Ganpati Atharvashirsha Lyrics Hindi English with Meaning and pdf
श्री गणेश अथर्वशीर्ष
श्री गणेश अथर्वशीर्ष: एक परिचय
क्या आप जीवन की बाधाओं से जूझ रहे हैं और शांति व समृद्धि की तलाश में हैं? क्या आप एक ऐसे प्राचीन स्रोत की खोज में हैं जो ज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान कर सके? यदि हाँ, तो श्री गणेश अथर्वशीर्ष आपके लिए एक अमूल्य मार्गदर्शक हो सकता है। यह सिर्फ एक पाठ नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली वैदिक उपनिषद है जो भगवान गणेश को सर्वोच्च ब्रह्म के रूप में स्थापित करता है। यह बताता है कि वे ही सृष्टि के निर्माता, पालनकर्ता और संहारक हैं। बुद्धि व विद्या के दाता गणेश जी परमात्मा का विघ्ननाशक स्वरूप है। श्री गणेश के भक्त विभिन्न प्रकार से उनकी अनेक श्लोक, स्तोत्र, जाप द्वारा गणेशजी की आराधना करते हैं। इनमें से गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी बहुत मंगलकारी है। यह पाठ उन सभी के लिए विशेष रूप से लाभकारी है जो बाधाओं को दूर करने, एकाग्रता बढ़ाने और आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा रखते हैं।
गणेश अथर्वशीर्ष का संपूर्ण पाठ और अर्थ
यहां गणेश अथर्वशीर्ष का संस्कृत पाठ और उसका विस्तृत हिंदी व अंग्रेजी अनुवाद दिया गया है। प्रतिदिन प्रात: शुद्ध होकर इस पाठ करने से गणेशजी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।
अर्थ: हे गणपति, तुम्हें नमस्कार है। तुम ही प्रत्यक्ष तत्त्व हो।
oṃ namaste gaṇapataye। tvameva pratyakṣaṃ tattvamasi।
Meaning: O Gana-pati, salutations to you. You are the manifest reality.
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।
अर्थ: तुम ही केवल कर्ता हो। तुम ही केवल धारणकर्ता हो। तुम ही केवल संहारक हो। तुम ही निश्चय से यह सब ब्रह्म हो। तुम ही साक्षात् नित्य आत्मा हो।
tvameva kevalaṃ kartāsi। tvameva kevalaṃ dhartāsi। tvameva kevalaṃ hartāsi। tvameva sarvaṃ khalvidaṃ brahmāsi। tvaṃ sākṣādātmāsi nityam॥1॥
Meaning: You alone are the creator. You alone are the sustainer. You alone are the destroyer. You alone are indeed all this Brahma. You are the eternal Self, the very essence of everything.
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
अर्थ: मैं ऋत (अलौकिक सत्य) कहता हूँ। मैं सत्य (लौकिक सत्य) कहता हूँ।
ṛtaṃ vacmi। satyaṃ vacmi॥2॥
Meaning: I speak the cosmic law (Ṛta). I speak the truth (Satya).
अव त्व मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चातात। अव पुरस्तात। अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।। सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
अर्थ: मेरी रक्षा करो। वक्ता की रक्षा करो। श्रोता की रक्षा करो। दाता की रक्षा करो। धाता की रक्षा करो। शिष्य की रक्षा करो। पीछे से रक्षा करो। सामने से रक्षा करो। उत्तर दिशा से रक्षा करो। दक्षिण दिशा से रक्षा करो। ऊपर से रक्षा करो। नीचे से रक्षा करो। सब ओर से मेरी रक्षा करो, चारों ओर से रक्षा करो।
ava tvaṃ mām। ava vaktāram। ava śrotāram। ava dātāram। ava dhātāram। avānūcānamava śiṣyam। ava paścāttāt। ava purastāt। avottarāttāt। ava dakṣiṇāttāt। ava cordhvāttāt। avādharāttāt। sarvato māṃ pāhi pāhi samantāt॥3॥
Meaning: Protect me. Protect the speaker. Protect the listener. Protect the giver. Protect the protector. Protect the student. Protect from the back. Protect from the front. Protect from the north. Protect from the south. Protect from above. Protect from below. Protect me from all sides, from every direction.
