दिव्य दृष्टि शक्ति की प्राप्ति

 बहुत सारे तरीकों द्वारा दिव्य दृष्टि की प्राप्ति होती है कुछ देर तक दृष्टि चलती भी है लेकिन कई बार ऐसे अवसर आ जाते हैं ईर्ष्यावस कोई दूसरा तांत्रिक आपकी दिव्य दृष्टि को बांध देता है।फिर आपकी सभी शक्तियां अपने आप से ओझल हो जाती हैं l


 👉इस समस्या का निराकरण करूंगा और आपको बताऊंगा कि कितना जरूरी है एक साधक के पास दिव्य दृष्टि का होना साधक चाहे नया हो या पुराना।दिव्य दृष्टि की शक्ति उन्ही साधकों को प्राप्त होती है जिनका ज्यादा झुकाव रूहानियत की तरफ होता है इस शक्ति को प्राप्त कर लेना आसान है लेकिन इस शक्ति को अपने पास टिका कर रखना आसान नहीं है।


 👉एक साधक होने के नाते मुझे दो चीजें बहुत बुरी लगती हैं एक ट्रांसफर दूसरा शक्तिपात ये दो बातें साधक को पथभ्रष्ट कर देती है जो लोग इन दो बातों के पीछे लगे रहते है वास्तव में उन्हें साधना से कुछ लेना देना नही होता बल्कि स्ट्रीट फूड की तरह सब कुछ पाना चाहते हैं हालांकि ये बातें सत्य पर आधारित हैं फिर भी उस स्तर के आमिल और योगी लोग बहुत कम ही है और मैं तो यही बोलूँगा की ना के बराबर ही है। किसी की हानि कर के और किसी के भविष्य को बिगाड़ देने वाले आदमी को भी साधक नही कहा जा सकता ये वो बातें है जैसे नागमणि,गजमुक्ता, बाँसमुक्ता इत्यादि ये चीज़ें वास्तविक रूप से है तो सही लेकिन गूलर के फूल की तरह जो कि बहुत अधिक परिश्र्म और अपना सभकुछ खोकर ही प्राप्त होती है और जब वो प्राप्त होती है तो आदमी के पास अपना कुछ नही बचता।


 👉किसी ने सच ही बोल है कि, "प्रेम गली अति सांकरी ता में दो ना समाय,जब मैं था तब हरि नही हरि है तब मैं नाय"।


 👉दिव्य दृष्टि बहुत सारे तरीक़ों से प्राप्त होती है उनमेंसे मुख्य हैं देवी देवता भूत पिसाच की साधना द्वारा योग साधना द्वारा त्राटक के अभ्यास से या ध्यान लगाने से शक्ति प्राप्त हो जाती है।और प्राप्ति होना ही सभ कुछ नही उसके बाद भी उस सिद्धि के प्रभाव को चालू रखने के लिए अभ्यास या नित्यप्रति जाप की आवश्यकता होती है ये नही की एक बार ही शक्ति प्राप्त कर ली और हो गया ।


👉○देवी या देवता द्वारा प्राप्त हुई दिव्य दृष्टि की शक्ति चिरस्थायी और बहुत ही अधिक शक्तिशाली और प्रभावी होती है इसमे साधक भूत काल वर्तमान काल भविष्य काल के बारे में याचक को 100% बिल्कुल सही बता सकता है।लेकिन इसे प्राप्त करने में बहुत ज्यादा समय लगता है।

○👉पिशाच या पिशाचिनी द्वारा ये साधनायें मुख्य रूप से रजो और तमोगुण प्रधान होती है और कुछ समय के परिश्र्म के बाद ही साधक को सिद्धि मिल जाती है इसमें इनकी श्रेणी के हिसाब से फल प्राप्त होता है।


👉भूत प्रेत हमे ये श्रेणी पढ़ने सुनने में निम्न स्तरीय आभास देती है लेकिन ऐसा है नही जिन परियां साधु संत और अघोरी इत्यादि भी इसी श्रेणी में ही आते हैं

       जिस आत्मा को मारने के बाद मोक्ष प्राप्त नही हुआ    

       जो आत्मा अतृप्त रह गयी और अपने पूर्व जीवन के

       संकल्प को नही त्याग सकी उस आत्मा को मैं निजी   

       तौर पे प्रेत की योनि की ही संज्ञा ही दूंगा।


👉○किसी किसी व्यक्ति को कोई दूसरी ऊपरी अपर योनि की आत्मा ग्रस्त कर लेती है और जीवन भर नही छोड़ती उन व्यक्तियों को बिना साधना के भी दृष्टि प्राप्त हो जाती है और वो परालौकिक घटनाओं को देख सकते हैं। लेकिन इसमें एक नकारात्मक आयाम भी है ऐसे व्यक्ति को शारिरिक मानसिक और आर्थिक रूप से बहुत कुछ खोना पड़ता है इस ब्रह्मांड में हर एक वस्तु की कोई न कोई कीमत है वो तो देनी ही पड़ेगी।


