1. श्वास लें – मंत्र सोचें
  2. रोकें – मंत्र दोहराएँ
  3. छोड़ें – मंत्र से छोड़ें

5-11 बार करें।

भस्त्रिका या अग्निसार (यदि साधना विशेष हो):

यह तांत्रिक साधकों के लिए है, मंत्र सिद्धि हेतु।
10-20 तेज गहरी श्वास लें और छोड़ें (गर्भस्थ अग्नि जागरण हेतु)।
फिर गहरी श्वास लें, यथासंभव रोकें।

कुंडलिनी तत्त्व जागरण (मानसिक भाव):

"माँ मनसा की नागिनी शक्ति मेरे मूलाधार से सहस्त्रार तक उठ रही है।
मेरी देह, मन और प्राण — तीनों उनका आसन बन रहे हैं।"

प्राणायाम के बाद क्या करें:
  • बीज मंत्र जप शुरू करें
  • या देवी ध्यान करें (जो आप ऊपर से ले चुके हैं)
  • या स्तोत्र / अर्घ्य / पूजन करें
विशेष बातें:
  • प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में करें
  • जप संख्या धीरे-धीरे बढ़ाएँ
  • 21 दिन से 41 दिन तक करें
  • हर बार प्राणायाम → ध्यान → मंत्र इस क्रम से साधना करें

जय माँ विषहरी!
कुंडलिनी शक्ति रूपेण देवी मनसा नमो नमः

आवश्यक सामग्री:
  • माँ मनसा देवी की प्रतिमा/चित्र
  • आम की लकड़ी या आम की समिधा
  • हवन कुंड
  • गाय का घी
  • जौ, तिल, नवग्रह समिधा
  • कपूर, अगरबत्ती
  • फूल, फल, पान सुपारी
  • रोली, अक्षत, हल्दी
  • कुमकुम, दुर्वा
  • शुद्ध जल, कलश
  • घी और शहद मिला हवन सामग्री (होमद्रव्य)
  • हवन कुंड का पूजन करें
  • दक्षिणा और आसन
हवन पूर्व संकल्प मंत्र:

ॐ विषहरि भगवति मातः, आज मैं (अपना नाम लें), तुम्हारी कृपा हेतु यह हवन पूजन कर रहा/रही हूँ। कृपया मेरे दोषों का नाश करो, जीवन में सुख-समृद्धि दो।

हाथ जोड़कर संकल्प करें और अपने गोत्र, नाम, स्थान का उच्चारण करें।

हवन प्रारंभ मंत्र:
अग्नि स्थापना मंत्र:

ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्॥

अग्नि में कपूर जलाकर अग्नि प्रज्ज्वलित करें।

हवन में आहुतियां देने की विधि:

मुद्रा: दाहिने हाथ में तीन अँगुलियों (अंगूठा, तर्जनी और मध्यमा) से आहुति दें।

हर मंत्र के अंत में "स्वाहा" बोलकर अग्नि में आहुति दें।

मुख्य हवन मंत्रावली (प्रत्येक पर 1 आहुति):
  1. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मनसादेव्यै स्वाहा॥

  2. ॐ नागराज भगिन्यै नमः स्वाहा॥

  3. ॐ कर्कोटकप्रियायै स्वाहा॥

  4. ॐ सिद्धयोगिन्यै स्वाहा॥

  5. ॐ विश्वभयत्रासहारिण्यै स्वाहा॥

  6. ॐ नागदोषनाशिन्यै स्वाहा॥

  7. ॐ विषहरायै स्वाहा॥

  8. ॐ सर्वरोगनिवारिण्यै स्वाहा॥

  9. ॐ कामदायिनी मनसायै स्वाहा॥

(कम से कम 11 या 21 बार "ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मनसादेव्यै स्वाहा॥" की आहुति दें)

पूर्णाहुति मंत्र:

पूर्णाहुति के लिए एक नारियल, पंचमेवा, घी, पुष्प आदि लेकर आहुति दें:

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मनसादेव्यै पूर्णाहुति स्वाहा॥

समापन प्रार्थना (शांति पाठ):

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिः
ओषधयः शान्तिः
वनस्पतयः शान्तिः
विश्वेदेवाः शान्तिः
ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः
शान्तिरेव शान्तिः
सा मा शान्तिरेधि॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

आशीर्वाद और समर्पण:

हाथ जोड़कर बोले:

हे माँ मनसा देवी! आप मेरी रक्षा करें, सभी प्रकार के कष्ट, दोष, रोग और भय से मुझे मुक्त करें। इस हवन को स्वीकार करें।

जय माँ विषहरी!

