धर्मोत्तर पुराण का रहस्य: विनायकी - गणेश जी का वह रूप जो हर बाधा दूर करता है | कामरुपनी

सिर्फ 1% हिंदू जानते हैं गणेश जी के इस 'देवी' अवतार के बारे में!

हुक: अगर आपसे पूछा जाए कि गणेश जी का स्त्री रूप क्या है, तो शायद आप सोचने पर मजबूर हो जाएं। हालाँकि, हिंदू धर्मग्रंथों में विनायकी के रूप में उनका एक शक्तिशाली, पर शायद सबसे कम ज्ञात, देवी अवतार मौजूद है।

आपने भगवान विष्णु, ब्रह्मा, हनुमान और अर्जुन तक के स्त्री रूप धारण करने की कहानियाँ सुनी होंगी। पौराणिक कथाओं में, ऐसे परिवर्तन अक्सर ब्रह्मांडीय संतुलन के लिए आवश्यक होते हैं। लेकिन एक रहस्य ऐसा है जो बहुत कम लोग जानते हैं: प्रथम पूजनीय भगवान गणेश ने भी एक बार पूर्ण स्त्री अवतार लिया था।

मिलिए विनायकी से।

यह मनमोहक कथा, जिसका वर्णन ग्रंथों जैसे धर्मोत्तर पुराण (बाहरी लिंक) और वन दुर्गा उपनिषद (जहाँ उन्हें गणेश्वरी कहा गया है) में मिलता है, गणेश जी की उस शक्ति को उजागर करती है जिसे अनदेखा किया गया है।

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वह युद्ध जिसने देवी को पुकारा

यह घटना तब शुरू हुई जब असुर अंधक ने जबरन माता पार्वती को अपनी पत्नी बनाने का प्रयास किया। उनकी रक्षा के लिए, भगवान शिव ने तुरंत हस्तक्षेप किया और अपने त्रिशूल से अंधक पर वार किया।

परंतु यह दानव आसानी से हार मानने वाला नहीं था। अंधक के रक्त की हर एक बूँद जो जमीन पर गिरती थी, उससे एक नई, भयानक राक्षसी अंधका उत्पन्न होती जा रही थी। यह स्थिति एक भयावह बाढ़ की तरह थी जिसे कोई रोक नहीं पा रहा था।

पार्वती ने तब एक गहरे सत्य को समझा: प्रत्येक cosmic power (ब्रह्मांडीय शक्ति) में दोनों तत्व होते हैं—पुरुष तत्व (जो मानसिक क्षमता देता है) और स्त्री तत्व (जो वास्तविक, संहारक ऊर्जा प्रदान करता है)। उन्होंने ब्रह्मांड की सभी शक्ति (देवी) को आमंत्रित किया। देवियाँ युद्ध के लिए आईं, लेकिन रक्त का बहना रुक नहीं रहा था।

विनायकी का उदय और शक्ति

जब सभी देवियों की सम्मिलित शक्ति भी अंधक के लगातार बढ़ते रक्त को नियंत्रित नहीं कर पाई, तो केवल एक ही समाधान बचा। भगवान गणेश ने युद्ध के मैदान में कदम रखा—पुरुष के रूप में नहीं, बल्कि शक्तिशाली देवी विनायकी के रूप में।

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विनायकी के रूप में प्रकट होकर, गणेश जी ने अंतिम और निर्णायक कार्य किया: उन्होंने असुर के गिरते रक्त की एक-एक बूँद को पी लिया। इस अंतिम प्रयास से उसका पुनर्जन्म रुक गया, जिससे देवियों के लिए मूल दानव अंधक को नष्ट करना संभव हो गया। इस प्रकार, विनायकी को "विघ्नहर्ता" (बाधाओं को दूर करने वाला) का स्त्री रूप माना जाता है, जो सबसे जटिल समस्याओं का भी समाधान करती हैं।