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।
अर्थ: तुम वाङ्मय हो (शब्दों से बने हो), तुम चिन्मय हो (ज्ञान से बने हो)। तुम आनन्द से भरे हो, तुम ब्रह्ममय हो। तुम सच्चिदानन्द अद्वितीय हो। तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुम ज्ञानमय हो, तुम विज्ञानमय हो।
tvaṃ vāṅmayastvaṃ cinmayaḥ। tvamānandamayastvaṃ brahmamayaḥ। tvaṃ saccidānandā'dvitīyo'si। tvaṃ pratyakṣaṃ brahmāsi। tvaṃ jñānamayo vijñānamayo'si॥4॥
Meaning: You are the form of speech, you are the form of consciousness. You are the form of bliss, you are the form of Brahma. You are the one without a second, of the nature of Existence, Consciousness, and Bliss. You are the manifest Brahma. You are full of knowledge, you are full of supreme wisdom.
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।
अर्थ: यह सारा जगत तुमसे उत्पन्न होता है। यह सारा जगत तुममें ही स्थित रहता है। यह सारा जगत तुममें ही लीन हो जाता है। यह सारा जगत तुममें ही वापस आता है। तुम ही पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश हो। तुम ही वाणी के चार पद (परा, पश्यंती, मध्यमा, वैखरी) हो।
sarvaṃ jagadidaṃ tvatto jāyate । sarvaṃ jagadidaṃ tvattastiṣṭhati। sarvaṃ jagadidaṃ tvayi layameṣyati। sarvaṃ jagadidaṃ tvayi pratyeti। tvaṃ bhūmirāpo’nalo’nilo nabhaḥ। tvaṃ catvāri vāk padāni॥5॥
Meaning: All this universe is born from you. All this universe is sustained by you. All this universe dissolves into you. All this universe returns to you. You are the earth, water, fire, air, and space. You are the four states of speech.
त्वं गुणत्रयातीत:। त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।
अर्थ: तुम तीन गुणों (सत्व, रज, तम) से परे हो। तुम तीन अवस्थाओं (जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति) से परे हो। तुम तीन शरीरों (स्थूल, सूक्ष्म, कारण) से परे हो। तुम तीन कालों (भूत, वर्तमान, भविष्य) से परे हो। तुम नित्य मूलाधार में स्थित हो। तुम तीन शक्तियों (इच्छा, क्रिया, ज्ञान) के रूप हो। योगी नित्य तुम्हारा ध्यान करते हैं। तुम ब्रह्मा, तुम विष्णु, तुम रुद्र, तुम इंद्र, तुम अग्नि, तुम वायु, तुम सूर्य, तुम चंद्रमा, तुम ही ब्रह्म हो, तुम ही भूः भुवः स्वः और ॐ हो।
tvaṃ guṇatrayātītaḥ। tvaṃ avasthātrayātītaḥ। tvaṃ dehatrayātītaḥ। tvaṃ kālatrayātītaḥ। tvaṃ mūlādhārasthito’si nityam। tvaṃ śaktitrayātmakaḥ। tvāṃ yogino dhyāyanti nityam। tvaṃ brahmā tvaṃ viṣṇustvaṃ rudrastvamindrastvamagnistvaṃ vāyustvaṃ sūryastvaṃ candramāstvaṃ Brahma bhūrbhuvassuvarom॥6॥
Meaning: You are beyond the three Gunas (Sattva, Rajas, Tamas). You are beyond the three states of consciousness (waking, dreaming, sleeping). You are beyond the three bodies (gross, subtle, causal). You are beyond the three times (past, present, future). You eternally reside in the Mooladhara Chakra. You are the embodiment of the three powers (Ichcha, Kriya, Jnana). The Yogis meditate on you eternally. You are Brahma, you are Vishnu, you are Rudra, you are Indra, you are Agni, you are Vayu, you are Surya, you are Chandra, you are the Supreme Being of the three worlds (Bhur, Bhuvah, Suvah) and Om.
