Shiv Stuti Lyrics | भगवान शिव स्तुति, आशुतोष शशांक शेखर,चन्द्र मौली चिदंबरा

भगवान शिव हिंदू धर्म के ऐसे देवता हैं जो बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। 

यहां पढ़ें भगवान शिव की स्तुति।शिव की उपासना करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं जल्दी पूरी हो जाती हैं।


आशुतोष शशांक शेखर, चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू, कोटि नमन दिगम्बरा।।

निर्विकार ओमकार अविनाशी, तुम्ही देवाधि देव,
जगत सर्जक प्रलय करता, शिवम सत्यम सुंदरा।।

निरंकार स्वरूप कालेश्वर, महा योगीश्वरा,
दयानिधि दानिश्वर जय, जटाधार अभयंकरा।।

शूल पानी त्रिशूल धारी, औगड़ी बाघम्बरी,
जय महेश त्रिलोचनाय, विश्वनाथ विशम्भरा।।

नाथ नागेश्वर हरो हर, पाप साप अभिशाप तम,
महादेव महान भोले, सदा शिव शिव संकरा।।

जगत पति अनुरकती भक्ति, सदैव तेरे चरण हो,
क्षमा हो अपराध सब,जय जयति जगदीश्वरा।।

जनम जीवन जगत का, संताप ताप मिटे सभी,
ओम नमः शिवाय मन, जपता रहे पञ्चाक्षरा।।

आशुतोष शशांक शेखर, चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू, कोटि नमन दिगम्बरा ।।
कोटि नमन दिगम्बरा..
कोटि नमन दिगम्बरा..
कोटि नमन दिगम्बरा..



Shiv Stuti Lyrics in English
Ashutosh Shashank Shekhar,
Chandra Mauli Chidambara,
Koti Koti Pranam Shambhu,
Koti Naman Digambara ॥

Nirvikar Omkar Avinashi,
Tumhi Devadhi Dev,
Jagat Sarjak Pralay Karta,
Shivam Satyam Sundara ॥

Nirankar Swaroop Kaleshwar,
Maha Yogeeshwar,
Dayanidhi Danishwar Jay,
Jatadhar Abhayankara ॥

Shool Pani Trishul Dhari,
Augadi Baghambari,
Jay Mahesh Trilochanay,
Vishwanath Vishambhara ॥

Nath Nageshwar Haro Har,
Paap Saap Abhishaap Tam,
Mahadev Mahan Bhole,
Sada Shiv Shiv Sankara ॥

Jagat Pati Anurakati Bhakti,
Sadaiv Tere Charan Ho,
Kshama Ho Aparadh Sab,
Jay Jayati Jagadishwara ॥

Janam Jeevan Jagat Ka,
Santaap Taap Mite Sabhi,
Om Namah Shivaay Man,
Japta Rahe Panchakshara ॥

Ashutosh Shashank Shekhar,
Chandra Mauli Chidambara,
Koti Koti Pranaam Shambhoo,
Koti Naman Digambara ॥
Koti Naman Digambara..
Koti Naman Digambara..
Koti Naman Digambara..


Meaning and Significance of Shiv Stuti | शिव स्तुति अर्थ और विशेषताएं

इस स्तुति में भगवान शिव को “आशुतोष” कहा गया है – अर्थात जो थोड़े से पूजन, जलार्पण, अथवा सच्चे भाव से प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें “शशांक शेखर” भी कहा गया है – अर्थात जिनके जटाजूट में चंद्रमा विराजमान है।

स्तुति के अन्य नामों में शिव को त्रिनेत्रधारी, गंगाधर, नीलकंठ, भूतनाथ, और कालों के काल के रूप में वर्णित किया गया है। यह स्तुति भगवान शिव के इन सभी रूपों को समर्पित है। इसके श्लोक सरल संस्कृत में होते हैं, जिन्हें भक्तगण प्रातः या संध्या के समय श्रद्धा से पढ़ते हैं।

Benefits of Shiv Stuti 
शिव स्तुति पाठ के लाभभगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है, क्योंकि वे आशुतोष हैं
जीवन की कठिनाइयों और कष्टों से मुक्ति मिलती है
मन में शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है
रोग, भय, मोह, और क्रोध जैसी मानसिक अशांति का नाश होता है
घर और जीवन में सुख-समृद्धि और संतुलन आता है
भक्त का ध्यान भगवान शिव में स्थिर होता है और आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त होता है

Shiv Stuti Chanting Rituals 
शिव स्तुति के पाठ की विधि
सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें
शिवलिंग या भगवान शिव के चित्र के सामने दीपक और धूप लगाएं
ॐ नमः शिवाय” मंत्र का स्मरण करते हुए मन शांत करें
फिर स्तुति के श्लोकों का श्रद्धा से पाठ करें
अंत में भगवान शिव से आशीर्वाद की प्रार्थना करें और जल अर्पित करें

माता पार्वती आरती

 जय पार्वती माता, जय पार्वती माता।।


ब्रह्म सनातन देवी, शुभ फल की दाता।। जय पार्वती माता।।


अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता।


जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता। जय पार्वती माता।।


सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा।


देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा।। जय पार्वती माता।।


सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता।।


जय पार्वती माता, जय पार्वती माता।।


हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।। जय पार्वती माता।।


शुम्भ-निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता।


सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा।। जय पार्वती माता।।


सृष्टि रूप तुही जननी शिव संग रंगराता।


नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता। जय पार्वती माता।।


देवन अरज करत हम चित को लाता।


गावत दे दे ताली मन में रंगराता।। जय पार्वती माता।।


श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता।


सदा सुखी रहता सुख संपति पाता।। जय पार्वती माता।।

Shiv ji Chandan Lep

 शिवलिंग पर कहां-कहां चंदन लगाएं,?


शिवलिंग पर सात स्थानों पर चंदन लगाने की प्रथा है, जो भगवान शिव के परिवार के विभिन्न सदस्यों को समर्पित है. ये स्थान हैं:

 शिवलिंग, जलाधारी, गणेश जी का स्थान, कार्तिकेय जी का स्थान, अशोक सुंदरी का स्थान, और नंदी के दोनों सींग।

ऐसे में आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य अरविंद मिश्र से शिवलिंग के वो सात स्थान जहां लगाया जाता है शिव जी को चंदन।


●यहां उन सात स्थानों का विस्तृत विवरण दिया गया है:-👇


●1. शिवलिंग: यह भगवान शिव का मुख्य स्थान है और चंदन का लेप शिवलिंग के ऊपर लगाया जाता है.


●2. जलाधारी: यह वह स्थान है जहाँ से जल बहता है और यह स्थान माता पार्वती को समर्पित है.


●3. गणेश जी का स्थान: शिवलिंग के दाईं ओर, जलाधारी के ऊपर का स्थान गणेश जी का माना जाता है.

●4. कार्तिकेय जी का स्थान: शिवलिंग के बाईं ओर, जलाधारी के ऊपर का स्थान कार्तिकेय जी का माना जाता है.


●5. अशोक सुंदरी का स्थान: जलाधारी से बहने वाले जल के रास्ते पर अशोक सुंदरी का स्थान माना जाता है.


●6. नंदी के दोनों सींग: नंदी, जो भगवान शिव के वाहन हैं, उनके दोनों सींगों पर भी चंदन लगाया जाता है.


●7. शिवलिंग के पीछे: शिवलिंग के पीछे का स्थान भी चंदन लगाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. ।

●धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं पर है आधारित:


यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये सात स्थान धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं पर आधारित हैं, और विभिन्न परंपराओं में थोड़े भिन्न हो सकते हैं.


 भगवान शिव जी का पूजन करते समय उपरोक्त सात स्थानों पर चन्दन अवश्य लगाना चाहिए. इससे भगवान शिव के साथ उनका पूरा शिव परिवार प्रसन्न हो कर अपने भक्तों पर कृपा करते हैं.भगवान शिव का परिवार हमें अपने परिवार के साथ सम्मिलित और संगठित होकर रहने की सीख देता है. हर मुसीबत और दुख-सुख में हमारा परिवार ही काम आता है. और जो परिवार साथ रहता है उस पर मुसीबतें भी कम आती है और सुरक्षित रहता है।

देवाधिदेव भगवान शिव जहाँ हृदय में विराजमान हों तो वहाँ जीवन स्वयं तप बन जाता है,इसमे कोई संदेह नहीं।

भगवान शिव को समर्पित यह मास सभी के जीवन में सुख, समृद्धि, आरोग्य और आध्यात्मिक उन्नति का सृजन करे।

जयति जयति जय पुण्य सनातन संस्कृति,

जयति जयति जय पुण्य भारतभूमि,

मङ्गल कामनाओं के साथ,

हर हर महादेव,

जय श्रीराम,

शुभमस्तु,

Shiv Ji ko Nahi Charaya jata yeh.....

 आप बिल्कुल सही कह रहे हैं — भगवान शिव को कुंकुम नहीं चढ़ाया जाता। यह एक महत्वपूर्ण शास्त्रीय नियम है और इसके पीछे धार्मिक एवं तात्त्विक कारण हैं।


क्यों नहीं चढ़ाते शिवजी को कुंकुम (कुमकुम)?


शिवजी हैं विरक्त (वैराग्यस्वरूप):


कुंकुम का रंग लाल होता है, जो रजोगुण और कामना का प्रतीक माना जाता है।

भगवान शिव तपस्वी, वैराग्य स्वरूप, और तामसिक-रजसिक विकारों से रहित हैं। इसलिए उन्हें ऐसे पदार्थ अर्पित नहीं किए जाते जो रजोगुण को दर्शाते हों।


कुंकुम देवी स्वरूप को चढ़ता है:


कुंकुम मुख्यतः शक्ति, स्त्री तत्व, विशेषकर देवी लक्ष्मी, पार्वती, दुर्गा, और बगलामुखी आदि को चढ़ाया जाता है।

शिव तत्त्व शिव हैं – निराकार, निर्विकार, जटिल कामनाओं से रहित – उन्हें यह नहीं चढ़ता।


विभिन्न पुराणों और आगम-शास्त्रों में उल्लेख है कि —


> "नैव कुमकुमं शंभवे समर्प्यते।"




शिव को कुंकुम समर्पित नहीं किया जाता।



फिर क्या अर्पित करें?


भगवान शिव को ये वस्तुएँ प्रिय हैं:


बिल्वपत्र (बेलपत्र)


धतूरा, आक (आकंड़ा)


भस्म / विभूति


गंगाजल / कच्चा दूध / दही / मधु / घृत / शुद्ध जल


भांग


चंदन (सफेद चंदन)


सादे पुष्प (विशेषतः सफेद)


आपके श्लोक में कुंकुम का उल्लेख क्यों है?


संभव है कि वह श्लोक मूलतः देवी पूजन या सामान्य पूजन सामग्री के संदर्भ में हो और शिव के साथ जोड़ा गया हो।

कभी-कभी श्लोक में सभी पूजन-सामग्रियों का समावेश होता है, पर उनमें से कुछ विशेष देवताओं के लिए वर्जित मानी जाती हैं — जैसे:


तुलसी – गणेश को वर्जित


कुंकुम – शिव को वर्जित


शंखजल – शिव अभिषेक में वर्जित

शिवजी का मृत संजीवनी मंत्र

जिसका जाप रावण करता था,काल को भी रोकने की शक्ति है इसमें..

महामृत्युंजय गायत्री (संजीवनी) मंत्र..