विनायकी का स्वरूप और प्राचीन साक्ष्य

दिलचस्प बात यह है कि विनायकी के सबसे शुरुआती ज्ञात चित्रण 16वीं शताब्दी के हैं, हालांकि उनका उल्लेख आठवीं शताब्दी के ग्रंथों में मिलता है। उनका स्वरूप शक्तिशाली और विशिष्ट है: वह लगभग माता पार्वती जैसी दिखती हैं, लेकिन उनका सिर गणेश जी की तरह एक गज (हाथी) का होता है। वे आम तौर पर चार भुजाओं वाली और एक हाथ में मोदक धारण किए हुए चित्रित की जाती हैं, जो गणेशजी के प्रिय भोग का प्रतीक है।

पुरातात्विक साक्ष्य हमें भारत के विभिन्न हिस्सों में विनायकी की प्राचीन मूर्तियों की ओर ले जाते हैं। उदाहरण के लिए, उड़ीसा में एक प्राचीन मंदिर में उनकी अद्भुत प्रतिमा है, और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों में भी उनकी पूजा की परंपरा मिलती है। ये मूर्तियां दर्शाती हैं कि विनायकी की पूजा एक समय

Ganpati Atharvashirsha Lyrics Hindi English with Meaning and pdf

श्री गणेश अथर्वशीर्ष: संपूर्ण पाठ, अर्थ और लाभ | Kamrupni

श्री गणेश अथर्वशीर्ष

श्री गणेश अथर्वशीर्ष: एक परिचय

क्या आप जीवन की बाधाओं से जूझ रहे हैं और शांति व समृद्धि की तलाश में हैं? क्या आप एक ऐसे प्राचीन स्रोत की खोज में हैं जो ज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान कर सके? यदि हाँ, तो श्री गणेश अथर्वशीर्ष आपके लिए एक अमूल्य मार्गदर्शक हो सकता है। यह सिर्फ एक पाठ नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली वैदिक उपनिषद है जो भगवान गणेश को सर्वोच्च ब्रह्म के रूप में स्थापित करता है। यह बताता है कि वे ही सृष्टि के निर्माता, पालनकर्ता और संहारक हैं। बुद्धि व विद्या के दाता गणेश जी परमात्मा का विघ्ननाशक स्वरूप है। श्री गणेश के भक्त विभिन्न प्रकार से उनकी अनेक श्लोक, स्तोत्र, जाप द्वारा गणेशजी की आराधना करते हैं। इनमें से गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी बहुत मंगलकारी है। यह पाठ उन सभी के लिए विशेष रूप से लाभकारी है जो बाधाओं को दूर करने, एकाग्रता बढ़ाने और आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा रखते हैं।

गणेश अथर्वशीर्ष का संपूर्ण पाठ और अर्थ

यहां गणेश अथर्वशीर्ष का संस्कृत पाठ और उसका विस्तृत हिंदी व अंग्रेजी अनुवाद दिया गया है। प्रतिदिन प्रात: शुद्ध होकर इस पाठ करने से गणेशजी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।

ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।

अर्थ: हे गणपति, तुम्हें नमस्कार है। तुम ही प्रत्यक्ष तत्त्व हो।

oṃ namaste gaṇapataye। tvameva pratyakṣaṃ tattvamasi।

Meaning: O Gana-pati, salutations to you. You are the manifest reality.

त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।

अर्थ: तुम ही केवल कर्ता हो। तुम ही केवल धारणकर्ता हो। तुम ही केवल संहारक हो। तुम ही निश्चय से यह सब ब्रह्म हो। तुम ही साक्षात् नित्य आत्मा हो।

tvameva kevalaṃ kartāsi। tvameva kevalaṃ dhartāsi। tvameva kevalaṃ hartāsi। tvameva sarvaṃ khalvidaṃ brahmāsi। tvaṃ sākṣādātmāsi nityam॥1॥

Meaning: You alone are the creator. You alone are the sustainer. You alone are the destroyer. You alone are indeed all this Brahma. You are the eternal Self, the very essence of everything.

