धर्मोत्तर पुराण का रहस्य: विनायकी - गणेश जी का वह रूप जो हर बाधा दूर करता है | कामरुपनी
सिर्फ 1% हिंदू जानते हैं गणेश जी के इस 'देवी' अवतार के बारे में!
हुक: अगर आपसे पूछा जाए कि गणेश जी का स्त्री रूप क्या है, तो शायद आप सोचने पर मजबूर हो जाएं। हालाँकि, हिंदू धर्मग्रंथों में विनायकी के रूप में उनका एक शक्तिशाली, पर शायद सबसे कम ज्ञात, देवी अवतार मौजूद है।
आपने भगवान विष्णु, ब्रह्मा, हनुमान और अर्जुन तक के स्त्री रूप धारण करने की कहानियाँ सुनी होंगी। पौराणिक कथाओं में, ऐसे परिवर्तन अक्सर ब्रह्मांडीय संतुलन के लिए आवश्यक होते हैं। लेकिन एक रहस्य ऐसा है जो बहुत कम लोग जानते हैं: प्रथम पूजनीय भगवान गणेश ने भी एक बार पूर्ण स्त्री अवतार लिया था।
मिलिए विनायकी से।
यह मनमोहक कथा, जिसका वर्णन ग्रंथों जैसे धर्मोत्तर पुराण (बाहरी लिंक) और वन दुर्गा उपनिषद (जहाँ उन्हें गणेश्वरी कहा गया है) में मिलता है, गणेश जी की उस शक्ति को उजागर करती है जिसे अनदेखा किया गया है।
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श्री गणेश चालीसा के बारे में जानेंवह युद्ध जिसने देवी को पुकारा
यह घटना तब शुरू हुई जब असुर अंधक ने जबरन माता पार्वती को अपनी पत्नी बनाने का प्रयास किया। उनकी रक्षा के लिए, भगवान शिव ने तुरंत हस्तक्षेप किया और अपने त्रिशूल से अंधक पर वार किया।
परंतु यह दानव आसानी से हार मानने वाला नहीं था। अंधक के रक्त की हर एक बूँद जो जमीन पर गिरती थी, उससे एक नई, भयानक राक्षसी अंधका उत्पन्न होती जा रही थी। यह स्थिति एक भयावह बाढ़ की तरह थी जिसे कोई रोक नहीं पा रहा था।
पार्वती ने तब एक गहरे सत्य को समझा: प्रत्येक cosmic power (ब्रह्मांडीय शक्ति) में दोनों तत्व होते हैं—पुरुष तत्व (जो मानसिक क्षमता देता है) और स्त्री तत्व (जो वास्तविक, संहारक ऊर्जा प्रदान करता है)। उन्होंने ब्रह्मांड की सभी शक्ति (देवी) को आमंत्रित किया। देवियाँ युद्ध के लिए आईं, लेकिन रक्त का बहना रुक नहीं रहा था।
विनायकी का उदय और शक्ति
जब सभी देवियों की सम्मिलित शक्ति भी अंधक के लगातार बढ़ते रक्त को नियंत्रित नहीं कर पाई, तो केवल एक ही समाधान बचा। भगवान गणेश ने युद्ध के मैदान में कदम रखा—पुरुष के रूप में नहीं, बल्कि शक्तिशाली देवी विनायकी के रूप में।
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माता पार्वती के शक्ति रूपों के बारे में जानेंविनायकी के रूप में प्रकट होकर, गणेश जी ने अंतिम और निर्णायक कार्य किया: उन्होंने असुर के गिरते रक्त की एक-एक बूँद को पी लिया। इस अंतिम प्रयास से उसका पुनर्जन्म रुक गया, जिससे देवियों के लिए मूल दानव अंधक को नष्ट करना संभव हो गया। इस प्रकार, विनायकी को "विघ्नहर्ता" (बाधाओं को दूर करने वाला) का स्त्री रूप माना जाता है, जो सबसे जटिल समस्याओं का भी समाधान करती हैं।
विनायकी का स्वरूप और प्राचीन साक्ष्य
दिलचस्प बात यह है कि विनायकी के सबसे शुरुआती ज्ञात चित्रण 16वीं शताब्दी के हैं, हालांकि उनका उल्लेख आठवीं शताब्दी के ग्रंथों में मिलता है। उनका स्वरूप शक्तिशाली और विशिष्ट है: वह लगभग माता पार्वती जैसी दिखती हैं, लेकिन उनका सिर गणेश जी की तरह एक गज (हाथी) का होता है। वे आम तौर पर चार भुजाओं वाली और एक हाथ में मोदक धारण किए हुए चित्रित की जाती हैं, जो गणेशजी के प्रिय भोग का प्रतीक है।
पुरातात्विक साक्ष्य हमें भारत के विभिन्न हिस्सों में विनायकी की प्राचीन मूर्तियों की ओर ले जाते हैं। उदाहरण के लिए, उड़ीसा में एक प्राचीन मंदिर में उनकी अद्भुत प्रतिमा है, और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों में भी उनकी पूजा की परंपरा मिलती है। ये मूर्तियां दर्शाती हैं कि विनायकी की पूजा एक समय
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