।।ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व:ॐ तत्सर्वितुर्वरेण्यं त्रयम्बकं यजामहे भर्गोदेवस्य धीमहि सुगन्धिम पुष्टिवर्धनम 

धियो योन: प्रचोदयात उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात

ॐ स्व: भुव: भू: स: जूं हौं ॐ।।


दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने इन दोनों मंत्रों को मिलाकर एक अन्य मंत्र मृत संजीवनी मंत्र का निर्माण किया था। इस मंत्र को संजीवनी विद्या के नाम से जाना जाता है।


हमारे शास्त्रों और पुराणों में गायत्री मंत्र और महा मृत्युंजय मंत्र का सबसे अधिक महत्व है, इन दोनों मंत्र को बहुत बड़े मंत्रो में से एक माना जाता है क्यूंकि यह दोनों मंत्र से आपके सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिल जाती है.


हमारे शास्त्रों में ऐसे कई सारे उल्लेख मिलते है जिनमे यही दो मंत्र सबसे प्रमुख स्थान में आते है क्यूंकि इनसे अधिक शक्तिशाली और कोई मंत्र नहीं है.


आज हम जिस मंत्र की बात कर रहे है यह गायत्री मंत्र और महा मृत्युंजय मंत्र दोनों से मिलकर बना है. माना जाता है की इसी मंत्र से किसी मृत व्यक्ति को भी दुबारा जीवित किया जा सकता है, यानि कि  इसी मंत्र से कई सारे बड़े-बड़े रोगों और संकटों से मुक्ति मिल जाती है, ऐसा भी माना जाता है की इसी मंत्र का जाप रावण किया करता था जिससे वो अत्यंत ही शक्तिशाली बन जाता था.


इस मंत्र का नाम मृत संजीवनी मंत्र है, अब आपको यह भी बता देते है की इसकी पूजा और जप कैसे करना है, सबसे पहले तो आपको शुक्ल पक्ष में किसी भी सोमवार की सुबह भगवान शिव की पूजा-अर्चना करनी है और फिर इस मंत्र का 108 बार जाप करना है.


वैदिक ज्योतिष के अनुसार श्री मृत संजीवनी पूजा का प्रयोग आसमयिक आने वाली मृत्यु को टालने के लिए, लंबी आयु के लिए, स्वास्थ्य के लिए तथा गंभीर कष्टों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है तथा इस पूजा को विधिवत करने वाले अनेक जातक अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त कर पाने में सफल होते हैं। श्री मृत संजीवनी पूजा का आरंभ सामान्यतया सोमवार वाले दिन किया जाता है तथा उससे अगले सोमवार को इस पूजा का समापन कर दिया जाता है जिसके चलते इस पूजा को पूरा करने के लिए सामान्यता 7 दिन लगते हैं किन्तु कुछ स्थितियों में यह पूजा 7 से 10 दिन तक भी ले सकती है जिसके चलते सामान्यतया इस पूजा के आरंभ के दिन को बदल दिया जाता है तथा इसके समापन का दिन सामान्यतया सोमवार ही रखा जाता है।


किसी भी प्रकार की पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उस पूजा के लिए निश्चित किये गए मंत्र का एक निश्चित संख्या में जाप करना तथा यह संख्या अधिकतर पूजाओं के लिए 125,000 मंत्र होती है तथा श्री मृतसंजीवनी पूजा में भी श्री मृतसंजीवनी मंत्र का 125,000 बार जाप करना अनिवार्य होता है। 


             इस संकल्प के पश्चात सभी पंडित अपने यजमान अर्थात जातक के लिए श्री मृत संजीवनी मंत्र का जाप करना शुरू कर देते हैं तथा प्रत्येक पंडित इस मंत्र के जाप को प्रतिदिन लगभग 8 से 10 घंटे तक करता है जिससे वे इस मंत्र की 125,000 संख्या के जाप को संकल्प के दिन निश्चित की गई अवधि में पूर्ण कर सकें। 


               यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि श्री मृत संजीवनी पूजा जातक की अनुपस्थिति में भी की जा सकती है तथा जातक के व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की स्थिति में इस पूजा में जातक की तस्वीर अर्थात फोटो का प्रयोग किया जाता है जिसके साथ साथ जातक के नाम, उसके पिता के नाम तथा उसके गोत्र आदि का प्रयोग करके जातक के लिए इस पूजा का संकल्प किया जाता है। इस संकल्प में यह कहा जाता है कि जातक किसी कारणवश इस पूजा के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में सक्षम नहीं है जिसके चलते पूजा करने वाले पंडितों में से ही एक पंड़ित जातक के लिए जातक के द्वारा की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं पूरा करने का संकल्प लेता है तथा उसके पश्चात पूजा के समाप्त होने तक वह पंडित ही जातक की ओर से की जाने वाली सारी क्रियाएं करता है जिसका पूरा फल संकल्प के माध्यम से जातक को प्रदान किया जाता है। 


 महामृत्युंजय मंत्र में जहां हिंदू धर्म के सभी 33 देवताओं (8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 वषट तथा ऊँ) की शक्तियां शामिल हैं वहीं गायत्री मंत्र प्राण ऊर्जा तथा आत्मशक्ति को चमत्कारिक रूप से बढ़ाने वाला मंत्र है। विधिवत रूप से संजीवनी मंत्र की साधना करने से इन दोनों मंत्रों के संयुक्त प्रभाव से व्यक्ति में कुछ ही समय में विलक्षण शक्तियां उत्पन्न हो जाती है। यदि वह नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करता रहे तो उसे अष्ट सिद्धिया, नवनिधिया मिलती हैं तथा मृत्यु के बाद उसका मोक्ष हो जाता है।


संजीवनी मंत्र के जाप में निम्न बातों का ध्यान रखें


(1) जपकाल के दौरान पूर्ण रूप से सात्विक जीवन जिएं।

(2) मंत्र के दौरान साधक का मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।

(3) इस मंत्र का जाप शिवमंदिर में या किसी शांत एकांत जगह पर रूद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए।

(4) मंत्र का उच्चारण बिल्कुल शुद्ध और सही होना चाहिए साथ ही मंत्र की आवाज होठों से बाहर नहीं आनी चाहिए।

(5) जपकाल के दौरान व्यक्ति को मांस, शराब, सेक्स तथा अन्य सभी तामसिक चीजों से दूर रहना चाहिए। उसे पूर्ण ब्रह्मचर्य के साथ रहते हुए अपनी पूजा करनी चाहिए।


क्यों नहीं करना चाहिए महामृत्युंजय गायत्री (संजीवनी) मंत्र का जाप


आध्यात्म विज्ञान के अनुसार संजीवनी मंत्र के जाप से व्यक्ति में बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है जिसे हर व्यक्ति सहन नहीं कर सकता, परिणामत: आदमी या तो कुछ सौ जाप करने में ही पागल हो जाता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है। इसे गुरू के सान्निध्य में सीखा जाता है और धीरे-धीरे अभ्यास के साथ बढ़ाया जाता है। इसके साथ कुछ विशेष प्राणायाम और अन्य यौगिक क्रियाएं भी सिखनी होती है ताकि मंत्र से पैदा हुई असीम ऊर्जा को संभाला जा सके, इसीलिए इन सभी चीजों से बचने के लिए इस मंत्र की साधना किसी अनुभवी गुरू के दिशा- निर्देश में ही करनी चाहिए,


यह शाश्वत सत्य है कि जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है। किंतु हमें वेद, पुराण तथा अन्य शास्त्रों में मृत्यु के पश्चात पुनः जीवित होने के वृत्तांत मिलते हैं। गणेश का सिर काट कर हाथी का सिर लगा कर शिव ने गणेश को पुनः जीवित कर दिया।


भगवान शंकर ने ही दक्ष प्रजापति का शिरोच्छेदन कर वध कर दिया था और पुनः अज (बकरे) का सिर लगा कर उन्हें जीवन दान दे दिया। सगर राजा के साठ हजार पुत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए राजा भगीरथ सैकड़ों वर्ष तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए और सागर पुत्रों को जीवन प्राप्त हुआ। 


ऐसे अनगिनत वृत्तांत शास्त्रों में मिलते हैं जिससे स्पष्ट होता है कि भगवान शिव, जो महामृत्युंजय भगवन भी कहलाते हैं, रोग, संकट, दारिद्र्य, शत्रु आदि का शमन तो करते ही हैं, जीवन तक प्रदान कर देते हैं। महर्षि वशिष्ठ, मार्कंडेय और शुक्राचार्य महामृत्युंजय मंत्र के साधक और प्रयोगकर्ता हुए हैं। 


ऋषि मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र के बल पर अपनी मृत्यु को टाल दिया था, यमराज को खाली हाथ वापस यमलोक जाना पड़ा था। लंकापति रावण भी महामृत्युंजय मंत्र का साधक था। इसी मंत्र के प्रभाव से उसने दस बार अपने नौ सिर काट कर उन्हें अर्पित कर दिए थे।


शुक्राचार्य के पास दिव्य महामृत्युंजय मंत्र था जिसके प्रभाव से वह युद्ध में आहत सैनिकों को स्वस्थ कर देते थे और मृतकों को तुरंत पुनर्जीवित कर देते थे। 


शुक्राचार्य ने रक्तबीज नामक राक्षस को महामृत्युंजय सिद्धि प्रदान कर युद्धभूमि में रक्त की बूंद से संपूर्ण देह की उत्पत्ति कराई थी।


महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव से गुरु द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा की प्राप्ति हुई थी,जिसके बारे में धारणा है कि वह आज भी जीवित है तथा उसे उसी देह में नर्मदा नदी के किनारे घूमते कई लोगों ने देखा है। 


माना जाता है की कोई सच्चे मन से निरंतर इस मंत्र का जाप करता है तो कई सारे बड़े-बड़े संकटों से आसानी से मुक्ति पायी जा सकती है.वैसे तो भगवान शिव के कई सारे मंत्र है पर अपनी सभी तरह की इच्छाओं को पूरी करने के लिए सबसे शक्तिशाली मंत्र है "महामृत्युंजय मंत्र" जिसका हर किसी को सच्चे मन से जाप करना चाहिए और लाभान्वित होना चाहिए..!!