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।

अर्थ: मैं ऋत (अलौकिक सत्य) कहता हूँ। मैं सत्य (लौकिक सत्य) कहता हूँ।

ṛtaṃ vacmi। satyaṃ vacmi॥2॥

Meaning: I speak the cosmic law (Ṛta). I speak the truth (Satya).

अव त्व मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चातात। अव पुरस्तात। अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।। सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।

अर्थ: मेरी रक्षा करो। वक्ता की रक्षा करो। श्रोता की रक्षा करो। दाता की रक्षा करो। धाता की रक्षा करो। शिष्य की रक्षा करो। पीछे से रक्षा करो। सामने से रक्षा करो। उत्तर दिशा से रक्षा करो। दक्षिण दिशा से रक्षा करो। ऊपर से रक्षा करो। नीचे से रक्षा करो। सब ओर से मेरी रक्षा करो, चारों ओर से रक्षा करो।

ava tvaṃ mām। ava vaktāram। ava śrotāram। ava dātāram। ava dhātāram। avānūcānamava śiṣyam। ava paścāttāt। ava purastāt। avottarāttāt। ava dakṣiṇāttāt। ava cordhvāttāt। avādharāttāt। sarvato māṃ pāhi pāhi samantāt॥3॥

Meaning: Protect me. Protect the speaker. Protect the listener. Protect the giver. Protect the protector. Protect the student. Protect from the back. Protect from the front. Protect from the north. Protect from the south. Protect from above. Protect from below. Protect me from all sides, from every direction.

त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।

अर्थ: तुम वाङ्मय हो (शब्दों से बने हो), तुम चिन्मय हो (ज्ञान से बने हो)। तुम आनन्द से भरे हो, तुम ब्रह्ममय हो। तुम सच्चिदानन्द अद्वितीय हो। तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुम ज्ञानमय हो, तुम विज्ञानमय हो।

tvaṃ vāṅmayastvaṃ cinmayaḥ। tvamānandamayastvaṃ brahmamayaḥ। tvaṃ saccidānandā'dvitīyo'si। tvaṃ pratyakṣaṃ brahmāsi। tvaṃ jñānamayo vijñānamayo'si॥4॥

Meaning: You are the form of speech, you are the form of consciousness. You are the form of bliss, you are the form of Brahma. You are the one without a second, of the nature of Existence, Consciousness, and Bliss. You are the manifest Brahma. You are full of knowledge, you are full of supreme wisdom.

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।

अर्थ: यह सारा जगत तुमसे उत्पन्न होता है। यह सारा जगत तुममें ही स्थित रहता है। यह सारा जगत तुममें ही लीन हो जाता है। यह सारा जगत तुममें ही वापस आता है। तुम ही पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश हो। तुम ही वाणी के चार पद (परा, पश्यंती, मध्यमा, वैखरी) हो।

sarvaṃ jagadidaṃ tvatto jāyate । sarvaṃ jagadidaṃ tvattastiṣṭhati। sarvaṃ jagadidaṃ tvayi layameṣyati। sarvaṃ jagadidaṃ tvayi pratyeti। tvaṃ bhūmirāpo’nalo’nilo nabhaḥ। tvaṃ catvāri vāk padāni॥5॥

Meaning: All this universe is born from you. All this universe is sustained by you. All this universe dissolves into you. All this universe returns to you. You are the earth, water, fire, air, and space. You are the four states of speech.