👉त्राटक भी इनमें से एक बहुत अच्छा साधन है जिससे साधक को चिरस्थायी दिव्य दृष्टि और सम्मोहन शक्ति की प्राप्ति होती है लेकिन त्राटक का अभ्यास करने के लिए आपको मार्गदर्शन के लिए किसी विशेषज्ञ की आवश्यता पड़ती है बिना गुरु के अभ्यास करने से आंखों की रोशनी भी जा सकती है।


👉मुद्रा और ध्यान योग एवम रेकी का अभ्यास करने से भी दिव्य दृष्टि शक्ति प्राप्त हो जाती है लेकिन इसमे समय लगता है और बिना योग्य शिक्षक के मार्गदर्शन के ये सभी साधनायें और अभ्यास कामयाब नहीं होते।

    

👉आज एक साधारण से प्रयोग से आपको दिव्य दृष्टि की शक्ति को प्राप्त करने का तरीका बताने जा रहा हूँ।


 👉ये साधना रात्रि 10:30 बजे के बाद सुबह भोर तक की  जा सकती है और इसे करने में कोई भय भी नहीं है येपूरी तरह से सुरक्षित है।


👉○घर के एकान्त कमरे में एक ऐसे स्थान का चुनाव करें   ।जहाँ साधना करते समय आपको कोई परेशानी न हो।

   

👉 साथ ही उस समय आपको कोई बुलाये या कोई और

      ध्वनि आपके कानों में ना जाये।


👉 शुभ मुहूर्त में पूर्वाभिमुख होकर घर के एक एकान्त कोने में एक आम की पटरी जो बनने के बाद धोकर सुखा ली गयी हो।स्थापित करें और उस पर लाल रंग का सवा मीटर कपड़ा बिछाकर माता दुर्गा जी का एक चित्र स्थापित करें और कलश स्थापित कर दें मा के चित्र के सामने संकल्प लें और धूप दीप फल पुष्प इत्यादि अर्पित करें तदुपरान्त नैवेद्य में बेसन के लड्डू का भोग लगाएं। एक जल का पात्र पास में रख लें।जाप के अंत में वो जल आपको पीना है।


👉लाल चंदन, रुद्राक्ष,या लाल हक़ीक़ की 108 दानों की माला लें फिर गुरु के चरणों का ध्यान करें और गुरु मंत्र का जाप करें उसके उपरांत श्री गणेश जी और श्री गौरी का सामान्य पूजा करें और 5 माला ॐ गं गणपते नमः का जाप करें।


      फिर आपको एक ही बैठक में "ॐ ह्रोम नमः शिवाय"

      51 माला नित्यप्रति जाप करना है।

      और निम्न मंत्र का 5 माला जाप करना है

👉"कोट कोट पे खेले डाल डाल पर झूले ताल ताल को सुखाये भूत भविष्य को बताए तीर पे तीर चलाये चलाये के पूर्व जन्म को ना बताये तो दृष्टि पिसाच ना कहाये बंद खुली आँखन से बताये सही गाँव संवत जाट धर्म गैल को नेत्रन से न बताये तो अपनी माँ की सैय्या तोड़े वा के चीर पे चोट करे आन कालिका की बंदगी महाकाल शंकर की मेरी भगती गुरु की शक्ति मन्त्र साँचा फूलो मन्त्र ईश्वरी वांचा"।।


👉ये दृष्टि पिसाच का मंत्र है एक बार अगर इससे आपकी नजर या दिव्य दृष्टि खुल जाती है दोबारा बन्द नही होगी इस मन्त्र की कर्णपिशाचिनी के मंत्र की शक्ति के बराबर है लेकि कर्ण पिशाचिनी की साधना में आने वाले खतरे जैसे खतरे इसमे नही आते।


  👉  कुछ ही दिनों में आपके सपनो में और आंख बंद करने  के बाद आपको बहुत सारे सर्पों और साधुओं के दर्शन होंगे साथ ही बहुत सारी विचित्र अनुभूतिया होगी जो  कि बहुत विस्मय करी होंगी जाप के समय आपकी

      दोनों भौहो के बीच स्पंदन या खिचाव महसूस होगा।

      आपके ध्यान में जाते ही आपके सामने चलचित्र की   

      तरह आकृतियां आने लगेगी आप इतने सक्षम हो   

      जाएंगे कि कोई भी आदमी या  ईत्तरयोनि का जीव भीआपसे कुछ छिपा नहीं पायेगा

      आप जिस भी वस्तु या प्राणी का ध्यान करेंगे वो आंखे   बंद करके ध्यान में जाते ही वास्तविक रूप से आपके  सामने आ जायेगा।


👉○ सोमवार को शिव उपासना करें और व्रत धारण करें

       त्रयोदसी का व्रत बिना नागे के धारण करें।

○ 👉सभी साधना विषयक नियमों का सख्ती से पालन करें।


 

 👉ये याद रखो कि आपको साधना के समय या वैसे भी   

      कब्ज़ी की शिकायत ना हो अगर है तो पहले उसकी    

      प्राकृतिक चिकित्सा करवाएं।


○ 👉बीज मंत्र की और शास्त्रिक साधना करते हुए शुद्ध उच्चारण भूतशुद्धि न्यास और जितनी भी शास्त्रिक मर्यादा है उनका पालन करें।

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