   ॐ नमः शिवाय

दिव्य दृष्टि शक्ति की प्राप्ति

 बहुत सारे तरीकों द्वारा दिव्य दृष्टि की प्राप्ति होती है कुछ देर तक दृष्टि चलती भी है लेकिन कई बार ऐसे अवसर आ जाते हैं ईर्ष्यावस कोई दूसरा तांत्रिक आपकी दिव्य दृष्टि को बांध देता है।फिर आपकी सभी शक्तियां अपने आप से ओझल हो जाती हैं l


 👉इस समस्या का निराकरण करूंगा और आपको बताऊंगा कि कितना जरूरी है एक साधक के पास दिव्य दृष्टि का होना साधक चाहे नया हो या पुराना।दिव्य दृष्टि की शक्ति उन्ही साधकों को प्राप्त होती है जिनका ज्यादा झुकाव रूहानियत की तरफ होता है इस शक्ति को प्राप्त कर लेना आसान है लेकिन इस शक्ति को अपने पास टिका कर रखना आसान नहीं है।


 👉एक साधक होने के नाते मुझे दो चीजें बहुत बुरी लगती हैं एक ट्रांसफर दूसरा शक्तिपात ये दो बातें साधक को पथभ्रष्ट कर देती है जो लोग इन दो बातों के पीछे लगे रहते है वास्तव में उन्हें साधना से कुछ लेना देना नही होता बल्कि स्ट्रीट फूड की तरह सब कुछ पाना चाहते हैं हालांकि ये बातें सत्य पर आधारित हैं फिर भी उस स्तर के आमिल और योगी लोग बहुत कम ही है और मैं तो यही बोलूँगा की ना के बराबर ही है। किसी की हानि कर के और किसी के भविष्य को बिगाड़ देने वाले आदमी को भी साधक नही कहा जा सकता ये वो बातें है जैसे नागमणि,गजमुक्ता, बाँसमुक्ता इत्यादि ये चीज़ें वास्तविक रूप से है तो सही लेकिन गूलर के फूल की तरह जो कि बहुत अधिक परिश्र्म और अपना सभकुछ खोकर ही प्राप्त होती है और जब वो प्राप्त होती है तो आदमी के पास अपना कुछ नही बचता।


 👉किसी ने सच ही बोल है कि, "प्रेम गली अति सांकरी ता में दो ना समाय,जब मैं था तब हरि नही हरि है तब मैं नाय"।


 👉दिव्य दृष्टि बहुत सारे तरीक़ों से प्राप्त होती है उनमेंसे मुख्य हैं देवी देवता भूत पिसाच की साधना द्वारा योग साधना द्वारा त्राटक के अभ्यास से या ध्यान लगाने से शक्ति प्राप्त हो जाती है।और प्राप्ति होना ही सभ कुछ नही उसके बाद भी उस सिद्धि के प्रभाव को चालू रखने के लिए अभ्यास या नित्यप्रति जाप की आवश्यकता होती है ये नही की एक बार ही शक्ति प्राप्त कर ली और हो गया ।


👉○देवी या देवता द्वारा प्राप्त हुई दिव्य दृष्टि की शक्ति चिरस्थायी और बहुत ही अधिक शक्तिशाली और प्रभावी होती है इसमे साधक भूत काल वर्तमान काल भविष्य काल के बारे में याचक को 100% बिल्कुल सही बता सकता है।लेकिन इसे प्राप्त करने में बहुत ज्यादा समय लगता है।

○👉पिशाच या पिशाचिनी द्वारा ये साधनायें मुख्य रूप से रजो और तमोगुण प्रधान होती है और कुछ समय के परिश्र्म के बाद ही साधक को सिद्धि मिल जाती है इसमें इनकी श्रेणी के हिसाब से फल प्राप्त होता है।


👉भूत प्रेत हमे ये श्रेणी पढ़ने सुनने में निम्न स्तरीय आभास देती है लेकिन ऐसा है नही जिन परियां साधु संत और अघोरी इत्यादि भी इसी श्रेणी में ही आते हैं

       जिस आत्मा को मारने के बाद मोक्ष प्राप्त नही हुआ    

       जो आत्मा अतृप्त रह गयी और अपने पूर्व जीवन के

       संकल्प को नही त्याग सकी उस आत्मा को मैं निजी   

       तौर पे प्रेत की योनि की ही संज्ञा ही दूंगा।


👉○किसी किसी व्यक्ति को कोई दूसरी ऊपरी अपर योनि की आत्मा ग्रस्त कर लेती है और जीवन भर नही छोड़ती उन व्यक्तियों को बिना साधना के भी दृष्टि प्राप्त हो जाती है और वो परालौकिक घटनाओं को देख सकते हैं। लेकिन इसमें एक नकारात्मक आयाम भी है ऐसे व्यक्ति को शारिरिक मानसिक और आर्थिक रूप से बहुत कुछ खोना पड़ता है इस ब्रह्मांड में हर एक वस्तु की कोई न कोई कीमत है वो तो देनी ही पड़ेगी।


👉त्राटक भी इनमें से एक बहुत अच्छा साधन है जिससे साधक को चिरस्थायी दिव्य दृष्टि और सम्मोहन शक्ति की प्राप्ति होती है लेकिन त्राटक का अभ्यास करने के लिए आपको मार्गदर्शन के लिए किसी विशेषज्ञ की आवश्यता पड़ती है बिना गुरु के अभ्यास करने से आंखों की रोशनी भी जा सकती है।


👉मुद्रा और ध्यान योग एवम रेकी का अभ्यास करने से भी दिव्य दृष्टि शक्ति प्राप्त हो जाती है लेकिन इसमे समय लगता है और बिना योग्य शिक्षक के मार्गदर्शन के ये सभी साधनायें और अभ्यास कामयाब नहीं होते।

    

👉आज एक साधारण से प्रयोग से आपको दिव्य दृष्टि की शक्ति को प्राप्त करने का तरीका बताने जा रहा हूँ।


 👉ये साधना रात्रि 10:30 बजे के बाद सुबह भोर तक की  जा सकती है और इसे करने में कोई भय भी नहीं है येपूरी तरह से सुरक्षित है।


👉○घर के एकान्त कमरे में एक ऐसे स्थान का चुनाव करें   ।जहाँ साधना करते समय आपको कोई परेशानी न हो।

   

👉 साथ ही उस समय आपको कोई बुलाये या कोई और

      ध्वनि आपके कानों में ना जाये।


👉 शुभ मुहूर्त में पूर्वाभिमुख होकर घर के एक एकान्त कोने में एक आम की पटरी जो बनने के बाद धोकर सुखा ली गयी हो।स्थापित करें और उस पर लाल रंग का सवा मीटर कपड़ा बिछाकर माता दुर्गा जी का एक चित्र स्थापित करें और कलश स्थापित कर दें मा के चित्र के सामने संकल्प लें और धूप दीप फल पुष्प इत्यादि अर्पित करें तदुपरान्त नैवेद्य में बेसन के लड्डू का भोग लगाएं। एक जल का पात्र पास में रख लें।जाप के अंत में वो जल आपको पीना है।


👉लाल चंदन, रुद्राक्ष,या लाल हक़ीक़ की 108 दानों की माला लें फिर गुरु के चरणों का ध्यान करें और गुरु मंत्र का जाप करें उसके उपरांत श्री गणेश जी और श्री गौरी का सामान्य पूजा करें और 5 माला ॐ गं गणपते नमः का जाप करें।


      फिर आपको एक ही बैठक में "ॐ ह्रोम नमः शिवाय"

      51 माला नित्यप्रति जाप करना है।

      और निम्न मंत्र का 5 माला जाप करना है

👉"कोट कोट पे खेले डाल डाल पर झूले ताल ताल को सुखाये भूत भविष्य को बताए तीर पे तीर चलाये चलाये के पूर्व जन्म को ना बताये तो दृष्टि पिसाच ना कहाये बंद खुली आँखन से बताये सही गाँव संवत जाट धर्म गैल को नेत्रन से न बताये तो अपनी माँ की सैय्या तोड़े वा के चीर पे चोट करे आन कालिका की बंदगी महाकाल शंकर की मेरी भगती गुरु की शक्ति मन्त्र साँचा फूलो मन्त्र ईश्वरी वांचा"।।


👉ये दृष्टि पिसाच का मंत्र है एक बार अगर इससे आपकी नजर या दिव्य दृष्टि खुल जाती है दोबारा बन्द नही होगी इस मन्त्र की कर्णपिशाचिनी के मंत्र की शक्ति के बराबर है लेकि कर्ण पिशाचिनी की साधना में आने वाले खतरे जैसे खतरे इसमे नही आते।


  👉  कुछ ही दिनों में आपके सपनो में और आंख बंद करने  के बाद आपको बहुत सारे सर्पों और साधुओं के दर्शन होंगे साथ ही बहुत सारी विचित्र अनुभूतिया होगी जो  कि बहुत विस्मय करी होंगी जाप के समय आपकी

      दोनों भौहो के बीच स्पंदन या खिचाव महसूस होगा।

      आपके ध्यान में जाते ही आपके सामने चलचित्र की   

      तरह आकृतियां आने लगेगी आप इतने सक्षम हो   

      जाएंगे कि कोई भी आदमी या  ईत्तरयोनि का जीव भीआपसे कुछ छिपा नहीं पायेगा

      आप जिस भी वस्तु या प्राणी का ध्यान करेंगे वो आंखे   बंद करके ध्यान में जाते ही वास्तविक रूप से आपके  सामने आ जायेगा।


👉○ सोमवार को शिव उपासना करें और व्रत धारण करें

       त्रयोदसी का व्रत बिना नागे के धारण करें।

○ 👉सभी साधना विषयक नियमों का सख्ती से पालन करें।


 

 👉ये याद रखो कि आपको साधना के समय या वैसे भी   

      कब्ज़ी की शिकायत ना हो अगर है तो पहले उसकी    

      प्राकृतिक चिकित्सा करवाएं।


○ 👉बीज मंत्र की और शास्त्रिक साधना करते हुए शुद्ध उच्चारण भूतशुद्धि न्यास और जितनी भी शास्त्रिक मर्यादा है उनका पालन करें।

एक पागल_भिखारी की झकझोर_देने_वाली व्यथा

 जब बुढ़ापे में अकेला ही रहना है तो औलाद क्यों पैदा करें उन्हें क्यों काबिल बनाएं जो हमें बुढ़ापे में दर-दर के ठोकरें खाने  के लिए छोड़ दे।


क्यों दुनिया मरती है औलाद के लिए...


हमेशा की तरह मैं आज भी, परिसर के बाहर बैठे भिखारियों की मुफ्त स्वास्थ्य जाँच में व्यस्त था। 


स्वास्थ्य जाँच और फिर मुफ्त मिलने वाली दवाओं के लिए सभी भीड़ लगाए कतार में खड़े थे।


अनायाश सहज ही मेरा ध्यान गया एक बुजुर्ग की तरफ गया, जो करीब ही एक पत्थर पर बैठे हुए थे। सीधी नाक, घुँघराले बाल, निस्तेज आँखे, जिस्म पर सादे, लेकिन साफ सुथरे कपड़े। 


कुछ देर तक उन्हें देखने के बाद मुझे यकीन हो गया कि, वो भिखारी नहीं हैं। उनका दाँया पैर टखने के पास से कटा हुआ था, और करीब ही उनकी बैसाखी रखी थी।


फिर मैंने देखा कि,आते जाते लोग उन्हें भी कुछ दे रहे थे और वे लेकर रख लेते थे। मैंने सोचा ! कि मेरा ही अंदाज गलत था, वो बुजुर्ग भिखारी ही हैं।


उत्सुकतावश मैं उनकी तरफ बढ़ा तो कुछ लोगों ने मझे आवाज लगाई : 


"उसके करीब ना जाएँ डॉक्टर साहब, 

वो बूढा तो पागल है । "


लेकिन मैं उन आवाजों को नजरअंदाज करता, मैं उनके पास गया। सोचा कि, जैसे दूसरों के सामने वे अपना हाथ फैला रहे थे, वैसे ही मेरे सामने भी हाथ करेंगे, लेकिन मेरा अंदाज फिर चूक गया। उन्होंने मेरे सामने हाथ नहीं फैलाया।


मैं उनसे बोला : "बाबा, आपको भी कोई शारीरिक परेशानी है क्या ? "

मेरे पूछने पर वे अपनी बैसाखी के सहारे धीरे से उठते हुए बोले : "Good afternoon doctor...... I think I may have some eye problem in my right eye .... "

 

बढ़िया अंग्रेजी सुन मैं अवाक रह गया। फिर मैंने उनकी आँखें देखीं। 


पका हुआ मोतियाबिंद था उनकी ऑखों में । 


मैंने कहा : " मोतियाबिंद है बाबा, ऑपरेशन करना होगा। "


बुजुर्ग बोले : "Oh, cataract ? 

I had cataract operation in 2014 for my left eye in Ruby Hospital."