माँ मनसा देवी केवल नागदोष या रोग-निवारण की देवी ही नहीं, बल्कि वे शुद्ध कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक हैं। उनका ध्यान और साधना करने से मूलाधार में सुप्त कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होकर ब्रह्मरंध्र तक उठने लगती है।

तैयारी और नियम:
  • शुद्ध सात्विक भोजन करें (तामसिक पदार्थ, प्याज, लहसुन, मांस से परहेज़)
  • सुबह 4-6 बजे के बीच (ब्रह्ममुहूर्त) साधना करें
  • स्नान करके सफेद या पीले वस्त्र पहनें
  • पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करें
  • आसन: ऊन/कुशासन/सिद्धासन या पद्मासन
  • स्थान शुद्ध और शांत हो
  • माँ मनसा का चित्र या यंत्र सामने रखें
माँ मनसा देवी ध्यान विधि (Dhyan Vidhi):

नेत्र बंद करें, तीन बार गहरा श्वास लें। अब ध्यान करें:

"मणिनाग की भगिनी, पद्मा पर विराजमान, शुद्ध चैतन्य स्वरूपा, नागमणि किरणों से आभायुक्त, सिर पर चंद्रमंडल, शरीर से दिव्य प्रकाश निकलता हुआ, माँ मनसा मेरे मूलाधार में स्थित ऊर्जा को जाग्रत कर रही हैं..."

यह ध्यान 5-10 मिनट करें।

बीज मंत्र जप (Beej Mantra Japa):

बीज मंत्र:

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मनसादेव्यै नमः॥

इस मंत्र का 108 बार जप करें (माला से या मानसिक रूप से)।

हर मंत्र जप पर ध्यान रखें कि एक दिव्य ऊर्जा आपकी रीढ़ की हड्डी के मूल से उठ रही है।

कुंडलिनी जागरण योग-मुद्रा:

साधना करते समय ये मुद्राएँ करें:

  • ज्ञान मुद्रा: अंगूठा और तर्जनी मिलाएं, बाकी उंगलियाँ सीधी रखें
  • मूलबंध: गुदा द्वार को हल्के रूप से संकुचित करें
  • उड्डीयान बंध: पेट को अंदर खींचें (प्राण को ऊपर खींचने में मदद मिलती है)
  • श्वास पर नियंत्रण रखें (प्रणव ध्यान):
    • श्वास लें – मूलाधार से ऊर्जा उठ रही है सोचें
    • श्वास रोकें – स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत तक ले जाएं
    • श्वास छोड़ें – आज्ञा और सहस्रार तक ऊर्जा विस्फोट हो रहा है
सप्तचक्र ध्यान (Chakra Meditation):
  1. मूलाधार (Root Chakra) – "ॐ लं" – लाल प्रकाश
  2. स्वाधिष्ठान – "ॐ वं" – नारंगी प्रकाश
  3. मणिपुर – "ॐ रं" – पीला प्रकाश
  4. अनाहत – "ॐ यं" – हरा प्रकाश
  5. विशुद्धि – "ॐ हं" – नीला प्रकाश
  6. आज्ञा – "ॐ ॐ" – बैंगनी प्रकाश
  7. सहस्रार – "ॐ" – सफेद दिव्य प्रकाश

प्रत्येक चक्र पर 3-5 मिनट ध्यान करें।

जागरण संकेत (Kundalini Symptoms):

यदि साधना ठीक हो रही है, तो यह संकेत मिल सकते हैं:

  • रीढ़ में कंपन्न
  • नेत्रों में रोशनी या कंपन
  • ध्यान में माँ की छवि दिखना
  • सिर में हल्का दबाव या शांति
  • स्वप्न में साँप, जल, देवी दर्शन
साधना के बाद समर्पण प्रार्थना:

ॐ मनसा देवी नमो नमः।
आप ही मेरी अंतःशक्ति हो।
मुझे दिव्य चेतना, प्रेम, और प्रकाश दो।
मेरी कुंडलिनी को जाग्रत करो और उसका संतुलन बनाए रखो।
जय नागमणिवाली माँ!