त्वं गुणत्रयातीत:। त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।

अर्थ: तुम तीन गुणों (सत्व, रज, तम) से परे हो। तुम तीन अवस्थाओं (जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति) से परे हो। तुम तीन शरीरों (स्थूल, सूक्ष्म, कारण) से परे हो। तुम तीन कालों (भूत, वर्तमान, भविष्य) से परे हो। तुम नित्य मूलाधार में स्थित हो। तुम तीन शक्तियों (इच्छा, क्रिया, ज्ञान) के रूप हो। योगी नित्य तुम्हारा ध्यान करते हैं। तुम ब्रह्मा, तुम विष्णु, तुम रुद्र, तुम इंद्र, तुम अग्नि, तुम वायु, तुम सूर्य, तुम चंद्रमा, तुम ही ब्रह्म हो, तुम ही भूः भुवः स्वः और ॐ हो।

tvaṃ guṇatrayātītaḥ। tvaṃ avasthātrayātītaḥ। tvaṃ dehatrayātītaḥ। tvaṃ kālatrayātītaḥ। tvaṃ mūlādhārasthito’si nityam। tvaṃ śaktitrayātmakaḥ। tvāṃ yogino dhyāyanti nityam। tvaṃ brahmā tvaṃ viṣṇustvaṃ rudrastvamindrastvamagnistvaṃ vāyustvaṃ sūryastvaṃ candramāstvaṃ Brahma bhūrbhuvassuvarom॥6॥

Meaning: You are beyond the three Gunas (Sattva, Rajas, Tamas). You are beyond the three states of consciousness (waking, dreaming, sleeping). You are beyond the three bodies (gross, subtle, causal). You are beyond the three times (past, present, future). You eternally reside in the Mooladhara Chakra. You are the embodiment of the three powers (Ichcha, Kriya, Jnana). The Yogis meditate on you eternally. You are Brahma, you are Vishnu, you are Rudra, you are Indra, you are Agni, you are Vayu, you are Surya, you are Chandra, you are the Supreme Being of the three worlds (Bhur, Bhuvah, Suvah) and Om.

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं। तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं। गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं। अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं। नाद: संधानं। सं हितासंधि: सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि: निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम:।।7।।

अर्थ: ‘ग’ अक्षर का पहले उच्चारण करके, उसके बाद ‘अ’ अक्षर का उच्चारण करके, फिर अनुस्वार (बिंदी) का उच्चारण करके, जो कि अर्धचंद्र से सुशोभित है, जो तार (ॐ) से समृद्ध है—यह तुम्हारा मंत्र-स्वरूप है। ‘ग’ पूर्व-रूप है। ‘अ’ मध्य-रूप है। अनुस्वार अंतिम रूप है। बिन्दु उत्तर-रूप है। नाद संधान है। यह गणेश-विद्या है। इसके ऋषि गणक हैं, छंद निचृद् गायत्री है, और देवता गणपति हैं। ॐ गं गणपतये नम:। (यह मंत्र है)।

gaṇādiṃ pūrvamuccārya varṇādīṃstadanantaram। anusvāraḥ parataraḥ। ardhendulasitam। tāreṇa ṛddham। etattava manusvarūpam। gakāraḥ pūrvarūpam। akāro madhyamarūpam। anusvāraścāntyarūpam। binduruttararūpam। nādaḥ sandhānam। saṁhitā sandhiḥ। saiṣā gaṇeśavidyā। gaṇaka ṛṣiḥ। nicṛdgāyatrīcchandaḥ। gaṇapatirdevatā। oṃ gaṃ gaṇapataye namaḥ॥7॥

Meaning: By first uttering the syllable ‘ga’, then the first syllable of the alphabet ‘a’, then the supreme nasal sound (anusvāra), adorned with the crescent moon, enriched by Om — this is your Mantra form. The syllable ‘ga’ is the first form. The syllable ‘a’ is the middle form. The anusvāra is the final form. The bindu (dot) is the transcendent form. The nada (sound) is the connection. The combination of these is the joint. This is the Ganesha Vidya (knowledge). The Rishi is Ganaka, the meter is Nicṛd Gayatṛi, and the deity is Ganapati. Om Gam Ganapataye Namaha.

एकदंताय विद्‍महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।

अर्थ: हम एकदन्त को जानते हैं। हम वक्रतुण्ड का ध्यान करते हैं। वह दन्ती हमें प्रेरित करे।

ekadantāya vidmahe vakratuṇḍāya dhīmahi। tanno dantiḥ pracodayāt॥8॥

Meaning: We know the one with a single tusk. We meditate upon the one with a curved trunk. May that Danti (one with a tusk) inspire us.

