पार्थिवशिवलिंगपूजा विधि
।। पार्थिवशिवलिंगपूजा विधि ।।
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पार्थिव (मिट्टी से बना) शिवलिंग पूजन से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। इस पूजन को कोई भी स्वयं कर सकता है। ग्रह का अनिष्ट प्रभाव हो या अन्य कामना की पूर्ति सभी कुछ इस पूजन से प्राप्त हो जाता है।
सर्व प्रथम किसी पवित्र स्थान पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख ऊनी आसन पर बैठकर गणेश गुरुस्मरण आचमन, प्राणायाम पवित्रीकरण करके संकल्प करें।
दायें हाथ में जल अक्षत सुपारी पान का पत्ते पर एक द्रव्य सिक्के के साथ निम्न संकल्प करें।
संकल्प-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्री मद् भगवतो महा पुरूषस्य विष्णोराज्ञया पर्वतमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽहनि द्वितीये परार्धे श्री श्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तेक देशान्तर्गते बौद्धावतारे (अमुक नामनि) संवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुक तिथौ अमुकवासरे अमुक नक्षत्रे शेषेशु ग्रहेषु यथा यथा राशि स्थानेषु स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायां अमुक गोत्रोत्पन्नोऽमुक नामाहं मम कायिक वाचिक,मानसिक ज्ञाताज्ञात सकल दोष परिहार्थं श्रुतिस्मृति पुराणोक्त फल प्राप्तयर्थं श्री मन्महा मृत्युञ्जय शिव प्रीत्यर्थं सकल कामना सिद्धयर्थं शिव पार्थिवेश्वर शिवलिगं पूजनमह करिष्ये।
तत्पश्चात त्रिपुण्ड और रूद्राक्ष माला धारण करें और शुद्ध की हुई मिट्टी इस मंत्र से अभिमंत्रित करें।
"ॐ ह्रीं मृतिकायै नमः।"
फिर "वं" मंत्र का उच्चारण करते हुए मिटी् में जल डालकर "ॐ वामदेवाय नमः" इस मंत्र से मिलाएं।
१.ॐ हराय नमः,
२.ॐ मृडाय नमः,
३.ॐ महेश्वराय नमः बोलते हुए शिवलिंग, माता पार्वती गणेश कार्तिक एकादश रूद्र का निर्माण करें।
अब पीतल, तांबा या चांदी की थाली या बेलपत्र, केला पत्ता पर यह मंत्र बोल कर स्थापित करें।
ॐ शूलपाणये नमः।
विनियोग।
ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा ऋषयः ऋञ्यजुः सामानिच्छन्दांसि प्राणाख्या देवता आं बीजम् ह्रीं शक्तिः कौं कीलकं देव प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास।
ॐ ब्रह्मा विष्णु रूद्र ऋषिभ्यो नमः शिरसि।
ॐ ऋग्यजुः सामच्छन्दोभ्यो नमःमुखे।
ॐ प्राणाख्य देवतायै नमःहृदये।
ॐ आं बीजाय नमःगुह्ये।
ॐ ह्रीं शक्तये नमः पादयोः।
ॐ क्रौं कीलकाय नमः नाभौ।
ॐ विनियोगाय नमःसर्वांगे।
अब न्यास के बाद एक पुष्प या बेलपत्र से शिवलिंग का स्पर्श करते हुए प्राणप्रतिष्ठा मंत्र बोलें।
प्राणप्रतिष्ठा मंत्र।
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं शिवस्य प्राणा इह प्राणाः।
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं शिवस्य जीव इह स्थितः।
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं शिवस्य सर्वेन्द्रियाणि,वाङ् मनस्त्वक् चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण पाणिपाद पायूपस्थानि इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।
आवाहन करें।
ॐ भूः पुरूषं साम्ब सदाशिव मावाहयामि,
ॐ भुवः पुरूषं साम्बसदाशिव मावाहयामि,
ॐ स्वः पुरूषं साम्बसदाशिव मावाहयामि।
ॐस्वामिन सर्व जगन्नाथ यावत्पूजावसानकम्
तावत्वम्मप्रीतिभावेन लिंगेऽस्मिन सन्निधिं कुरू।।
अब "ॐ" से तीन बार प्राणायाम कर न्यास करें।
संक्षिप्त न्यास विधि-
विनियोग