विशेष नोट:
  • साधना 21, 40 या 108 दिन तक करें।
  • मासिक पूर्णिमा/नागपंचमी/शिवरात्रि/मंगलवार/नागवार विशेष प्रभावकारी।
  • साधना से पहले और बाद में माँ को दूब, दूध या सफेद पुष्प अर्पण करें।

जय माँ विषहरी!
कुंडलिनी शक्ति रूपेण देवी मनसा नमो नमः

जब आप माँ मनसा देवी की साधना (मंत्र-जप, ध्यान, हवन या तांत्रिक विधि) श्रद्धा और नियम से करते हैं, तो एक समय आता है जब देवी आपकी साधना को स्वीकार करती हैं — यही सिद्धि है।

सिद्धि का अर्थ है:

  • देवी की शक्ति आपके साथ स्थाई रूप से जुड़ गई है
  • आपका आंतरिक तंत्र जाग्रत हो गया है
  • आपको संकेत, अनुभव, दर्शन या आदेश मिलने लगते हैं
साधक को अनुभव होने लगते हैं:
स्वप्न संकेत (Dream Vision):
  • साँप (विशेष रूप से शांत या आपकी रक्षा करते हुए)
  • माँ मनसा देवी की मूर्ति या चमकता रूप
  • जल, नागलोक, नदी पार करना
  • देवी द्वारा ताबीज, वस्त्र, मंत्र या मणि देना
  • नागों के बीच आप सुरक्षित हों, या देवदर्शन हों

स्वप्न में जब कोई मंत्र दिया जाए — वह अत्यंत सिद्ध और गोपनीय होता है।

साधना के समय अनुभव:
  • शरीर में कंपन या गर्मी
  • रीढ़ में ऊर्जा का ऊपर उठना (कुंडalini लक्षण)
  • कमरे में दिव्य गंध (बिना किसी कारण)
  • आँखों से आँसू आना, ह्रदय में कंपन
  • अपने आप माला चलने लगना (सिद्ध लक्षण)
दृष्टि/दर्शन (Vision):
  • ध्यान में माँ की आकृति दिखना
  • आँख बंद करने पर दिव्य रोशनी
  • देवी के नेत्र, मुकुट, साँप, मणि आदि की झलक
  • साधना करते समय आसपास सफेद रोशनी या सर्प आकृति बनना
मानसिक शक्ति बढ़ना:
  • निर्णय सही होने लगना
  • कठिन स्थितियों से अपने आप रक्षा होना
  • भविष्य की जानकारी या अनुभूति (Intuition)
  • डर, भ्रम और चिंता से मुक्त होना
  • क्रोध पर नियंत्रण, करुणा की वृद्धि
बाह्य घटनाएं (External Signs):
  • बिना बुलाए कोई आपको माँ मनसा का चित्र, मंत्र, या ताबीज दे
  • साँप सामने आकर भी आपको नुकसान न पहुंचाए
  • अचानक जीवन की समस्याएँ शांत होने लगें
  • कोई अदृश्य सुरक्षा का अनुभव
सिद्धि होने के बाद क्या करें?
कार्य कारण
माँ को धन्यवाद दें साधना से संबंध मजबूत होगा
हर पूर्णिमा या अमावस्या को दीप जलाएं शक्ति सक्रिय बनी रहेगी
किसी को माँ का मंत्र या प्रतीक देना शक्ति का प्रवाह होता है
1 दिन उपवास और मौन व्रत रखें शक्ति को स्थिर करने में मदद
कैसे समझें कि “पूर्ण सिद्धि” हो गई है?
  • माँ आपको साधना में आदेश देती हैं (स्वप्न या ध्यान में)
  • आप किसी का दुःख छूकर/सोचकर अनुभव कर पाते हैं
  • आप मंत्र से रोग, भय, सर्पदोष, दुःस्वप्न निवारण कर पाते हैं
  • माँ की इच्छा के अनुसार आपसे सेवा स्वतः होती है

पूर्ण सिद्धि का मतलब है — माँ अब आपके भीतर जाग्रत हैं। अब आप उनके प्रतिनिधि बन जाते हैं।

सावधानी:

सिद्धि के बाद अहंकार या मोह में न आएं। माँ शक्ति है — सेवा, प्रेम और विनम्रता में ही वह स्थिर होती हैं।

(Nag dosh mukti, rog nash, siddhi aur kundalini jagran ke liye ati prabhavi)

माँ मनसा देवी कौन हैं?