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।। भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।

अर्थ: एकदन्त, चार हाथों वाले, पाश (फंदा) और अंकुश धारण करने वाले, एक दांत और वरदान देने वाले, जिनके ध्वज पर मूषक है, जो रक्त वर्ण के हैं, लम्बे पेट वाले, सूप जैसे कान वाले, लाल वस्त्र पहनने वाले, लाल चंदन से लिप्त अंग वाले और लाल फूलों से पूजे जाने वाले, भक्तों पर दया करने वाले, जगत के कारण, अविनाशी, सृष्टि के आरंभ में प्रकृति और पुरुष से भी परे प्रकट हुए - जो इस प्रकार नित्य ध्यान करता है, वह योगी योगियों में श्रेष्ठ होता है।

ekadantaṃ caturhastaṃ pāśamaṇkuśadhāriṇaṃ। radaṃ ca varadaṃ hastairbibhrāṇaṃ mūṣakadhvajaṃ । raktaṃ lambodaraṃ śurpakarṇaṃ raktavāsasaṃ । raktagandhānuliptaṇgaṃ raktapuṣpaiḥ supūjitaṃ । bhaktānukampinaṃ devaṃ jagatkāraṇamacyutaṃ । āvirbhūtaṃ ca sṛṣtyādau prakṛteḥ puruṣatparaṃ । evaṃ dhyāyati yo nityaṃ sa yogī yogināṃ varaḥ॥9॥

Meaning: He who meditates daily on the one-tusked, four-armed one, who holds a noose and a goad, who holds his tusk and a boon-giving hand, whose flag bears a mouse, who is red, has a large belly, ears like a winnowing basket, and wears red clothes, whose limbs are smeared with red sandalwood, who is worshipped with red flowers, the compassionate God of devotees, the imperishable cause of the universe, who manifested at the beginning of creation, transcending Prakriti and Purusha — that Yogi is the best among Yogis.

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नम: प्रमथपतये। नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय। विघ्ननाशिने शिवसुताय। श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।

अर्थ: व्रातपति को नमस्कार है। गणपति को नमस्कार है। प्रमथपति को नमस्कार है। लंबोदर और एकदंत को नमस्कार है। विघ्नों का नाश करने वाले, शिवपुत्र, वरद मूर्ति को बार-बार नमस्कार है।

namo vrātapataye। namo gaṇapataye। namaḥ pramathapataye। namaste'stu lambodarāyaikadantāya। vighnanāśine śivasutāya। śrīvaradamūrtaye namo namaḥ॥10।।

Meaning: Salutations to the Lord of groups (Vratapati). Salutations to the Lord of Ganas (Ganapati). Salutations to the Lord of the Pramathas. Salutations to the one with a big belly and a single tusk. To the destroyer of obstacles, the son of Shiva, the boon-giving form, salutations again and again.

संपूर्ण संस्कृत पाठ

ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।

अव त्व मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चातात। अव पुरस्तात। अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।। सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।

त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।

त्वं गुणत्रयातीत:। त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं। तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं। गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं। अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं। नाद: संधानं। सं हितासंधि: सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि: निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम:।।7।।

एकदंताय विद्‍महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।। भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नम: प्रमथपतये। नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय। विघ्ननाशिने शिवसुताय। श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ विधि

गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ हमेशा शुद्ध मन और शरीर के साथ करना चाहिए। इसकी विधि इस प्रकार है:

  • प्रतिदिन प्रात: स्नान आदि से शुद्ध होकर यह पाठ करें।
  • आसन पर बैठ कर पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की दिशा की ओर मुख करके पाठ करना चाहिए।
  • शांत चित्त और एकाग्र मन से पाठ करने से गणेशजी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
  • गणेश चतुर्थी जैसे विशेष दिनों पर इसका पाठ अधिक फलदायी होता है।