मैंने पूछा : " बाबा, आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? "


बुजुर्ग : " मैं तो यहाँ, रोज ही 2 घंटे भीख माँगता हूँ  सर" ।


मैं : " ठीक है, लेकिन क्यों बाबा ? मुझे तो लगता है, आप बहुत पढ़े लिखे हैं। "

बुजुर्ग हँसे और हँसते हुए ही बोले : "पढ़े लिखे ?? "


मैंने कहा : "आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं, बाबा। "


बाबा : 

" Oh no doc... Why would I ?.

.. Sorry if I hurt you ! "


मैं : " हर्ट की बात नहीं है बाबा, लेकिन मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। "


बुजुर्ग : " समझकर भी, क्या करोगे डॉक्टर ? "


अच्छा "ओके, चलो हम, उधर बैठते हैं, वरना लोग तुम्हें भी पागल हो कहेंगे। "(और फिर बुजुर्ग हँसने लगे)

करीब ही एक वीरान टपरी थी। हम दोनों वहीं जाकर बैठ गए।


" Well Doctor, I am Mechanical Engineer...."--- बुजुर्ग ने अंग्रेजी में ही शुरुआत की--- " 

मैं,  कंपनी में सीनियर मशीन ऑपरेटर था।


एक नए ऑपरेटर को सिखाते हुए, मेरा पैर मशीन में फंस गया था, और ये बैसाखी हाथ में आ गई। कंपनी ने इलाज का सारा खर्चा किया, और बाद में  कुछ रकम और सौंपी, और घर पर बैठा दिया। क्योंकि लंगड़े बैल को कौन काम पर रखता है सर ?"


"फिर मैंने उस पैसे से अपना ही एक छोटा सा वर्कशॉप डाला। अच्छा घर लिया। बेटा भी मैकेनिकल इंजीनियर है। वर्कशॉप को आगे बढ़ाकर उसने एक छोटी कम्पनी और डाली। "


मैं चकराया, बोला : " बाबा, तो फिर आप यहाँ, इस हालत में कैसे ? "


बुजुर्ग : " मैं...किस्मत का शिकार हूँ ...."


" बेटे ने अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए, कम्पनी और घर दोनों बेच दिए। बेटे की तरक्की के लिए मैंने भी कुछ नहीं कहा। सब कुछ बेच बाचकर वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जापान चला गया, और हम जापानी गुड्डे गुड़िया यहाँ रह गए। "


ऐसा कहकर बाबा हँसने लगे। हँसना भी इतना करुण हो सकता है, ये मैंने पहली बार अनुभव किया।

फिर बोला : " लेकिन बाबा, आपके पास तो इतना हुनर है कि जहाँ लात मारें वहाँ पानी निकाल दें। "


अपने कटे हुए पैर की ओर ताकते बुजुर्ग बोले : " लात ? कहाँ और कैसे मारूँ, बताओ मुझे  ? "


बाबा की बात सुन मैं खुद भी शर्मिंदा हो गया। मुझे खुद बहुत बुरा लगा।

प्रत्यक्षतः मैं बोला : "आई मीन बाबा, आज भी आपको कोई भी नौकरी दे देगा, क्योंकि अपने क्षेत्र में आपको इतने सालों का अनुभव जो है। "


बुजुर्ग : " Yes doctor, और इसी वजह से मैं एक वर्कशॉप में काम करता हूँ। 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है मुझे। "


मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मैं बोला : 


"तो फिर आप यहाँ कैसे ? "


बुजुर्ग : "डॉक्टर, बेटे के जाने के बाद मैंने एक चॉल में एक टीन की छत वाला घर किराए पर लिया। वहाँ मैं और मेरी पत्नी रहते हैं। उसे Paralysis है, उठ बैठ भी नहीं सकती। "


" मैं 10 से 5 नौकरी करता हूँ । शाम 5 से 7 इधर भीख माँगता हूँ और फिर घर जाकर तीनों के लिए खाना बनाता हूँ। "


आश्चर्य से मैंने पूछा : " बाबा, अभी तो आपने बताया कि, घर में आप और आपकी पत्नी हैं। फिर ऐसा क्यों कहा कि, तीनों के लिए खाना बनाते हो ? "


बुजुर्ग : " डॉक्टर, मेरे बचपन में ही मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था। मेरा एक जिगरी दोस्त था, उसकी माँ ने अपने बेटे जैसे ही मुझे भी पाला पोसा। दो साल पहले मेरे उस जिगरी दोस्त का निधन हार्ट अटैक से हो गया तो उसकी 92 साल की माँ को मैं अपने साथ अपने घर ले आया तब से वो भी हमारे साथ ही रहती है। "


मैं अवाक रह गया। इन बाबा का तो खुद का भी हाल बुरा है। पत्नी अपंग है। खुद का एक पाँव नहीं, घरबार भी नहीं, 


जो था वो बेटा बेचकर चला गया, और ये आज भी अपने मित्र की माँ की देखभाल करते हैं। 


कैसे जीवट इंसान हैं ये ?

कुछ देर बाद मैंने समान्य स्वर में पूछा : " बाबा, बेटा आपको रास्ते पर ले आया, ठोकरें खाने को छोड़ गया। आपको गुस्सा नहीं आता उस पर ? "


बुजुर्ग : " No no डॉक्टर, अरे वो सब तो उसी के लिए कमाया था, जो उसी का था, उसने ले लिया। इसमें उसकी गलती कहाँ है ? "


" लेकिन बाबा "--- मैं बोला "लेने का ये कौन सा तरीका हुआ भला ? सब कुछ ले लिया। ये तो लूट हुई। "


" अब आपके यहाँ भीख माँगने का कारण भी मेरी समझ में आ गया है बाबा। आपकी तनख्वाह के 8000 रुपयों में आप तीनों का गुजारा नहीं हो पाता अतः इसीलिए आप यहाँ आते हो"


बुजुर्ग : " No, you are wrong dr. 8000 रुपए में मैं सब कुछ मैनेज कर लेता हूँ। लेकिन मेरे मित्र की जो माँ है, उन्हें, डाइबिटीज और ब्लडप्रेशर दोनों हैं। दोनों बीमारियों की दवाई चल रही है उनकी। बस 8000 रुपए में उनकी दवाईयां मैनेज नहीं हो पाती"


" मैं 2 घंटे यहाँ बैठता हूँ लेकिन भीख में पैसों के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करता। मेडिकल स्टोर वाला उनकी महीने भर की दवाएँ मुझे उधार दे देता है और यहाँ 2 घंटों में जो भी पैसे मुझे मिलते हैं वो मैं रोज मेडिकल स्टोर वाले को दे देता हूँ। "


मैंने अपलक उन्हें देखा और सोचा, इन बाबा का खुद का बेटा इन्हें छोड़कर चला गया है और ये खुद किसी और की माँ की देखभाल कर रहे हैं।


मैंने बहुत कोशिश की लेकिन खुद की आँखें भर आने से नहीं रोक पाया।


भरे गले से मैंने फिर कहा : "बाबा, किसी दूसरे की माँ के लिए, आप, यहाँ रोज भीख माँगने आते हो ? "


बुजुर्ग : " दूसरे की ? अरे, मेरे बचपन में उन्होंने बहुत कुछ किया मेरे लिए। अब मेरी बारी है। मैंने उन दोनों से कह रखा है कि, 5 से 7 मुझे एक काम और मिला है। "


मैं मुस्कुराया और बोला : " और अगर उन्हें पता लग गया कि, 5 से 7 आप यहाँ भीख माँगते हो, तो ? "


बुजुर्ग : " अरे कैसे पता लगेगा ? दोनों तो बिस्तर पर हैं। मेरी हेल्प के बिना वे करवट तक नहीं बदल पातीं। यहाँ कहाँ पता करने आएँगी.... हा....हा... हा...."


बाबा की बात पर मुझे भी हँसी आई। लेकिन मैं उसे छिपा गया और बोला : " बाबा, अगर मैं आपकी माँ जी को अपनी तरफ से नियमित दवाएँ दूँ तो ठीक रहेगा ना। फिर आपको भीख भी नहीं मांगनी पड़ेगी। "


बुजुर्ग : " No dr, आप भिखारियों के लिए काम करते हैं। माजी के लिए आप दवाएँ देंगे तो माजी भी तो भिखारी कहलाएंगी। मैं अभी समर्थ हूँ डॉक्टर, उनका बेटा हूँ मैं। मुझे कोई भिखारी कहे तो चलेगा, लेकिन उन्हें भिखारी कहलवाना मुझे मंजूर नहीं। "


" OK Dr, अब मैं चलता हूँ। घर पहुँचकर अभी खाना भी बनाना है मुझे। "


मैंने निवेदन स्वरूप बाबा का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला : " बाबा, भिखारियों का डॉक्टर समझकर नहीं बल्कि अपना बेटा समझकर मेरी दादी के लिए दवाएँ स्वीकार कर लीजिए। "


अपना हाथ छुड़ाकर बाबा बोले : " डॉक्टर, अब इस रिश्ते में मुझे मत बांधो, प्लीज, एक गया है, हमें छोड़कर...."


" आज मुझे स्वप्न दिखाकर, कल तुम भी मुझे छोड़ गए तो ? अब सहन करने की मेरी ताकत नहीं रही...."


ऐसा कहकर बाबा ने अपनी बैसाखी सम्हाली। और जाने लगे, और जाते हुए अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और भर भराई, ममता मयी आवाज में बोले : "अपना ध्यान रखना मेरे बच्चे..."


शब्दों से तो उन्होंने मेरे द्वारा पेश किए गए रिश्ते को ठुकरा दिया था लेकिन मेरे सिर पर रखे उनके हाथ के गर्म स्पर्श ने मुझे बताया कि, मन से उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकारा था।


उस पागल कहे जाने वाले मनुष्य के पीठ फेरते ही मेरे हाथ अपने आप प्रणाम की मुद्रा में उनके लिए जुड़ गए।


हमसे भी अधिक दुःखी, अधिक विपरीत परिस्थितियों में जीने वाले ऐसे भी लोग हैं।


हो सकता है इन्हें देख हमें हमारे दु:ख कम प्रतीत हों, और दुनिया को देखने का हमारा नजरिया बदले....     


हमेशा अच्छा सोचें, हालात का सामना करे...