ॐ अस्य श्री शिव पञ्चाक्षर मंत्रस्य वामदेव ऋषि अनुष्टुप छन्दःश्री सदाशिवो देवता ॐ बीजं नमः शक्तिः शिवाय कीलकम मम साम्ब सदाशिव प्रीत्यर्थें न्यासे पार्थिव लिंग पूजने जपे च विनियोगः।।
ऋष्यादिन्यास।
ॐ वामदेव ऋषये नमः शिरसि।
ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे।
ॐ श्री साम्बसदाशिव देवतायै नमः हृदये।
ॐ ॐ बीजाय नमः गुह्ये।
ॐ नमः शक्तये नमः पादयोः।
ॐ शिवाय कीलकाय नमः नाभौ।
ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे।
शिव पंचमुख न्यास।
ॐ नं तत्पुरूषाय नमः हृदये।
ॐ मम् अघोराय नमःपादयोः।
ॐ शिं सद्योजाताय नमः गुह्ये।
ॐ वां वामदेवाय नमः मस्तके।
ॐ यम् ईशानाय नमःमुखे।
कर न्यास।
ॐ ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ नं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ मं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ शिं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ वां कनिष्टिकाभ्यां नमः।
ॐ यं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादिन्यास।
ॐ ॐ हृदयाय नमः।
ॐ नं शिरसे स्वाहा।
ॐ मं शिखायै वषट्।
ॐ शिं कवचाय हुम।
ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ यं अस्त्राय फट्।
ध्यानम्।
ध्यायेनित्यम महेशं रजतगिरि निभं चारू चन्द्रावतंसं,रत्ना कल्पोज्जवलागं परशुमृग बराभीति हस्तं प्रसन्नम।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतम मरगणै व्याघ्रकृतिं वसानं,
विश्वाधं विश्ववन्धं निखिल भय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।
अब नीचे के मंत्र से आवाहन करें।
ॐ पिनाकधृषे नमः साम्ब सदाशिव पार्थिवेश्वर इहागच्छ इहाप्रतिष्ठ इह संनिहितो भव।
अब शुद्ध जल, मधु, गो घृत, शक्कर, हल्दीचूर्ण, रोलीचंदन, जायफल, गुलाबजल, दही से एक-एक करके स्नान करायें।
"नमःशिवाय" मंत्र का जप करते रहें, फिर चंदन, भस्म अभ्रक पुष्प, भांग, धतूरा, बेलपत्र से श्रृंगार कर नैवेद्य अर्पण करें।
तथा मंत्र जप या स्तोत्र का पाठ करें। अंत में कपूर आरती एवं क्षमा प्रार्थना करें।
कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयारविन्दे
भवंभवानी सहितं नमामि।।
पुष्पांजलि केबाद गंध अक्षत पुष्प द्वारा शंकर की अष्ट मूर्तियों की आठ दिशाओं में पूजन करें।
पूर्व- ॐ शर्वाय क्षितिमूर्तये नमः।
ईशान- ॐ भवाय जलमूर्तये नम:
उत्तर- ॐ रुद्राय अग्निमूर्तये नम:।
वायव्य- ॐ उग्राय वायुमूर्तये नम:।
पश्चिम- ॐ भीमाय आकाश मूर्त ये नम:।
नैऋत्य- ॐ पशुपतये यजमान मूर्तये नम:।
दक्षिण- ॐ महादेवाय सोममूर्तये नम:।
अग्नि- ॐ ईशानाय सूर्यमूर्तये नम:।
इसके बाद रुद्राक्ष माला से शिव मंत्र का जप कर अर्पण करें।
गुह्याति गुह्य गोप्ता त्वं गृहणास्मत्कृतं जपं।
सिद्धिर्भवतु मे देव!त्वतप्रसादान् महेश्वर।।
क्षमा प्रार्थना।
आवाहनं न जानामि न जानामि
विसर्जनं।
पूजां नैव हि जानामि क्षमस्व परमेश्वर।।
मंत्रहीनं क्रिया हीनं भक्ति हीनं सुरेश्वर।
यत् पूजितं महादेव परिपूर्णं तदस्तु में।।
मनोकामना निवेदन कर अक्षत लेकर निम्न मंत्र से विसर्जन करें।
विसर्जन मंत्रः।
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने महेश्वर पूजा अर्चना काले पुनरागमनाय च।
ॐ विष्णवे नमः ॐ विष्णवे नमः ॐ विष्णवे नमः।
समर्पण करें।
अनेन पार्थिव लिंग पूजन कर्मणा श्रीयज्ञ स्वरूप:शिव प्रीयताम् न मम।।
फिर पार्थिव लिंग को नदी कुआँ या तालाब में प्रवाहित करें।
।। ॐ नमः शिवाय ।।
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