गणेश अथर्वशीर्ष पाठ से लाभ

इस पवित्र ग्रंथ का नियमित जप साधक के जीवन में बुद्धि, विवेक और सफलता का संचार करता है। इसे पढ़ने से सभी बाधाएँ दूर होती हैं और विघ्नों का नाश होता है। यह मनुष्य के जीवन में सर्वांगीण उन्नति होती है।

  • बाधाओं का नाश: इसके पाठ से सभी प्रकार के विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं।
  • बुद्धि व ज्ञान में वृद्धि: विद्यार्थी वर्ग के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है क्योंकि यह एकाग्रता, स्मरण शक्ति और निर्णय क्षमता को बढ़ाता है।
  • व्यापार और नौकरी में उन्नति: व्यापार या नौकरी में आ रही रुकावटें दूर होती हैं, और उन्नति के मार्ग खुलते हैं।
  • आर्थिक समृद्धि: आर्थिक समस्या दूर होने के साथ समृद्धि बढ़ती है।
  • नकारात्मकता का अंत: विचारों से नकारात्मकता खत्म होती है और पवित्रता आती है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: यह साधक को आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर ले जाता है।

श्री गणेश अथर्वशीर्ष का श्रवण करें

गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ को सही उच्चारण के साथ सुनने और उसके भाव को समझने के लिए आप नीचे दिया गया वीडियो देख सकते हैं।

वीडियो जानकारी:

  • शीर्षक: Ganesh Atharvashirsha By Anuradha Paudwal I Ganesh Stuti
  • चैनल: T-Series Bhakti Sagar
  • अवधि: 13 मिनट 21 सेकंड
  • भाषा: संस्कृत

भारत के प्रमुख गणेश मंदिर

गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने के साथ-साथ, भारत में कई ऐसे प्राचीन और प्रसिद्ध गणेश मंदिर हैं, जिनके दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यहां कुछ सबसे प्रसिद्ध मंदिरों की जानकारी दी गई है:

श्री सिद्धि विनायक मंदिर, मुंबई

मुंबई में स्थित, यह मंदिर भारत के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। इसकी प्रसिद्धि का कारण यहां की गणेश प्रतिमा है, जिसके सूंड दाईं ओर है, जिसे 'सिद्धिविनायक' कहा जाता है।

  • स्थान: प्रभादेवी, मुंबई, महाराष्ट्र
  • समय: सुबह 5:30 बजे से रात 9:50 बजे तक (मंगलवार को सुबह 3:15 बजे से शुरू)
  • विशेष: खासकर मंगलवार को और गणेश चतुर्थी के दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर, पुणे

यह मंदिर अपनी भव्यता और समृद्धि के लिए जाना जाता है। इस मंदिर की प्रतिमा का बीमा 1 करोड़ रुपये से अधिक का है, जो इसकी दिव्यता और महत्व को दर्शाता है।

  • स्थान: गुरुवार पेठ, पुणे, महाराष्ट्र
  • समय: सुबह 6:00 बजे से रात 11:00 बजे तक
  • विशेष: गणेशोत्सव के दौरान यह मंदिर भव्य सजावट और कार्यक्रमों के साथ एक प्रमुख आकर्षण बन जाता है।

मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर

राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक छोटी पहाड़ी पर स्थित, यह मंदिर अपने सुंदर और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। यहां की मूर्ति लगभग 250 साल पुरानी मानी जाती है।

  • स्थान: मोती डूंगरी, जयपुर, राजस्थान
  • समय: सुबह 5:30 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक और शाम 4:30 बजे से रात 9:30 बजे तक
  • विशेष: मंदिर का वास्तुशिल्प और कलात्मक सुंदरता पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित करती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