कहानी से कुछ प्रेरणा मिले तो जीव मात्र पर दया करना ओर परोपकार की भावना बच्चों में जरूर दें ।

🙏अपने विचार कमेंट्स में जरूर दीजियेगा 🙏

पार्थिवशिवलिंगपूजा विधि

 ।। पार्थिवशिवलिंगपूजा विधि ।।


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पार्थिव (मिट्टी से बना) शिवलिंग पूजन से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। इस पूजन को कोई भी स्वयं कर सकता है। ग्रह का अनिष्ट प्रभाव हो या अन्य कामना की पूर्ति सभी कुछ इस पूजन से प्राप्त हो जाता है।


सर्व प्रथम किसी पवित्र स्थान पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख ऊनी आसन पर बैठकर गणेश गुरुस्मरण आचमन, प्राणायाम पवित्रीकरण करके संकल्प करें।


दायें हाथ में जल अक्षत सुपारी पान का पत्ते पर एक द्रव्य सिक्के के साथ निम्न संकल्प करें।


संकल्प-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्री मद् भगवतो महा पुरूषस्य विष्णोराज्ञया पर्वतमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽहनि द्वितीये परार्धे श्री श्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तेक देशान्तर्गते बौद्धावतारे (अमुक नामनि) संवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुक तिथौ अमुकवासरे अमुक नक्षत्रे शेषेशु ग्रहेषु यथा यथा राशि स्थानेषु स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायां अमुक गोत्रोत्पन्नोऽमुक नामाहं मम कायिक वाचिक,मानसिक ज्ञाताज्ञात सकल दोष परिहार्थं श्रुतिस्मृति पुराणोक्त फल प्राप्तयर्थं श्री मन्महा मृत्युञ्जय शिव प्रीत्यर्थं सकल कामना सिद्धयर्थं शिव पार्थिवेश्वर शिवलिगं पूजनमह करिष्ये।


तत्पश्चात त्रिपुण्ड और रूद्राक्ष माला धारण करें और शुद्ध की हुई मिट्टी इस मंत्र से अभिमंत्रित करें।


"ॐ ह्रीं मृतिकायै नमः।"


फिर "वं" मंत्र का उच्चारण करते हुए मिटी् में जल डालकर "ॐ वामदेवाय नमः" इस मंत्र से मिलाएं।


१.ॐ हराय नमः,

२.ॐ मृडाय नमः,

३.ॐ महेश्वराय नमः बोलते हुए शिवलिंग, माता पार्वती गणेश कार्तिक एकादश रूद्र का निर्माण करें।


अब पीतल, तांबा या चांदी की थाली या बेलपत्र, केला पत्ता पर यह मंत्र बोल कर स्थापित करें।


ॐ शूलपाणये नमः।


विनियोग।

ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा ऋषयः ऋञ्यजुः सामानिच्छन्दांसि प्राणाख्या देवता आं बीजम् ह्रीं शक्तिः कौं कीलकं देव प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः।


ऋष्यादिन्यास।

ॐ ब्रह्मा विष्णु रूद्र ऋषिभ्यो नमः शिरसि।

ॐ ऋग्यजुः सामच्छन्दोभ्यो नमःमुखे।

ॐ प्राणाख्य देवतायै नमःहृदये।

ॐ आं बीजाय नमःगुह्ये।

ॐ ह्रीं शक्तये नमः पादयोः।

ॐ क्रौं कीलकाय नमः नाभौ।

ॐ विनियोगाय नमःसर्वांगे। 


अब न्यास के बाद एक पुष्प या बेलपत्र से शिवलिंग का स्पर्श करते हुए प्राणप्रतिष्ठा मंत्र बोलें।


प्राणप्रतिष्ठा मंत्र।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं शिवस्य प्राणा इह प्राणाः।


ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं शिवस्य जीव इह स्थितः।


ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं शिवस्य सर्वेन्द्रियाणि,वाङ् मनस्त्वक् चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण पाणिपाद पायूपस्थानि इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।


आवाहन करें।


ॐ भूः पुरूषं साम्ब सदाशिव मावाहयामि,

ॐ भुवः पुरूषं साम्बसदाशिव मावाहयामि,

ॐ स्वः पुरूषं साम्बसदाशिव मावाहयामि।

ॐस्वामिन सर्व जगन्नाथ यावत्पूजावसानकम्

तावत्वम्मप्रीतिभावेन लिंगेऽस्मिन सन्निधिं कुरू।।


अब "ॐ" से तीन बार प्राणायाम कर न्यास करें।


संक्षिप्त न्यास विधि-


विनियोग

ॐ अस्य श्री शिव पञ्चाक्षर मंत्रस्य वामदेव ऋषि अनुष्टुप छन्दःश्री सदाशिवो देवता ॐ बीजं नमः शक्तिः शिवाय कीलकम मम साम्ब सदाशिव प्रीत्यर्थें न्यासे पार्थिव लिंग पूजने जपे च विनियोगः।।


ऋष्यादिन्यास।

ॐ वामदेव ऋषये नमः शिरसि।

ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे।

ॐ श्री साम्बसदाशिव देवतायै नमः हृदये।

ॐ ॐ बीजाय नमः गुह्ये।

ॐ नमः शक्तये नमः पादयोः।

ॐ शिवाय कीलकाय नमः नाभौ।

ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे।


शिव पंचमुख न्यास।

ॐ नं तत्पुरूषाय नमः हृदये।

ॐ मम् अघोराय नमःपादयोः।

ॐ शिं सद्योजाताय नमः गुह्ये।

ॐ वां वामदेवाय नमः मस्तके।

ॐ यम् ईशानाय नमःमुखे।


कर न्यास।

ॐ ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।

ॐ नं तर्जनीभ्यां नमः।

ॐ मं मध्यमाभ्यां नमः।

ॐ शिं अनामिकाभ्यां नमः।

ॐ वां कनिष्टिकाभ्यां नमः।

ॐ यं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।


हृदयादिन्यास।

ॐ ॐ हृदयाय नमः।

ॐ नं शिरसे स्वाहा।

ॐ मं शिखायै वषट्।

ॐ शिं कवचाय हुम।

ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट्।

ॐ यं अस्त्राय फट्।


ध्यानम्।

ध्यायेनित्यम महेशं रजतगिरि निभं चारू चन्द्रावतंसं,रत्ना कल्पोज्जवलागं परशुमृग बराभीति हस्तं प्रसन्नम।

पद्मासीनं समन्तात् स्तुतम मरगणै व्याघ्रकृतिं वसानं, 

विश्वाधं विश्ववन्धं निखिल भय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।


अब नीचे के मंत्र से आवाहन करें।


ॐ पिनाकधृषे नमः साम्ब सदाशिव पार्थिवेश्वर इहागच्छ इहाप्रतिष्ठ इह संनिहितो भव।

  

अब शुद्ध जल, मधु, गो घृत, शक्कर, हल्दीचूर्ण, रोलीचंदन, जायफल, गुलाबजल, दही से एक-एक करके स्नान करायें।


"नमःशिवाय" मंत्र का जप करते रहें, फिर चंदन, भस्म अभ्रक पुष्प, भांग, धतूरा, बेलपत्र से श्रृंगार कर नैवेद्य अर्पण करें।

 

तथा मंत्र जप या स्तोत्र का पाठ  करें। अंत में कपूर आरती एवं क्षमा प्रार्थना करें।


कर्पूरगौरं करुणावतारं

संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।

सदा वसंतं हृदयारविन्दे 

भवंभवानी सहितं नमामि।।


पुष्पांजलि केबाद गंध अक्षत पुष्प द्वारा शंकर की अष्ट मूर्तियों की आठ दिशाओं में पूजन करें।


पूर्व- ॐ शर्वाय क्षितिमूर्तये नमः।

ईशान- ॐ भवाय जलमूर्तये नम:

उत्तर- ॐ रुद्राय अग्निमूर्तये नम:।

वायव्य- ॐ उग्राय वायुमूर्तये नम:।

पश्चिम- ॐ भीमाय आकाश मूर्त ये नम:।

नैऋत्य- ॐ पशुपतये यजमान मूर्तये नम:।

दक्षिण- ॐ महादेवाय सोममूर्तये नम:।

अग्नि- ॐ ईशानाय सूर्यमूर्तये नम:।


इसके बाद रुद्राक्ष माला से शिव मंत्र का जप कर अर्पण करें।


गुह्याति गुह्य गोप्ता त्वं गृहणास्मत्कृतं जपं।

सिद्धिर्भवतु मे देव!त्वतप्रसादान् महेश्वर।।


क्षमा प्रार्थना।

आवाहनं न जानामि न जानामि

विसर्जनं। 

पूजां नैव हि जानामि क्षमस्व परमेश्वर।।


मंत्रहीनं क्रिया हीनं भक्ति हीनं सुरेश्वर। 

यत् पूजितं महादेव परिपूर्णं तदस्तु में।।


मनोकामना निवेदन कर अक्षत लेकर निम्न मंत्र से विसर्जन करें।


विसर्जन मंत्रः।

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने महेश्वर पूजा अर्चना काले पुनरागमनाय च। 

ॐ विष्णवे नमः ॐ विष्णवे नमः ॐ विष्णवे नमः। 


समर्पण‌ करें।

अनेन पार्थिव लिंग पूजन कर्मणा श्रीयज्ञ स्वरूप:शिव प्रीयताम् न मम।।


फिर पार्थिव लिंग को नदी कुआँ या तालाब में प्रवाहित करें।


                      ।। ॐ नमः शिवाय ।।

Main Shiv Ki Beti, Unki Mitr Bhi Hoon

 Main Shiv Ki Beti, Unki Mitr Bhi Hoon" 🌺

  mein aur Shiv ka rishta hai… thoda sa pagalpan, thoda sa prem)



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Kabhi unse rooth ke boli – “Mujhse baat bhi mat karna!” 😠

Aur Shiv muskura ke bole – “Phir bhi mann se utarna mat.” 😊


Kabhi boli – “Bas! Aaj se bhakti bandh!” 🙄

Aur agle pal jhuk gayi – “Par prarthna tere bina adhura lagta hai.” 🙏


Wo mujhe gussa mein bhi phool bhejte hain,

Main unke damru ko khamoshi se chhedti hoon। 🎶


Kabhi unki jata pe tika laga ke bolti hoon –

“Bhole! Tu sirf bhagwan nahi, mera pagal dost bhi hai!” 😂


Aur jab duniya samjhe na rishta hamara,

To Shiv bas aankh band karke bole –

“Ye meri beti hai, prem bhi hai, mitr bhi…

Isse samajhne ke liye hriday chahiye, dimaag nahi!” 💙🔱


Bhothik Sansar

 इस भौतिक संसार की नश्वरता का बोध कराने के लिए ही भगवान महादेव अपने शरीर प राख धारण करते हैं। इस संसार में जो कुछ भी आज है, वह कल के लिए मात्र और मात्र एक राख के ढेर से ज्यादा कुछ भी नहीं है। हमारे द्वारा अर्जित सभी भौतिक संपत्तियां और हमारा स्वयं का शरीर भी एक मुट्ठी राख से ज्यादा कुछ नहीं है। जीवन का अंतिम और अमिट सत्य राख ही तो है। राख ही प्रत्येक वस्तु का सार है और इसी सार तत्व को भगवान शिव अपने शरीर पर धारण करते हैं।


    भगवान शिव मानव मात्र को संदेश देते हैं, कि किसी भी वस्तु का अभिमान मत करो क्योंकि प्रत्येक वस्तु एक दिन मेरे समान ही राख बन जाने वाली है। आपका बल, आपका वैभव, आपकी अकूत सम्पदा सब यहीं रह जाने हैं। प्रभु कृपा से जो भी आपको प्राप्त हुआ है उसे परमार्थ में, परोपकार में,  सद्कार्यों में और सेवा कार्यों में लगाने के साथ-साथ मिल बाँट कर खाना सीखो, यही मनुष्यता है, यही दैवत्व है और यही जीवन का परम सत्य व जीवन की परम सार्थकता भी है। 

वैदिक रक्षासूत्र

रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है । यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है। प्रतिवर्षश्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है, इस दिनबहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं । यह रक्षासूत्र यदि वैदिक रीति से बनाई जाए तो शास्त्रों में भी उसका बड़ा महत्व है ।


कैसे बनायें वैदिक राखी ?