माँ मनसा देवी नागों की देवी हैं — वे वासुकी की बहन, अस्तीक मुनि की माता और विषहरिणी कही जाती हैं।

उनकी साधना से —

  • नागदोष, कालसर्प योग दूर होता है
  • मनोकामना पूर्ति, रोग नाश, और कुंडलिनी जागरण होता है
  • तांत्रिक बाधा, डर, सर्प भय, और अकस्मात कष्ट दूर होते हैं
साधना के लिए समय और नियम:
बिंदु विवरण
समय ब्र ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4–6 बजे) या रात 9 बजे के बाद
विशेष दिन नागपंचमी, श्रावण सोमवार, पूर्णिमा, शनिवार, अष्टमी-नवमी
दिशा उत्तर या पूर्व की ओर मुख करें
आसन कंबल/कुशासन, सिद्धासन या पद्मासन
आहार नियम सात्विक भोजन, तामसिक चीज़ें त्यागें
ब्रह्मचर्य साधना काल में रखें, विशेषकर रात्रिकालीन साधना में
पूजन सामग्री (साधारण):
  • माँ मनसा का चित्र या यंत्र
  • दूब, नागकेशर, पुष्प, सफेद कपड़ा
  • तांबे का लोटा, कलश, दीपक
  • गाय का घी, कुमकुम, अक्षत
  • एक सर्प/नाग की चाँदी की मूर्ति (वैकल्पिक)
  • माला: रुद्राक्ष या स्फटिक या तुलसी
साधना प्रारंभ विधि:
स्थान और शुद्धि:
  • एकांत में आसन लगाएं
  • स्थान को गंगाजल या धूप से शुद्ध करें
संकल्प मंत्र:

ॐ विषहरि भगवति मातः,
मैं (अपना नाम),
आपकी कृपा हेतु साधना कर रहा/रही हूँ।
मेरे सभी दोष, रोग, भय और विघ्नों को दूर करें।
सिद्धि प्रदान करें।
ॐ मं मनसादेव्यै नमः॥

ध्यान विधि (3–5 मिनट):

नेत्र बंद करें, कल्पना करें —
माँ मनसा देवी कमल पर विराजमान हैं।
उनके नेत्र करुणामयी हैं, शरीर से दिव्य प्रकाश निकल रहा है।
उनके सिर पर चंद्र मंडल है और उनके पीछे सर्प का आकार है।
वे आपकी आत्मा में जाग रही हैं।

मंत्र जप विधि:
मुख्य बीज मंत्र (108 बार जप):

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मनसादेव्यै नमः॥

वैकल्पिक सरल मंत्र:

ॐ मनसादेव्यै नमः॥

नागदोष मुक्ति मंत्र:

ॐ नागदोषनाशिन्यै मनसायै नमः॥

जप करते समय माला हाथ में रखें, और मनसा देवी के स्वरूप का ध्यान करते रहें।

हवन (यदि संभव हो तो):

हर दिन या अंतिम दिन हवन करें —

हवन मंत्र:

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मनसादेव्यै स्वाहा॥

आरती / प्रार्थना:

साधना के अंत में नीचे की आरती करें या सुनें:

जय माँ मनसा नागेश्वरी माता।
संकट हरो, दुःख विनाशो, दीनन की त्राता॥

साधना की अवधि:
  • न्यूनतम: 11 दिन
  • प्रभावी: 21 दिन या 40 दिन
  • सिद्धि हेतु: 108 दिन तक कर सकते हैं
अनुभव और जागरण के लक्षण:
  • नींद में साँप या देवी के दर्शन
  • साधना में कंपन्न, गंध, रोशनी
  • शांति, भावुकता, चेतना का विस्तार
  • कभी-कभी शरीर में कंपन, स्वप्नसूचना आदि
निष्कर्ष प्रार्थना:

हे नागमाता!
मुझे जीवन में सत्य, रक्षा, सिद्धि और प्रकाश दो।
आपकी कृपा से सभी बाधाएँ मिटें।
कुंडलिनी जाग्रत हो और आत्मा का कल्याण हो।
ॐ मनसादेव्यै नमः।
जय विषहरी माँ!

जय नागमणिवाली माँ मनसा!

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