गणेश अथर्वशीर्ष एक प्राचीन संस्कृत उपनिषद है जो अथर्ववेद से संबंधित है। यह भगवान गणेश को सर्वोच्च देवता, 'परब्रह्म' और ब्रह्मांड के मूल कारण के रूप में महिमामंडित करता है। यह बाधाओं को दूर करने और ज्ञान-समृद्धि प्रदान करने वाला एक शक्तिशाली वैदिक पाठ है।

इसका पाठ करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं, एकाग्रता, स्मरण शक्ति और निर्णय क्षमता बढ़ती है। व्यापार या नौकरी में उन्नति होती है, आर्थिक समस्या दूर होती है, और विचारों से नकारात्मकता समाप्त होकर पवित्रता आती है। यह आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति में भी सहायक है।

गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ हमेशा स्नान आदि से शुद्ध होकर, आसन पर बैठ कर पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए।

यह मंत्र 'गणेश अथर्वशीर्ष' का एक महत्वपूर्ण बीज मंत्र है। इसमें 'ॐ' ब्रह्मांड की आदि ध्वनि, 'गं' भगवान गणेश का बीज मंत्र, 'गणपतये' का अर्थ है 'गणों के स्वामी को', और 'नमः' का अर्थ है 'प्रणाम'। पूरे मंत्र का अर्थ है 'गणों के स्वामी भगवान गणेश को मेरा प्रणाम'।"

हाँ, विद्यार्थी वर्ग के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है क्योंकि यह एकाग्रता, स्मरण शक्ति और निर्णय क्षमता को बढ़ाता है, जिससे उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में आ रही रुकावटें दूर करने में मदद मिलती है।

भारत में कई प्रसिद्ध गणेश मंदिर हैं, जिनमें मुंबई का श्री सिद्धि विनायक मंदिर, पुणे का श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर, जयपुर का मोती डूंगरी गणेश मंदिर, और इंदौर का खजराना गणेश मंदिर शामिल हैं, जो अपनी भव्यता और धार्मिक महत्व के लिए जाने जाते हैं।

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Shri Ganesh Chalisa | श्री गणेश चालीसा

Shri Ganesh Chalisa in English

 

 ॥Doha॥

 

Jaya Ganapati Sadhguna Sadana, Kavi Vara Badana Kripaala।

Vighna Harana Mangala Karana, Jaya Jaya Girijaa Laala॥

 

॥Chaupai॥

Jaya Jaya Ganapati Gan Raaju।

Mangala Bharana Karana Shubha Kaaju॥

 

Jaya Gajabadana Sadana Sukhadaataa।

Vishva Vinaayaka Buddhi Vidhaata॥

 

Vakra Tunda Shuchi Shunda Suhaavana।

Tilaka Tripunda Bhaala Mana Bhaavana॥

 

Raajata Mani Muktana Ura Maala।

Svarna Mukuta Shira Nayana Vishaala॥

 

Pustaka Paani Kuthaara Trishoolam।

Modaka Bhoga Sugandhita Phoolam॥

 

Sundara Pitaambara Tana Saajita।

Charana Paaduka Muni Mana Raajita॥

 

Dhani Shiva Suvana Shadaanana Bhraata।

Gauri Lalana Vishva-Vidhaata॥

 

Riddhi Siddhi Tava Chanvara Sudhaare।

Mushaka Vaahana Sohata Dvaare॥

 

Kahaun Janma Shubha Kathaa Tumhaari।

Ati Shuchi Paavana Mangala Kaari॥

 

Eka Samaya Giriraaj Kumaari।

Putra Hetu Tapa Kinha Bhaari॥

 

Bhayo Yagya Jaba Poorna Anoopa।

Taba Pahunchyo Tuma Dhari Dvija Roopa॥

 

Atithi Jaani Kai Gauri Sukhaari।

Bahuvidhi Sevaa Kari Tumhaari॥

 

Ati Prasanna Hvai Tuma Vara Dinha।

Maatu Putra Hita Jo Tapa Kinha॥

 

Milahi Putra Tuhi Buddhi Vishaala।

Binaa Garbha Dhaarana Yahi Kaala॥

 