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वैदिक राखी बनाने के लिए सबसे पहले एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें।


(१) दूर्वा


(२) अक्षत (साबूत चावल)


(३) केसर या हल्दी


(४) शुद्ध चंदन


(५) सरसों के साबूत दाने


इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें । फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें । सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं।


वैदिक राखी का महत्त्व

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वैदिक राखी में डाली जानेवाली वस्तुएँ हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जानेवाले संकल्पों को पोषित करती हैं ।


(१) दूर्वा

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जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैलते जायें, बढ़ते जायें...’ इस भावना का द्योतक है दूर्वा । दूर्वा गणेशजी की प्रिय है अर्थात् हम जिनको राखी बाँध रहे हैं उनके जीवन में आनेवाले विघ्नों का नाश हो जाय ।


(२) अक्षत (साबूत चावल)

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हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान के, गुरु के चरणों में अक्षत हो, अखंड और अटूट हो, कभी क्षत-विक्षत न हो - यह अक्षत का संकेत है । अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं । जो कुछ अर्पित किया जाय, पूरी भावना के साथ किया जाय ।


(३) केसर या हल्दी

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केसरकेसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात् हम जिनको यह रक्षासूत्र बाँध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी हो । उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाय । केसर की जगह पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं । हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है । यह नजरदोष व नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है ।


(४) चंदन

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चंदन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है । यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे, कभी तनाव न हो । उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि की सुगंध मिलती रहे । उनकी सेवा-सुवास दूर तक फैले ।


(५) सरसों

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सरसोंसरसों तीक्ष्ण होती है । इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में, समाज-द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्ष्ण बनें ।


अतः यह वैदिक रक्षासूत्र वैदिक संकल्पों से परिपूर्ण होकर सर्व-मंगलकारी है ।


 रक्षासूत्र बाँधते समय यह श्लोक बोला जाता है :


येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वां अभिबध्नामि१ रक्षे मा चल मा चल।।


रक्षासूत्र बाँधते समय एक श्लोक और पढ़ा जाता है जो इस प्रकार है-


ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।


इस मंत्रोच्चारण व शुभ संकल्प सहित वैदिक राखी बहन अपने भाई को, माँ अपने बेटे को, दादी अपने पोते को बाँध सकती है । यही नहीं, शिष्य भी यदि इस वैदिक राखी को अपने सद्गुरु को प्रेमसहित अर्पण करता है तो उसकी सब अमंगलों से रक्षा होती है  भक्ति बढ़ती है


महाभारत में यहरक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी । जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकीरक्षा हुई, *धागा टूटने पर*3

अभिमन्यु की मृत्यु हुई । इस प्रकार इन पांचवस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार

बांधते हैं हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहितवर्ष भर सूखी रहते हैं!

 

रक्षा सूत्रों के विभिन्न प्रकार

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विप्र रक्षा सूत्र- रक्षाबंधन के दिन किसी तीर्थ अथवा जलाशय में जाकर वैदिक अनुष्ठान करने के बाद सिद्ध रक्षा सूत्र को विद्वान पुरोहित ब्राह्मण द्वारा स्वस्तिवाचन करते हुए यजमान के दाहिने हाथ मे बांधना शास्त्रों में सर्वोच्च रक्षा सूत्र माना गया है।


गुरु रक्षा सूत्र- सर्वसामर्थ्यवान गुरु अपने शिष्य के कल्याण के लिए इसे बांधते है।


मातृ-पितृ रक्षा सूत्र- अपनी संतान की रक्षा के लिए माता पिता द्वारा बांधा गया रक्षा सूत्र शास्त्रों में  "करंडक" कहा जाता है।


भातृ रक्षा सूत्र- अपने से बड़े या छोटे भैया को समस्त विघ्नों से रक्षा के लिए बांधी जाती है देवता भी एक दूसरे को इसी प्रकार रक्षा सूत्र बांध कर विजय पाते है।


स्वसृ-रक्षासूत्र- पुरोहित अथवा वेदपाठी ब्राह्मण द्वारा रक्षा सूत्र बांधने के बाद बहिन का पूरी श्रद्धा से भाई की दाहिनी कलाई पर समस्त कष्ट से रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधती है। भविष्य पुराण में भी इसकी महिमा बताई गई है। इससे भाई दीर्घायु होता है एवं धन-धान्य सम्पन्न बनता है।


गौ रक्षा सूत्र- अगस्त संहिता अनुसार गौ माता को राखी बांधने से भाई के रोग शोक डोर होते है। यह विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है।


वृक्ष रक्षा सूत्र - यदि कन्या को कोई भाई ना हो तो उसे वट, पीपल, गूलर के वृक्ष को रक्षा सूत्र बांधना चाहिए पुराणों में इसका विशेष उल्लेख है।

नवनाथों के नाम और परिचय...

नवनाथ हिंदू धर्म के नौ महान संतों का समूह है, जो नाथ संप्रदाय के प्रमुख माने जाते हैं। इन्हें शिवजी के अवतार माना जाता है और ये योग, तंत्र, और अध्यात्म के गहरे रहस्यों के ज्ञाता थे। 

Navnath Name


नवनाथों की कथाएँ और उनके द्वारा किए गए अद्भुत कार्यों का वर्णन नाथ पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। 


नवनाथों के नाम और परिचय :-


1. मच्छिंद्रनाथ(मत्स्येन्द्रनाथ): मच्छिंद्रनाथ को नवनाथों में सबसे प्रमुख माना जाता है। वे गुरु गोरखनाथ के गुरु थे। उनके योग और तंत्र पर गहन ज्ञान का उल्लेख मिलता है।


2. गोरखनाथ (गोरक्षनाथ): गोरखनाथ मच्छिंद्रनाथ के प्रमुख शिष्य थे। उन्होंने योग और तंत्र की विधाओं का विस्तार किया और नाथ संप्रदाय को संगठित किया।


3. जालंधरनाथ(जलंधरनाथ): जालंधरनाथ ने भी योग और तंत्र के गहन रहस्यों को समझाया और अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।


4. कनीफनाथ (कानिफनाथ): कनीफनाथ को कानिफनाथ के नाम से भी जाना जाता है। वे तंत्र साधना के प्रमुख ज्ञाता थे और कई अद्भुत शक्तियों के धारक माने जाते हैं।


5. गाहिनीनाथ(गहिनीनाथ): गाहिनीनाथ ने नाथ संप्रदाय में चिकित्सा और आयुर्वेद का ज्ञान जोड़ा और अनेक रोगों का इलाज करने की विधियाँ सिखाईं।


6. भर्तृहरिनाथ(भर्तृहरिनाथ): भर्तृहरिनाथ योग और तंत्र के अलावा संगीत और साहित्य के भी ज्ञाता थे। उन्हें कई धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों का रचयिता माना जाता है।


7. रेवणनाथ (रेवननाथ): रेवणनाथ ने योग और तंत्र के साथ-साथ ध्यान और समाधि की विधियों पर भी गहन ज्ञान दिया।


8. चर्पटनाथ(चर्पटिनाथ): चर्पटनाथ ने योग और तंत्र की साधना में विशेष योगदान दिया और अपने शिष्यों को आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर किया।


9. नागनाथ (नागनाथ): नागनाथ को नागवंशी भी कहा जाता है। उन्होंने नाग योग और तंत्र के रहस्यों को उजागर किया और अपने अनुयायियों को सिखाया।


नवनाथों की शिक्षाएँ और महत्व :-


- योग: नवनाथों ने योग की विभिन्न विधाओं को विकसित किया और अपने शिष्यों को सिखाया। उनके योग अभ्यासों ने न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान की।


- तंत्र: नवनाथों ने तंत्र साधना के गहरे रहस्यों को प्रकट किया। उनकी तांत्रिक साधनाएँ और मंत्र साधनाएँ आज भी व्यापक रूप से प्रचलित हैं।


- ध्यान और समाधि: नवनाथों ने ध्यान और समाधि की विधियों पर जोर दिया। उनके द्वारा विकसित ध्यान विधियाँ आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति में सहायक मानी जाती हैं।


- चिकित्सा और आयुर्वेद: नवनाथों ने आयुर्वेद और चिकित्सा विज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके चिकित्सा ज्ञान से अनेक रोगों का इलाज संभव हुआ।


नवनाथों की विरासत :-

नवनाथों की शिक्षाएँ और उनके द्वारा स्थापित परंपराएँ आज भी जीवित हैं। नाथ संप्रदाय के अनुयायी उनके मार्गदर्शन में साधना करते हैं और उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं। 


नवनाथों के आश्रम और मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं, जहाँ उनके भक्त पूजा-अर्चना और साधना करते हैं।


नवनाथों की कथाएँ और उनकी अद्भुत साधनाएँ हमें आध्यात्मिकता, योग और तंत्र के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। उनके द्वारा दी गई शिक्षाएँ आज भी हमारे जीवन में मार्गदर्शक सिद्ध होती हैं।

🙏 जय श्रीकृष्णा 🙏

साधना जब सिद्ध हों जाती है

साधना जब सिद्ध हों जाती है

तब पंचांग पर ज्यादा दिमाग़ नहीं लगाना चाहिए मित्रों


श्राद्ध में कम्प्यूटर लिया उस समय जब व्यापार करता था


नवरात्र से पहले पहले ही उसने अपनी क़ीमत से ज्यादा कमाई दे दी


कार खरीदी मल मास में

नींव लगाई चातुर्मास में


बस ईश्वर को याद किया जो तारीख उसने बोली काम शुरू कर दिया


यही सिस्टम पूछने वालों के साथ भी रहा है मेरा....


शादी गृह प्रवेश आदि के महूर्त निकालता नहीं वो ज्योतिषचार्य जो भी आपके क्षेत्र के हों

उनके विचार के लिए छोड़ता हूं


बाकी सब मेरा ईश्वर जो कह दे बस वही फाइनल करता आया हूं


ऐसा होना भी चाहिए


मनुष्य के ज्योतिषीय विवेचना की अपनी सीमाएं है


पर उस ऊपर वाले की कोई सीमा नहीं वो गहनतम स्तर पर विवेचना करता है तब रिज़ल्ट बताता है


उसे ही सच मानना चाहिए

फ़कीरों की महफ़िल

ये फ़कीरों की महफ़िल है, चले आओ...

यहाँ भले लोग हैं, औक़ात नहीं पूछते...


✨ बस दिल की सच्चाई चलती है यहाँ, नाम-ओ-निशान नहीं।

✨ बैठ जाओ जहाँ जगह मिले, इज़्ज़त सबको बराबर मिलती है।


यह फ़कीरों की महफ़िल है, चले आओ,

यहाँ न तख़्त है, न ताज — बस सुकून की छाँव है।

न यहाँ कोई औक़ात पूछेगा, न पहचान,

दिल से बैठे हो तो हो जाओ मेहमान।


यहाँ हर चेहरा रौशन है बिना दौलत के,

हर एक की कहानी है इबादत के।

जो झुक जाए दिल से, वही बड़ा है यहाँ,

वरना दिखावे वालों का कोई मोल नहीं यहाँ।

जो आत्माएं जाग्रत नहीं हैं

जो आत्माएं जाग्रत नहीं हैं, वह केवल खाने, सोने और कामवासना के लिए संसार में आई हैं।


जिस आत्मा ने अब तक अपने भीतर की शक्ति को नहीं पहचाना, वह केवल एक शरीर बनकर रह जाती है।

वह खाता है, सोता है, वासना में रहता है,

पर जागता नहीं।


मूलाधार में अटका जीवन केवल भोग का चक्र है,

जहाँ जीव "पशु" की भांति चलता है 

न बोध है, न दृष्टि है, न ऊर्ध्वगमन।


परंतु जब साधक तंत्र के पथ पर उतरता है 

जब वह अग्नि, मंत्र और तांत्रिक अनुशासन के साथ

अपनी कुंडलिनी को जाग्रत करता है 

तो वही आत्मा शिव की ओर अग्रसर होती है।


जो आत्मा जागे बिना चली जाती है,

वह केवल जन्म-मरण के चक्र में घूमती है 

जिसे  "भवचक्र में बँधा प्राणी" कहा जाता है

तुम केवल खाने-सोने के लिए नहीं,

स्वरूप-स्मरण और परमबोध के लिए जन्मे हो।

काली रहस्य

भगवती काली की उपासना आदिकाल से चली आ रही है। आद्यविद्या भी यही है, आदि विद्या भी यही है। काल से परे होने से भी काली कहा गया है। काल से परे होने के कारण इनका न कोई आदि है और ना ही अन्त है। ज्ञान से परे भी यही है। इसलिये ज्ञानातीत भी यही है और समयातीत भी यही है। माँ काली ने काल को अपने नियन्त्रण में कर रखा है अतः केवल संहारक्रम नहीं, सृष्टि, स्थिति की अधिष्ठात्री भी यही है।