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं। तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं। गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं। अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं। नाद: संधानं। सं हितासंधि: सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि: निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
अर्थ: ‘ग’ अक्षर का पहले उच्चारण करके, उसके बाद ‘अ’ अक्षर का उच्चारण करके, फिर अनुस्वार (बिंदी) का उच्चारण करके, जो कि अर्धचंद्र से सुशोभित है, जो तार (ॐ) से समृद्ध है—यह तुम्हारा मंत्र-स्वरूप है। ‘ग’ पूर्व-रूप है। ‘अ’ मध्य-रूप है। अनुस्वार अंतिम रूप है। बिन्दु उत्तर-रूप है। नाद संधान है। यह गणेश-विद्या है। इसके ऋषि गणक हैं, छंद निचृद् गायत्री है, और देवता गणपति हैं। ॐ गं गणपतये नम:। (यह मंत्र है)।
gaṇādiṃ pūrvamuccārya varṇādīṃstadanantaram। anusvāraḥ parataraḥ। ardhendulasitam। tāreṇa ṛddham। etattava manusvarūpam। gakāraḥ pūrvarūpam। akāro madhyamarūpam। anusvāraścāntyarūpam। binduruttararūpam। nādaḥ sandhānam। saṁhitā sandhiḥ। saiṣā gaṇeśavidyā। gaṇaka ṛṣiḥ। nicṛdgāyatrīcchandaḥ। gaṇapatirdevatā। oṃ gaṃ gaṇapataye namaḥ॥7॥
Meaning: By first uttering the syllable ‘ga’, then the first syllable of the alphabet ‘a’, then the supreme nasal sound (anusvāra), adorned with the crescent moon, enriched by Om — this is your Mantra form. The syllable ‘ga’ is the first form. The syllable ‘a’ is the middle form. The anusvāra is the final form. The bindu (dot) is the transcendent form. The nada (sound) is the connection. The combination of these is the joint. This is the Ganesha Vidya (knowledge). The Rishi is Ganaka, the meter is Nicṛd Gayatṛi, and the deity is Ganapati. Om Gam Ganapataye Namaha.
एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
अर्थ: हम एकदन्त को जानते हैं। हम वक्रतुण्ड का ध्यान करते हैं। वह दन्ती हमें प्रेरित करे।
ekadantāya vidmahe vakratuṇḍāya dhīmahi। tanno dantiḥ pracodayāt॥8॥
Meaning: We know the one with a single tusk. We meditate upon the one with a curved trunk. May that Danti (one with a tusk) inspire us.
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।। भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृते पुरुषात्परम्। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।
अर्थ: एकदन्त, चार हाथों वाले, पाश (फंदा) और अंकुश धारण करने वाले, एक दांत और वरदान देने वाले, जिनके ध्वज पर मूषक है, जो रक्त वर्ण के हैं, लम्बे पेट वाले, सूप जैसे कान वाले, लाल वस्त्र पहनने वाले, लाल चंदन से लिप्त अंग वाले और लाल फूलों से पूजे जाने वाले, भक्तों पर दया करने वाले, जगत के कारण, अविनाशी, सृष्टि के आरंभ में प्रकृति और पुरुष से भी परे प्रकट हुए - जो इस प्रकार नित्य ध्यान करता है, वह योगी योगियों में श्रेष्ठ होता है।
ekadantaṃ caturhastaṃ pāśamaṇkuśadhāriṇaṃ। radaṃ ca varadaṃ hastairbibhrāṇaṃ mūṣakadhvajaṃ । raktaṃ lambodaraṃ śurpakarṇaṃ raktavāsasaṃ । raktagandhānuliptaṇgaṃ raktapuṣpaiḥ supūjitaṃ । bhaktānukampinaṃ devaṃ jagatkāraṇamacyutaṃ । āvirbhūtaṃ ca sṛṣtyādau prakṛteḥ puruṣatparaṃ । evaṃ dhyāyati yo nityaṃ sa yogī yogināṃ varaḥ॥9॥
Meaning: He who meditates daily on the one-tusked, four-armed one, who holds a noose and a goad, who holds his tusk and a boon-giving hand, whose flag bears a mouse, who is red, has a large belly, ears like a winnowing basket, and wears red clothes, whose limbs are smeared with red sandalwood, who is worshipped with red flowers, the compassionate God of devotees, the imperishable cause of the universe, who manifested at the beginning of creation, transcending Prakriti and Purusha — that Yogi is the best among Yogis.
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नम: प्रमथपतये। नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय। विघ्ननाशिने शिवसुताय। श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
अर्थ: व्रातपति को नमस्कार है। गणपति को नमस्कार है। प्रमथपति को नमस्कार है। लंबोदर और एकदंत को नमस्कार है। विघ्नों का नाश करने वाले, शिवपुत्र, वरद मूर्ति को बार-बार नमस्कार है।
namo vrātapataye। namo gaṇapataye। namaḥ pramathapataye। namaste'stu lambodarāyaikadantāya। vighnanāśine śivasutāya। śrīvaradamūrtaye namo namaḥ॥10।।
Meaning: Salutations to the Lord of groups (Vratapati). Salutations to the Lord of Ganas (Ganapati). Salutations to the Lord of the Pramathas. Salutations to the one with a big belly and a single tusk. To the destroyer of obstacles, the son of Shiva, the boon-giving form, salutations again and again.