Gananaayaka, Guna Gyaana Nidhaana।

Poojita Prathama Roopa Bhagavana॥

 

Asa Kahi Antardhyaana Roopa Hvai।

Palana Para Baalaka Svaroopa Hvai॥

 

Bani Shishu Rudana Jabahi Tuma Thaana।

Lakhi Mukha Sukha Nahin Gauri Samaan॥

 

Sakala Magana, Sukha Mangala Gaavahin।

Nabha Te Surana Sumana Varshaavahin॥

 

Shambhu Uma, Bahu Dana Lutavahin।

Sura Munijana, Suta Dekhana Aavahin॥

 

Lakhi Ati Aananda Mangala Saaja।

Dekhana Bhi Aaye Shani Raaja॥

 

Nija Avaguna Guni Shani Mana Maahin।

Baalaka, Dekhan Chaahata Naahin॥

 

Giraja Kachhu Mana Bheda Badhaayo।

Utsava Mora Na Shani Tuhi Bhaayo॥

 

Kahana Lage Shani, Mana Sakuchaai।

Kaa Karihau, Shishu Mohi Dikhaai॥

 

Nahin Vishvaasa, Uma Ur Bhayau,

Shani So Baalaka Dekhana Kahyau। ॥

 

Padatahin, Shani Driga Kona Prakaasha।

Baalaka Shira Udi Gayo Aakaasha॥

 

Giraja Girin Vikala Hvai Dharani।

So Dukha Dasha Gayo Nahin Varani॥

 

Haahaakaara Machyo Kailaasha।

Shani Kinhyon Lakhi Suta Ka Naasha॥

 

Turata Garuda Chadhi Vishnu Sidhaaye।

Kaati Chakra So Gaja Shira Laaye॥

 

Baalaka Ke Dhada Upara Dhaarayo।

Praana, Mantra Padha Shankara Darayo॥

 

Naama ‘Ganesha’ Shambhu Taba Kinhe।

Prathama Poojya Buddhi Nidhi, Vara Dinhe॥

 

Buddhi Pariksha Jaba Shiva Kinha।

Prithvi Kar Pradakshina Linha॥

 

Chale Shadaanana, Bharami Bhulaii।

Rachi Baitha Tuma Buddhi Upaai॥

 

Charana Maatu-Pitu Ke Dhara Linhen।

Tinake Saata Pradakshina Kinhen॥

 

Dhani Ganesha, Kahi Shiva Hiya Harashe।

Nabha Te Surana Sumana Bahu Barase॥॥

 

Tumhari Mahima Buddhi Badaye।

Shesha Sahasa Mukha Sakai Na Gaai॥

 

Mein Mati Hina Malina Dukhaari।

Karahun Kauna Vidhi Vinaya Tumhaari॥

 

Bhajata ‘Raamasundara’ Prabhudaasa।

Lakha Prayaga, Kakara, Durvasa॥

 

Aba Prabhu Daya Dina Para Kijai।

Apani Bhakti Shakti Kuchhu Dijai॥

 

॥Doha॥

Shri Ganesh Yah Chalisa,

Path Karai Dhari Dhyan।

Nit Nav Mangal Gruha Bashe,

Lahi Jagat Sanman॥

 

Sambandh Apne Sahstra Dash,

Rushi Panchami Dinesh।

Puran Chalisa Bhayo,

Mangal Murti Ganesha॥

 

 

 

श्री गणेश चालीसा (Shri Ganesha Chalisa in Hindi)

 

॥दोहा॥

 

जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥

जय जय जय गणपति गणराजू।

मंगल भरण करण शुभ काजू ॥

 

॥चौपाई॥

 

जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥1॥

 

सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥

ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥

कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥2॥

 

एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥

अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥3॥

 

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥

अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥

बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥4॥

 

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥5॥

 

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥

कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥6॥

 

गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥7॥

 

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥

बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥

चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥8॥

 

तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥9॥

 

॥दोहा॥

 

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।

नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥

 

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