लोक निर्माण में शून्यावस्था में काली, किञ्चन मात्र स्पंदन में तारा, प्रकाश विमर्श शक्ति रूप में श्रीललिता त्रिपुरसुन्दरी, भुवनाधिष्ठात्री भुवनेश्वरी भी यही है।


॥ कालिका के भेद ॥


मां काली के संबंध में तंत्रशास्त्र के २५०-३०० ग्रंथ हैं जिनमें बहुत से ग्रंथ लुप्त हैं कुछ पुस्तकालयों में सुरक्षित हैं। अंश मात्र ग्रंथ ही अवलोकन हेतु उपलब्ध हैं। कामधेनु तन्त्र में लिखा हैं कि "काल सङ्कलनात् काली कालग्रासं करोत्यतः"। तंत्रों में स्थान स्थान पर शिव ने श्यामा काली (दक्षिणाकाली) और सिद्धिकाली (गुह्यकाली) को केवल "काली" संज्ञा से पुकारा हैं। श्यामाकाली (दक्षिणकाली) को आद्या, नीलकाली (तारा) को द्वितीया और प्रपञ्चेश्वरी रक्तकाली (महात्रिपुरसुन्दरी) को तृतीया कहते है। पीताम्बरा बगलामुखी को पीतकाली भी कहा है।


काली के अनेक भेद है - 


कालिका द्विविधा प्रोक्ता कृष्णा रक्ता प्रभेदतः । कृष्णा तु दक्षिणा प्रोक्ता रक्ता तु सुन्दरीमता ॥


काली के अनेक भेद हैं -


पुरश्चर्याणवेः- १. दक्षिणाकाली २. भद्रकाली ३. श्मशानकाली ४. कामकलाकाली ५. गुह्यकाली ६. धनकाली ७. सिद्धिकाली ८. चण्डीकाली।


जयद्रथयामलेः- १. डम्बरकाली २. गहनेश्वरी काली ३. एकतारा ४. चण्डशाबरी ५. वज्रवती ६. रक्षाकाली ७. इन्दीवरीकाली ८. धनदा ९. रमण्या १०. ईशानकाली ११. मन्त्रमाता ।


सम्मोहने तंत्रेः- १. स्पर्शमणि काली २. चिंतामणि ३. सिद्धकाली ४. विज्ञाराज्ञी ५. कामकला ६. हंसकाली ७. गुह्यकाली।


भद्रकाली ही विपरीतप्रत्यङ्गिरा है एवं यही षोडशभुजा महिषमद्दिनी भी है। दशभुजा कात्यायनी महिषमर्दिनी भी भद्रकाली ही है।


तंत्रान्तरेऽपिः-१ १. चिंतामणि काली २. स्पर्शमणिकाली ३. सन्ततिप्रदाकाली ४. सिद्धिकाली ५. दक्षिणा काली ६. कामकला काली ७. हंसकाली ८. गुह्यकाली उक्त सभी भेदों में से दक्षिणा और भद्रकाली 'दक्षिणाम्नाय' के अंतर्गत हैं तथा गुहाकाली, कामकला काली, महाकाली और महाश्मशान काली उत्तराम्नाय से संबंधित हैं।


काली की उपासना तीन आम्नायों से होती है। तंत्रों में कहा हैं "दक्षिणोपासकः कालः" अर्थात् दक्षिणोपासक महाकाल के समान हो जाता हैं। उत्तराम्नायोपासक ज्ञान योग से ज्ञानी बन जाते हैं। उर्ध्वाम्नायोपासक पूर्णक्रम उपलब्ध करने से निर्वाणमुक्ति को प्राप्त करते हैं। दक्षिणाम्नाय में कामकाला काली को कामकलादक्षिणाकाली कहते हैं। उत्तराम्नाय के उपासक भासाकाली में कामकला गुह्यकाली की उपासना करते हैं। विस्तृत वर्णन पुरुश्वर्यार्णव में दिया गया हैं। गुह्यकाली की उपासना नेपाल में विशेष प्रचलित हैं। इसके मुख्य उपासक ब्रह्मा, वशिष्ठ, राम, कुबेर, यम, भरत, रावण, बालि, वासव, बलि, इन्द्र हुये हैं। श्रीरामचन्द्र ने इसके १७ अक्षर के मंत्र की उपासना की थी।


कामकलाकाली के मुख्य उपासक इन्द्र, वरुण, कुबेर, ब्रह्मा, महाकाल, राम, रावण, यम, विवस्वान, चन्द्र, विष्णु एवं ऋषिगण हुये हैं। इसका १८ अक्षर का मंत्र मुख्य मंत्र माना गया हैं। रुद्ररूप मिश्र बिन्दु से भगवती भद्रकाली विचरण करती रहती हैं, नृत्य करती हैं।


तंत्रों में इस प्रकार ध्यान लिखा हैं-


डिम्भं डिम्भं सुडिम्भं पच मन दुहसां झ प्रकम्पं प्रझम्पं विल्लं त्रिल्लं त्रि-त्रिल्लं त्रिखलमख-मखा खं खमं खं खमं खम् । गूहं गृहं तु गुह्यं गुडलुगड गुदा दाडिया डिम्बुदेति, नृत्यन्ती शब्दवाद्यौः प्रलयपितृवने श्रेयसे वोऽस्तु काली ॥


भद्रकाली के भी दो भेद है (१) विपरीत प्रत्यंगिरा भद्रकाली (२) षोडश भुजा दुर्गाभद्रकाली।


काली साधना गुरू आज्ञा  से  ही करे 

मार्कण्डेय पुराणान्तर्गत दुर्गासप्तशती में जो काली अंबिका के ललाट से उत्पन्न हुई वह कालीपुराण से भिन्न हैं । उसका ध्यान इस प्रकार है :-


नीलोत्पलदलश्यामा चतुर्बाहु समन्वता । 

खट्वागं चन्द्रहासञ्च विभ्रती दक्षिणकरे॥

वामे चर्म च पाशञ्च उर्ध्वाधो भावतः पुनः। 

दधती मुण्डमालाञ्च व्याघ्रचर्म वराम्बरा ॥

कृशांगी दीर्घदंष्ट्रा च अतिदीर्घाऽति भीषणा।

लोलजिह्वा निम्नरक्तनयना नादभैरवा ॥

कबन्धवाहना पीनविस्तार श्रवणानना ॥


'दक्षिणकाली' मन्त्र विग्रह हृदय में "प्रलय कालीन ध्यान " इस प्रकार हैं-


क्षुच्छ्यामां कोटराक्षीं प्रलय घनघटां घोररूपां प्रचण्डां, 

दिग्वस्त्रां पिङ्गकेशीं डमरु सुणिधृतां खड़गपाशाऽभयानि । 

नागं घण्टां कपालं करसरसिरुहैः कालिकां कृष्णवर्णां 

ध्यायामि ध्येयमानां सकलसुखकरीं कालिकां तां नमामि ॥


'महाकालसंहिता' के शकारादि विश्वसाम्राज्य श्यामासहस्त्रनाम में "निर्गुणध्यान" इस प्रकार हैं।


ब्रह्माविष्णु शिवास्थिमुण्डरसनां ताम्बूल रक्ताघांबराम् । 

वर्षांमेघनिभां त्रिशूल मुशले पद्माऽसि पाशांकुशाम् ॥ 

शङ्ख साहिसुगंधृतां दशभुजां प्रेतासने संस्थिताम् । 

देवीं दक्षिणकालिकां भगवतीं रक्ताम्बरां तां स्मरे ॥ 

विद्याऽविद्यादियुक्तां हरविधिनमितांनिष्कलां कालहन्त्रीं, 

भक्ताभीष्टप्रदात्रीं कनकनिधिकलांचिन्मयानन्दरूपाम् ॥ 

दोर्दण्ड चाप चक्रे परिघमथ शरा धारयन्तीं शिवास्थाम् । 

पद्मासीनां त्रिनेत्रामरुण रुचिमयीमिन्दुचूडां भजेऽहम् ।


"कालीविलास तंत्र" में कृष्णमाता काली का ध्यान इस प्रकार दिया हैं-


जटाजूट समायुक्तां चन्द्रार्द्धकृत शेखराम्। 

पूर्णचन्द्रमुखीं देवीं त्रिलोचन समन्विताम् ॥ 

दलिताञ्जन सङ्काशां दशबाहु समन्विताम् । 

नवयौवन सम्पन्नां दिव्याभरण भूषिताम् ॥ 

सुचारु दशनां नित्यां सुधापुञ्ज समन्विताम् । 

शृङ्गाररस संयुक्तां सदाशिवोपरि स्थिताम् ॥ 

दिड्मण्डलोज्ज्वलकरीं ब्रह्मादि परिपूजिताम् । 

वामे शूलं तथा खड्गंचक्रं वाणं तथैव च ॥ 

शक्तिं च धारयन्तीं तां परमानन्द रूपिणीम् । 

खेटकं पूर्णचापं च पाशमङ्कुशमेव च ॥ 

घण्टां वा परशुं वापि दक्षहस्ते च भूषिताम्। 

उग्रां भयानकां भीमां भेरूण्डां भीमनादिनीम् ॥ 

कालिकाजटिलां चैव भैरवीं पुत्रवेष्टिताम् । 

आभिः शक्तिरष्टाभिश्च सहितां कालिकां पराम् ॥ 

सुप्रसन्नां महादेवीं कृष्णक्रीडां परात् पराम् । 

चिन्तयेत् सततं देवीं धर्मकामार्थ मोक्षदाम् ॥


कादि हादि सादि इत्यादि क्रम से कालिका के कई प्रकार के ध्यान हैं। जिस मंत्र के आदि में "क" हैं वह "कादि विद्या", जिस मंत्र के आदि में "ह" है वह "हादि विद्या", मंत्र में वाग् बीज हो वह "वागादि विद्या" तथा जिस मंत्र के प्रारम्भ में "हूं" बीज हो वह" क्रोधादि विद्या" कहलाती हैं। "नादिक्रम" में आदि में "नमः" का प्रयोग होता हैं एवं "दादिक्रम" में मंत्र के आदि में "द" होता हैं जैसे "दक्षिणे कालिके स्वाहा"। "प्रणवादि क्रम" में मंत्र के प्रारंभ में "ॐ" का प्रयोग होता हैं।


॥ काली की उत्पत्ति ॥


दशमहाविद्याओं में प्रथम महाविद्या माँ काली का आविर्भाव अवन्तिदेश (उज्जैन) प्रदेश में फाल्गुन कृष्णा एकादशी तिथि महारात्रि में है। पुराणों के अनुसार फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को विष्णु-मधुकैटभ युद्ध प्रसंग में महाकाली का प्राकट्य हुआ।


उपासना में दुर्गार्चन तथा महाविद्याओं के अर्चन का क्रम विशेष प्रचलित है। निगम में दुर्गार्चन का प्रचलन है तो आगम में दशमहाविद्याओं का अर्चन है।


दुर्गासप्तशती के पञ्चम अध्याय के अनुसार पार्वती के शरीर से जब कौशिकी उत्पन्न हुई तब माँ पार्वती का वर्ण काला हो गया।