संपूर्ण संस्कृत पाठ
ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
अव त्व मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चातात। अव पुरस्तात। अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।। सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।
त्वं गुणत्रयातीत:। त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं। तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं। गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं। अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं। नाद: संधानं। सं हितासंधि: सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि: निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।। भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृते पुरुषात्परम्। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नम: प्रमथपतये। नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय। विघ्ननाशिने शिवसुताय। श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
गणपति अथर्वशीर्ष पाठ विधि
गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ हमेशा शुद्ध मन और शरीर के साथ करना चाहिए। इसकी विधि इस प्रकार है:
- प्रतिदिन प्रात: स्नान आदि से शुद्ध होकर यह पाठ करें।
- आसन पर बैठ कर पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की दिशा की ओर मुख करके पाठ करना चाहिए।
- शांत चित्त और एकाग्र मन से पाठ करने से गणेशजी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
- गणेश चतुर्थी जैसे विशेष दिनों पर इसका पाठ अधिक फलदायी होता है।
गणेश अथर्वशीर्ष पाठ से लाभ
इस पवित्र ग्रंथ का नियमित जप साधक के जीवन में बुद्धि, विवेक और सफलता का संचार करता है। इसे पढ़ने से सभी बाधाएँ दूर होती हैं और विघ्नों का नाश होता है। यह मनुष्य के जीवन में सर्वांगीण उन्नति होती है।
- बाधाओं का नाश: इसके पाठ से सभी प्रकार के विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं।
- बुद्धि व ज्ञान में वृद्धि: विद्यार्थी वर्ग के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है क्योंकि यह एकाग्रता, स्मरण शक्ति और निर्णय क्षमता को बढ़ाता है।
- व्यापार और नौकरी में उन्नति: व्यापार या नौकरी में आ रही रुकावटें दूर होती हैं, और उन्नति के मार्ग खुलते हैं।
- आर्थिक समृद्धि: आर्थिक समस्या दूर होने के साथ समृद्धि बढ़ती है।
- नकारात्मकता का अंत: विचारों से नकारात्मकता खत्म होती है और पवित्रता आती है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह साधक को आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर ले जाता है।
श्री गणेश अथर्वशीर्ष का श्रवण करें
गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ को सही उच्चारण के साथ सुनने और उसके भाव को समझने के लिए आप नीचे दिया गया वीडियो देख सकते हैं।
वीडियो जानकारी:
- शीर्षक: Ganesh Atharvashirsha By Anuradha Paudwal I Ganesh Stuti
- चैनल: T-Series Bhakti Sagar
- अवधि: 13 मिनट 21 सेकंड
- भाषा: संस्कृत
भारत के प्रमुख गणेश मंदिर
गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने के साथ-साथ, भारत में कई ऐसे प्राचीन और प्रसिद्ध गणेश मंदिर हैं, जिनके दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यहां कुछ सबसे प्रसिद्ध मंदिरों की जानकारी दी गई है:
श्री सिद्धि विनायक मंदिर, मुंबई
मुंबई में स्थित, यह मंदिर भारत के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। इसकी प्रसिद्धि का कारण यहां की गणेश प्रतिमा है, जिसके सूंड दाईं ओर है, जिसे 'सिद्धिविनायक' कहा जाता है।
- स्थान: प्रभादेवी, मुंबई, महाराष्ट्र
- समय: सुबह 5:30 बजे से रात 9:50 बजे तक (मंगलवार को सुबह 3:15 बजे से शुरू)
- विशेष: खासकर मंगलवार को और गणेश चतुर्थी के दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर, पुणे
यह मंदिर अपनी भव्यता और समृद्धि के लिए जाना जाता है। इस मंदिर की प्रतिमा का बीमा 1 करोड़ रुपये से अधिक का है, जो इसकी दिव्यता और महत्व को दर्शाता है।
- स्थान: गुरुवार पेठ, पुणे, महाराष्ट्र
- समय: सुबह 6:00 बजे से रात 11:00 बजे तक
- विशेष: गणेशोत्सव के दौरान यह मंदिर भव्य सजावट और कार्यक्रमों के साथ एक प्रमुख आकर्षण बन जाता है।
मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर
राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक छोटी पहाड़ी पर स्थित, यह मंदिर अपने सुंदर और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। यहां की मूर्ति लगभग 250 साल पुरानी मानी जाती है।
- स्थान: मोती डूंगरी, जयपुर, राजस्थान
- समय: सुबह 5:30 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक और शाम 4:30 बजे से रात 9:30 बजे तक
- विशेष: मंदिर का वास्तुशिल्प और कलात्मक सुंदरता पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित करती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
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