दशमहाविद्याओं के समष्टि मन्त्रों से काली मन्त्र इस प्रकार है -


ॐ क्रींक्रींक्रीहूं हूं हींहीं दक्षिणेकालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा। पूर्वदिशि महारात्रौ आश्विनकृष्णाष्टम्याविर्भूतां कृष्णवर्णा शवारूढां महाघोरदंष्ट्र ललज्जित्व हसन्मुखीं सद्यःछिन्नशिर-कृपाण-वरदाभय भुजा मातृकावर्णात्म-मुण्डमालाधरां सहस्त्रशव-कर-काञ्चीयुतां घोररूपशिवाभिरावृत-श्मशान निलयां महाकाल-हृदयोपरि-नृत्तयन्तीं एकाक्षर-गणेशप्रिया हेतुकवटुक-लालितां अप्सरो-मण्डलस्थां महामधुमती-यक्षिणीसेव्यां उपनिषत्सु. संवर्गविद्यारूपिणीं कृष्णावताररूपां आद्यां विद्याराज्ञीसंज्ञिकां श्रीदक्षिणकालिका श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ।


उक्त मन्त्र के अनुसार कालिका की उत्पत्ति आश्विन कृष्णा अष्टमी को हुई। परन्तु अन्य पौराणिक संदर्भ में राम-रावण युद्ध के समय कालिका आश्विन कृष्णा अष्टमी को युद्ध देखने पधारी एवं रावण का पराक्रम देखकर खुश हो रही थी तब देवताओं ने राम पर प्रसन्न होने की प्रार्थना की। आश्विन शुक्ला एकम को कालिका राम पर प्रसन्न हुई तथा दशमी को रावण का वध हुआ।


उसी संदर्भ में नवरात्र पर्व मनाया जाता है।


रावण काली का उपासक था, उसने गुह्यकाली, कामकलाकाली की भी उपासना की थी। इसका तात्पर्य यह है कि काली का प्राकट्य उक्त तिथि से बहुत पहले हुआ था।


मंत्र के अनुसार काली के अंग देवता इस प्रकार है

शिव - महाकाल ।

गणेश - एकाक्षर "गं"।

बटुक - हेतुक।

अप्सरा - लालिता (ललिता)।

यक्षिणि - महामधुमती ।

अवतार - कृष्णावतार ।

संज्ञा - विद्याराज्ञी।

काली - दक्षिणकाली।


काली की उग्र साधना में शवसाधना, वीरसाधना, चित्तासाधना, लतासाधना (श्रीचक्रार्चन-पात्रवन्दना, शक्ति शोधन) क्रम विशेष है। विशिष्ट क्रम में काली की पन्द्रह नित्याओं के यन्त्रार्चन का दुर्लभ विधान है।


बिना कुमारी पूजन के शक्ति उपासना अधूरी है। उपासना क्रम में निगम शास्त्रों में दुर्गार्चन का प्रचलन है तो आगम में दशमहाविद्याओं का अर्चन है।


गुह्यकाली उपासना अतिगूढ है, कामकलाकाली भी विशिष्ट है, इनकी उपासना उत्तर व उर्ध्वाम्नाय मार्ग की है। नेपाल में सती का गुह्यांग गिरा था एवं कामाख्या में योनि गिरने से स्वयं सिद्ध स्थान है। गुह्यकाली की उपासना राम, भरत, च्यवन, जाबालि, रावण इत्याटि चौबीस उपासकों ने की थी। कामकला काली के भी ये विशिष्ट साधक रहे हैं।


हनुमानजी ने सूर्यपुत्री सौवर्चला से विवाह कर गुह्यकाली की वामाचार से उपासना की थी। दक्षिण भारत में सौवर्चला का मन्दिर है, इसका उल्लेख अगस्त संहिता व अन्यत्र भी है।


गुह्यकाली व कामकलाकाली के 17 अक्षर से 10000 अक्षर के मंत्र है। गुह्यकाली पंचपुरी मध्य अष्टश्मशान में पंचप्रेतासन के ऊपर महाकाल सहित विराजमान है। इनकी दशशिर व शतशीर्षा रूप में विशेष पूजा होती है।


तंत्रक्षेत्र में दश महाविद्याओं का अधिक प्रचलन है, इसके अलावा अन्य प्रमुख विद्याओं का 16, 18, 32, 64, 27, 12, 51 विद्याओं व शक्तियों का वर्णन इस प्रकार है -


॥ षोडश महाविद्या ॥


भैरव मत से वनदुर्गा, शूलिनी, अश्वारूढा, त्रैलोक्यविजया, वाराही, अन्नपूर्णा तथा दशमहाविद्यायें है।


॥ अष्टादश महाविद्या ॥


दशमहाविद्याओं के अतिरिक्त अन्नपूर्णा, नित्या, महिषमर्दिनी, दुर्गा, त्वरिता, त्रिपुरा, त्रिगुटा, जयदुर्गा है।


॥ षोडश शक्ति ॥


काली, कराली, उमा, सरस्वती, श्री, उमा, उषा, लक्ष्मी, श्रुति, स्मृति, धृति, श्रद्धा, मेधा, मति, कान्ति, आर्या।


॥ द्वात्रिंशती शक्ति ॥

विद्या, ह्रीं, पुष्टि, प्रज्ञा, सिनीवाली, कुहु, रुद्रा, वीर्या, प्रभा, नन्दा, उषा, ऋद्धिदा, कालरात्रि, महारात्रि, भद्रकालि, कपर्दिनी, विकृति, दण्डिनी, मुण्डनी, सेन्दुखण्डा, शिखण्डिनी, निशुम्भ शुम्भमथनी, महिषमर्दिनी, इन्द्राणी, रुद्राणी, शंकरार्द्धशरीरिणी, नारी, नारायणी, त्रिशूलिनी, पालिनी, अम्बिका, ह्लादिनी।


॥ चतुःषष्टि द्वात्रिंश शक्ति एवं षोडश शक्ति ॥ (शारदा तिलके)

अम्बिका वाग्भवी दुर्गा श्रीशक्तिश्चोक्तलक्षणा । ब्रह्मयाद्याः पूर्ववत् प्रोक्ताः कराली विकाराल्युमा ॥ सरस्वती श्रीदुर्गाषा लक्ष्मी श्रुत्यौ स्मृतिर्धतिः । श्रद्धा मेघा मतिः कान्तिरार्या षोडशशक्तयः ॥ खड्गखेटकधारिण्य श्यामाः पूज्याः स्वलङ्कृताः । विद्या ह्रीं पुष्टयः प्रज्ञा सिनीवाली कुहूः पुनः ॥ रुद्रावीर्या प्रभा नन्दा स्याद्योषा ऋद्धिदा शुभा । कालरात्रिर्महारात्रि र्भद्रकाली कपर्दिनी । विकृतिद्वंण्डि मुण्डिन्यौ सेन्दुखण्डा शिखण्डिनी । निशुम्भशुम्भमथनी महिषासुरमर्दिनी ॥ 

इन्द्राणी चैव रुद्राणी शङ्करार्द्धशरीरिणी । नारी नारायणी चैव त्रिशूलिन्यपि पालिनी ॥ 

अम्बिका ह्लादिनी चैव द्वात्रिंशच्छक्तयः स्मृता । चक्रहस्ताः पिशाचास्याः सम्पूज्याश्चारुभूषणा ॥ पिङ्गलाक्षी विशालाक्षी समृद्धिर्वृद्धिरेव च । श्रद्धा स्वाहा स्वधाऽभिख्या माया संज्ञा वसुन्धरा ॥ त्रिलोकधात्री सावित्री गायत्री त्रिदशेश्वरी । सुरूपा बहूरूपा च स्कन्दमाताऽच्युतप्रिया ॥ 

विमला चामला पश्चादरुणी पुनरारुणि । प्रकृतिर्विकृतिः सृष्टिः स्थितिः संहृतिरेव च ॥ 

संध्या माता सति हंसी मर्दिका कुब्जिकाऽपरा । देवमाता भगवती देवकी कमलासना ॥ 

त्रिमुखी सप्तमुख्यान्या सुरासुरविमर्दिनी । लम्बोष्ठी चोर्ध्वकेशी च बहुशीर्षा वृकोदरी ॥ 

रथरेखाह्वया पश्चाच्छशिरेखा तथाऽपरा । ततोभुवनपालाख्य ततः स्यान्मदनातुरा गगनवेगा पवनवेगा च तदनन्तरम् ॥ अनङ्गाऽनङ्गमदना तथैवानङ्ग‌मेखला ॥  अनङ्गकुसुमा विश्वरूपाऽसुरभयङ्करी ॥ अक्षोभ्या सत्यवादिन्यौ वज्ररूपा शुचिव्रता ॥  वरदाख्या च वागीशा चतुःषष्टिः समीरिताः ॥


|| सप्तविंशति महाविद्या ॥


काली तारा भैरवी च षोडशी भुवनेश्वरी । अन्नपूर्णा महामाया दुर्गा महिषमर्दिनी ॥  

त्रिपुरा बगला छिन्ना धूमा च त्वरिता तथा । मातंगी धनदा गौरी त्रिपुटा परमेश्वरी ।

प्रत्यंगिरा महामाया भेरुण्डा शूलिनी तथा । चामुण्डा सर्वदा बाला तथा कात्यायनी शिवा । सप्तविंशति महाविद्याः सर्वशास्त्रेषु गोपिताः ॥


॥ द्वादशविद्या ॥ (शाक्तानन्द तरंगिणी)


काली नीला महादुर्गा त्वरिता छिन्नमस्तिका । वाग्वादिनी चान्नपूर्णा तथा प्रत्यङ्गिरा पुनः ॥ कामाख्यावासिनी बाला मातंगी शैलवासिनी । इत्याद्याः सकला विद्याः कलौपूर्ण फलप्रदाः ॥


|| एकपञ्चाशत् विद्या ॥


(महाकाल संहितायाम्)


आदौ ज्ञेया महालक्ष्मीस्ततो वागीश्वरी मता । अश्वारूढा च मातङ्गी नित्यक्लिन्ना ततः परम् ॥ भुवनेशी तथोच्छिष्ट चाण्डालिनी भैरवी ततः । शूलिनी वनदुर्गा च त्रिपुटा त्वरिता ततः ॥ 

अघोरा जयलक्ष्मीश्च वज्रप्रस्तारिणी ततः । पद्मावत्यन्नपूर्णा च काली संकर्षिणी ततः ॥ 

धनदा कुक्कुटी भोगवती च शबरेश्वरी । कुब्जिका सिद्धिलक्ष्मीश्च बाला च त्रिपुरा ततः ॥ 

तारा दक्षिणकाली च छिन्नमस्ता त्रिकण्टकी। ततो नीलपताका च चण्डघण्टा ततः परम् ॥ 

चण्डेश्वरी भद्रकाली गुह्यकाली ततः परम् । अनङ्ग‌माला चामुण्डा वाराही बगलापि च ॥ 

जयदुर्गा नारसिंही ब्रह्माणी वैष्णवी ततः । माहेश्वरी तथेन्द्राणी हरसिद्धा तथोऽपि वा ॥ 

फेत्कारी लवणेशी च नाकुली मृत्युहारिणी । ततः कामकलाकालीत्येक पञ्चादशदीरिता ॥


काली विद्या के संबंध में विशिष्ट जानकारी कालीतन्त्र, काली उपासना, काली रहस्य, अग्निपुराण, कुब्जिका तन्त्र, आंदि तथा कई तंत्र ग्रंथों से तथा गुह्यकाली, कामकला काली की साधना संबंधी साहित्य "महाकाल संहिता" से अन्वेषण कर संकलित व सरल किया गया है।



(लेखक :- परम आदरणीय चिद् घनानन्दनाथ जी